स्वप्न मेरे: आज के हालात ...

बुधवार, 12 सितंबर 2012

आज के हालात ...


छोटी बहर की गज़लों के दौर में प्रस्तुत है एक और गज़ल, आशा है पसंद आयगी ...

आवाम हाहाकार है 
सब ओर भ्रष्टाचार है 

प्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा 
सकते में ये सरकार है 

सेवक हैं जनता के मगर 
राजाओं सा व्यवहार है 

घेराव की न सोचना 
मुस्तैद पहरेदार है 

रोटी नहीं इस देश में 
मंहगी से मंहगी कार है 

मिल बाँट कर खाते हैं पर 
इन्कार है इन्कार है  

78 टिप्‍पणियां:

  1. आज के हालात ऐसे ही हैं सर!


    सादर

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  2. अब यहाँ किसकी सुने ...
    जनता बड़ी लाचार है !
    .... बढ़िया !!

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  3. बहुत खूब, यथार्थ बयां करती कविता !
    आदतन दो lines मैं भे जोड़ रहा हूँ :)
    और जिन्होंने इन्हें
    गद्दी पर बिठाया,
    उनके लिए धिक्कार है !

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  4. छोटे बहर की ग़ज़ल
    बहुत शानदार है !!

    एक कोशिश मेरी भी...

    वोट आ जाएँ झोली में
    बाकी बातें बेकार हैं

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  5. छोटे बहर की बड़ी ग़ज़ल
    गई बहुत जियादा मचल
    भाई इसे लिये जा रही हूँ
    सपताहान्त नई-पुरानी हलचल में
    इसी शनिवार..15-9 को
    आप भी आइयेगा..नई-पुरानी हलचल में
    इसी शनिवार..15-9 को
    सादर

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  6. इतने छोटे बहर में इतनी अर्थपूर्ण गजल। बढिया लगी।

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  7. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है ......बहुत सही ..सुन्दर गजल .

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  8. वाह आज के हालातों को खूब बयां किया है आपने , बधाई स्वीकारें

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  9. सुन्दर समसामयिक पर ये छोटी बहार की ग़ज़ल कमाल की है .....पहले शेर में 'आवाम में' होना चाहिए था ....मुझे ऐसा लगा ।

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  10. हालात बद् से बद्दतर हुए जा रहे हैं..सटीक रचना.

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  11. आज की परिस्थिति को उजागर करने में सफल रचना | सुन्दर रचना |
    गमगीन बहुत है अब ये बात
    क्युकी चरों तरफ है भ्रष्टाचार |

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  12. समसामायिक रचना..बहुत उम्दा गजल..

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  13. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है ...yahi hai aaj ka sach aur khasiyat

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  14. बहुत बेहतरीन गजल
    आज के हालात पर सटीक बैठती हुई...
    :-)

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  15. जनता लाचार है, हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं... सटीक अभिव्यक्ति

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  16. कम शब्दों में बड़े भाव समेटना आपके हस्ताक्षर हैं।

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  17. घेराव की न सोचना
    मुस्तैद पहरेदार है

    रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है

    मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है

    the truth of life and TODAY

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  18. सामयिक,सटीक रचना .अच्छी लगी .

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  19. आज के हालातों को खूब बयां किया है आपने नासवा जी

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  20. 'जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा ',
    और फिर भी लाचार जनता?
    जन का ही विवेक गया है मारा ! !

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  21. gazal ke madhyam se itna gahra kataksh aap hi kar sakte hain bas!

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  22. बहुत खूब अशआर हुए हैं भाई. छोटी बहर की बात ही और है.

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  23. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है ....
    बेहद सशक्‍त पंक्तियां ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  24. आज के हालात ऐसे ही हैं .क्या करे..

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  25. वर्तमान परिवेश को बयां करती सुंदर कविता..

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  26. बहुत खूब कह डाला आपने आज का सत्य.
    'मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है'

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  27. भाई वाह ...


    रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है


    आसमान से बातें करती बिल्डिंगों के बगल..
    झोपड़ी डाले ... नग्न इंसान हैं.

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  28. प्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा
    सकते में ये सरकार है ,खाने लगी है कोयला ,हगने लगी अंगार है .इसका विस्तार जल्दी वागीश मेहता जी के संसर्ग संपर्क दूर ध्वनी से किया जाएगा .ये तो मेरा अनर्गल प्रलाप है .भेड़ों ने ओढ़ी ,शेर की खाल है ,धिक्कार है धिक्कार है ,सरकार को धिक्कार ,ये हिंद की सरकार है .
    बहुत बढ़िया छोटी बहर का अंदाज़ है ,बेहद का असरदार है ,.इक बे -असर सरदार है

    जवाब देंहटाएं

  29. प्रतिपक्ष है ऐंठा हुवा
    सकते में ये सरकार है ,खाने लगी है कोयला ,हगने लगी अंगार है .इसका विस्तार जल्दी वागीश मेहता जी के संसर्ग संपर्क दूर ध्वनी से किया जाएगा .ये तो मेरा अनर्गल प्रलाप है .भेड़ों ने ओढ़ी ,शेर की खाल है ,धिक्कार है धिक्कार है ,सरकार को धिक्कार ,ये हिंद की सरकार है .
    बहुत बढ़िया छोटी बहर का अंदाज़ है ,बेहद का असरदार है ,.इक बे -असर सरदार है

    जवाब देंहटाएं
  30. काश रोटी भी मिल बांटकर खाते |
    आज का सत्य |

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  31. इस शायरी को क्या कहें,
    हर ओर जयजयकार है!!

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  32. आज के हालात का
    बयान ये साकार है ।

    जनता की हालत है कि
    लाचार है लाचार है ।

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  33. वाह ..आज की परिस्थिति में जो कहना चाहते हैं वो बयान करा है ..
    मेरे ब्लॉग कलमदान पर पधारने के लिए आभार ..

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  34. सेवक हैं जनता के मगर
    राजाओं सा व्यवहार है

    छोटी बहर में मारक ग़ज़ल है भाई...दाद कबूल करें...

    नीरज

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  35. आज के हालात का एकदम सही वर्णन किया आपने...सच में यही हाल है..बढ़िया ग़ज़ल ..बधाई दिगंबर जी

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  36. घेराव की न सोचना
    मुस्तैद पहरेदार है

    बहुत सही कहा आपने। बधाई!

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  37. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है ............बहुत खूब



    और ऐसा करने वाली अपनी ही सरकार है ....

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  38. आज के हालात का सजीव चित्रण.

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  39. सशक्‍त पंक्तियां, समसामयिक भाव......

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  40. बहुत सही और तीखा कटाक्ष ....

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  41. सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

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  42. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.

    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

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  43. कम शब्दों मे बहुत कुछ कह डाला

    जवाब देंहटाएं
  44. मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है
    satya vachan ...
    ajkal bura haal hai ...!!

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  45. यथार्थ ज़ाहिर करती कविता

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  46. करने होंगे खुद के हौंसले बुलंद
    जो करनी कामिल हर दरकार है
    जो उठ कर भी जागे नहीं
    तो हर सुबह उठना बेकार है
    कह गए है हमारे दिग्गज नेता
    स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है
    भ्रष्टाचार की कैद के आगे,
    न होना हम को लाचार है
    मिल कर सब को जगाना होगा
    जो करते इन्कार इन्कार है !

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  47. घेराव की न सोचना
    मुस्तैद पहरेदार है
    चारों तरफ है शोर ये ,
    अपराध ही सरकार है .

    आपकी टिपण्णी हमारा हौसला बढा गई .शुक्रिया .

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  48. मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है
    यथार्थ ज़ाहिर करती कविता

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  49. सारी बहरें ग़र ऐसे ही, मिल कर एक संदेश दें,तो बहरों को भी सुनाई दे!

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  50. आपकी रचना से पूरी तरह सहमत |

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  51. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है

    मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है .....wah,behad samyik....

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  52. देश के हालत से व्यथित ह्रदय कि हृदयस्पर्शी रचना!

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  53. नपे तुले धारदार शब्दों में विसंगतियों का सटीक निरूपण..

    बेजोड़ कृति...

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  54. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है

    ..बहुत खूब! बहुत सटीक और बेहतरीन प्रस्तुति..

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  55. है दिख रही छोटी मगर
    रचना बड़ी दमदार है
    छूकर जरा देखें इसे
    उफ् तेज ये तलवार है
    जय हो दिगम्बर नासवा
    आभार है,आभार है
    छोटी बहर की ये गज़ल
    स्वीकार है,स्वीकार है |

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  56. रोटी नहीं इस देश में
    मंहगी से मंहगी कार है
    मिल बाँट कर खाते हैं पर
    इन्कार है इन्कार है

    .vartmaan halaton ka sateek chitran..

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है