स्वप्न मेरे: कोयला खादान का एक मजदूर ...

बुधवार, 11 जनवरी 2012

कोयला खादान का एक मजदूर ...

आँखों में तैरती प्रश्नों की भीड़
मुँह में ज़ुबान रखने का अदम्य साहस

दिल में चिंगारी भर गर्मी
और जंगल जलाने का निश्चय

पहाड़ जैसी व्यवस्था
और दो दो हाथ करने की चाह
साँस लेता दमा
और हाथों में क्रांति का बिगुल

हथोड़े की चोट को
शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू

उसे तो मरना ही था

कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...

82 टिप्‍पणियां:

  1. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
    जिस्म के पसीने से निकलती
    गाड़े लाल रंग की बू
    संघर्ष करते मजदूर की मनोदशा को बहुत प्रभावी ढंग से रक्खा है...सशक्त उम्दा रचना....

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  2. एक मजदूर के मनो दशा की बहुत सुंदर प्रभावी चित्रण,बेहतरीन रचना,बधाई
    welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--

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  3. "दिल में चिंगारी भर गर्मी
    और जंगल जलाने का निश्चय"-bahut khub...!!

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  4. बहुत सही अभिव्यक्ति ...बेहतरीन रचना

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  5. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...
    इन पंक्तियों में गहरा कटाक्ष है .. सुन्दर रचना

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  6. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
    जिस्म के पसीने से निकलती
    गाड़े लाल रंग की बू
    बहुत प्रभावशाली रचना, नए बिंबों का प्रयोग...

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  7. काश यही सब सफ़ेद वसन धारी कोयले के दलालों के साथ भी होता, बहुत सुन्दर !

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  8. बहुत बहुत बधाई |
    बढ़िया प्रस्तुति ||

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  9. बहुत ही मर्मस्पर्शी काव्य चित्र।


    सादर

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  10. गहरी और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..

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  11. वर्ग संघर्ष को रूपायित करती रचना .कोयले की दलाली वालों को ललकारती सी .

    उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

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  12. हथौड़े से कुचली जाती ऐसी कितनी ही क्रांतियाँ ..

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  13. बहुत ही गहरा कटाक्ष..बहुत बहुत.

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  14. कमाल की पंक्तियाँ हैं और क्लाइमैक्स मन को बींध देता है!!

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  15. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...
    तल्ख़ और सटीक ...

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  16. बेहद मार्मिक ।
    कोयला खदान में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी को सही उजागर किया है ।
    बेहतरीन ।

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  17. झारखण्ड से निकटता के कारण यह कविता और इसका पात्र मेरे बहुत करीब है... दिल को छू रही है कविता...

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  18. रंग भी बदला लेता है, कमीज को यह तथ्य समझना होगा।

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  19. उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    ...लाज़वाब सटीक अभिव्यक्ति..

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  20. वाह..
    गज़ब की व्यंगात्मक रचना...
    हृदयस्पर्शी..
    सादर.

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  21. पहाड़ जैसी व्यवस्था ,
    और दो दो हाथ करने की चाह ,
    साँस लेता दमा ,
    और हाथों में क्रांति का बिगुल.... !
    काला सोना , निकालने वालों की , सच्ची तस्वीर.... !!

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  22. एक मजदूर के मनो दशा का सटीक चित्रण ,बेहतरीन रचना,बधाई...........

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  23. आँखों में तैरती प्रश्नों की भीड़
    मुँह में ज़ुबान रखने का अदम्य साहस
    उसे तो मरना ही था
    सच्चाई है, खून से सनी...

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  24. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था....

    ओह! रचना आँखों में छप सी गयी है सर...
    उत्कृष्ट भाव संयोजन बाँध लेता है...
    सादर बधाई...

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  25. नैतिक बल सबसे अधिक ताकतवर होता है !

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  26. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति

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  27. रंग बचाए रखा इसलिए जान गयी. समझौता कर लेता तो बच जाता.

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  28. और हाथों में क्रांति का बिगुल
    बहुत बढ़िया

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  29. बहुत ही सहज और चोट करती मार्मिक रचना। पढकर कवि धूमिल की याद आ गई। बहुत बहुत बधाई।

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  30. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द

    संघर्ष का यथार्थ चित्रण ...

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  31. कम शब्‍दों में गहरी और गंभीर बात कहती है आपकी कविता। कोई शक नहीं कि झझकोर देती है। बधाई।
    *
    आदत से मजबूर हूं और कविता का मजदूर हूं। इसलिए कहना चाहता हूं कि आपको इस कविता के अंत पर फिर से विचार करना चाहिए। वास्‍तव में सफेद कमीज बनाम सफेद कालर का मुहावरा उन लोगों के लिए इस्‍‍तेमाल होता है जो श्रम से दूर भागते हैं या फिर बिना श्रम किए ही औरों की सम्‍पति पर हक जमाना चाहते हैं। थोड़े और विस्‍तार में जाएं तो अंदर ही अंदर गलत काम करने वाले और ऊपर से अपने को ईमानदार दिखाने वाले लोगों के लिए सफेदपोश शब्‍द का उपयोग होता रहा है।

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  32. यथार्थ का बहुत बढ़िया चित्रण

    Gyan Darpan
    ..

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  33. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
    जिस्म के पसीने से निकलती
    गाड़े लाल रंग की बू

    उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...
    उफ...... , मन को छूती संवेदनशील रचना.

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  34. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  35. लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना

    आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

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  36. आह!
    उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...
    हकीकत तो आप ने ही ... बयाँ कर दी|

    शुभकामनाएँ !

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  37. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    ओह!! बहुत ही प्रभावी कविता

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  38. गहन अभिव्यक्ति के साथ बहुत ही प्रभावशाली रचना....

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  39. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था... लाजवाव

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  40. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
    जिस्म के पसीने से निकलती
    गाड़े लाल रंग की बू

    उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    ....एक कटु सच जो सफ़ेदपोश कभी नहीं समझ पाता..
    ..बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...आभार

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  41. बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .

    नीरज

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  42. waah kitna umda likha hai aap ne bahut hi behtereen rachna....pahli baar blog par aana hua khushi huee yhan aakr....

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  43. बेहद मार्मिक,
    बढ़िया चित्रण !
    आभार !!

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  44. जिनकी कमीज़ सफ़ेद होती है, गंदा हो जाने का डर उन्हें ही सबसे ज़्यादा सताता है।

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  45. भाई दिगम्बर नासवा जी बहुत ही सुन्दर कविता |

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  46. नासवा जी ,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,और शब्द संयोजन |
    आशा

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  47. कम शब्दों में इतनी सारी बातें कहने वाली कविता बहुत दिन बाद पढ़ रहा हूं। यही हमारे समय का यथार्थ है और सत्यधर्मियों,ईमानदारों की नियती।

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  48. गहन सोच के साथ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  49. बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया चित्रण रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

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  50. उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    ओह क्या भाव है रचना के.

    बेहतरीन

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  51. NAMASKAR NASVA JI
    BAHUT HI MARMIK VARNAN .........GHAYAL HO GAYA DIL ...SHABD HO GAYE GUM ......SARTH PRABHAVSHALI CHITRAN .

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  52. हृदय को झझकोरने वाली अभिव्यक्ति,
    लाजवाब.....बधाई.....

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  53. उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    निशब्द कर दिया इस प्रस्तुति ने. आपकी कव्यधार्मिता को नमन.

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  54. रचना अच्छी लगी| मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ|

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  55. कोयले की दलाली में हाथ काला... आपने दामन बचाए रखा.. बधाई॥

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  56. उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    मार्मिक अभिव्यक्ति.

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  57. हथोड़े की चोट को
    शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
    जिस्म के पसीने से निकलती
    गाड़े लाल रंग की बू

    क्या बात है !
    बहुत कुछ कह जाती हैं आपकी कविताएं।

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  58. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...
    nishabd karti rachna....aabhar

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  59. उसे तो मरना ही था

    कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था.very nice n marmik ahivaykti.

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  60. एक मर्म को स्वर देती उत्कृष्ट रचना को नमन...

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  61. लाजवाब और उम्दा रचना! बधाई!

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  62. कोयले की खादान में रह कर
    कमीज़ का रंग सफेद जो था...

    गहरी अभिव्यक्ति...

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  63. मार्मिक,भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी.
    हर शब्द मानो हथोड़ा चला रहा हो.

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  64. कल 04/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है