आँखों में तैरती प्रश्नों की भीड़
मुँह में ज़ुबान रखने का अदम्य साहस
दिल में चिंगारी भर गर्मी
और जंगल जलाने का निश्चय
पहाड़ जैसी व्यवस्था
और दो दो हाथ करने की चाह
साँस लेता दमा
और हाथों में क्रांति का बिगुल
हथोड़े की चोट को
शब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
उसे तो मरना ही था
कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
Uf! Dil dahal gaya!
जवाब देंहटाएंहथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
संघर्ष करते मजदूर की मनोदशा को बहुत प्रभावी ढंग से रक्खा है...सशक्त उम्दा रचना....
बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंएक मजदूर के मनो दशा की बहुत सुंदर प्रभावी चित्रण,बेहतरीन रचना,बधाई
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
"दिल में चिंगारी भर गर्मी
जवाब देंहटाएंऔर जंगल जलाने का निश्चय"-bahut khub...!!
बहुत सही अभिव्यक्ति ...बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था...
इन पंक्तियों में गहरा कटाक्ष है .. सुन्दर रचना
हथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
बहुत प्रभावशाली रचना, नए बिंबों का प्रयोग...
काश यही सब सफ़ेद वसन धारी कोयले के दलालों के साथ भी होता, बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंACHCHHI PRASTUTI
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी काव्य चित्र।
जवाब देंहटाएंसादर
गहरी और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंवर्ग संघर्ष को रूपायित करती रचना .कोयले की दलाली वालों को ललकारती सी .
जवाब देंहटाएंउसे तो मरना ही था
कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
हथौड़े से कुचली जाती ऐसी कितनी ही क्रांतियाँ ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरा कटाक्ष..बहुत बहुत.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - " The Politician Who Made No Money - लाल बहादुर शास्त्री " - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंकमाल की पंक्तियाँ हैं और क्लाइमैक्स मन को बींध देता है!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है |
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था...
तल्ख़ और सटीक ...
बेहद मार्मिक ।
जवाब देंहटाएंकोयला खदान में काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी को सही उजागर किया है ।
बेहतरीन ।
झारखण्ड से निकटता के कारण यह कविता और इसका पात्र मेरे बहुत करीब है... दिल को छू रही है कविता...
जवाब देंहटाएंरंग भी बदला लेता है, कमीज को यह तथ्य समझना होगा।
जवाब देंहटाएंउसे तो मरना ही था
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
...लाज़वाब सटीक अभिव्यक्ति..
वाह..
जवाब देंहटाएंगज़ब की व्यंगात्मक रचना...
हृदयस्पर्शी..
सादर.
ek gahri abhivyakti...
जवाब देंहटाएंपहाड़ जैसी व्यवस्था ,
जवाब देंहटाएंऔर दो दो हाथ करने की चाह ,
साँस लेता दमा ,
और हाथों में क्रांति का बिगुल.... !
काला सोना , निकालने वालों की , सच्ची तस्वीर.... !!
एक मजदूर के मनो दशा का सटीक चित्रण ,बेहतरीन रचना,बधाई...........
जवाब देंहटाएंआँखों में तैरती प्रश्नों की भीड़
जवाब देंहटाएंमुँह में ज़ुबान रखने का अदम्य साहस
उसे तो मरना ही था
सच्चाई है, खून से सनी...
कोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था....
ओह! रचना आँखों में छप सी गयी है सर...
उत्कृष्ट भाव संयोजन बाँध लेता है...
सादर बधाई...
नैतिक बल सबसे अधिक ताकतवर होता है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरंग बचाए रखा इसलिए जान गयी. समझौता कर लेता तो बच जाता.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
और हाथों में क्रांति का बिगुल
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बहुत ही सहज और चोट करती मार्मिक रचना। पढकर कवि धूमिल की याद आ गई। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंहथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
संघर्ष का यथार्थ चित्रण ...
कम शब्दों में गहरी और गंभीर बात कहती है आपकी कविता। कोई शक नहीं कि झझकोर देती है। बधाई।
जवाब देंहटाएं*
आदत से मजबूर हूं और कविता का मजदूर हूं। इसलिए कहना चाहता हूं कि आपको इस कविता के अंत पर फिर से विचार करना चाहिए। वास्तव में सफेद कमीज बनाम सफेद कालर का मुहावरा उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जो श्रम से दूर भागते हैं या फिर बिना श्रम किए ही औरों की सम्पति पर हक जमाना चाहते हैं। थोड़े और विस्तार में जाएं तो अंदर ही अंदर गलत काम करने वाले और ऊपर से अपने को ईमानदार दिखाने वाले लोगों के लिए सफेदपोश शब्द का उपयोग होता रहा है।
यथार्थ का बहुत बढ़िया चित्रण
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
व्यथा भरी पंक्तियाँ!!
जवाब देंहटाएंbahut marmik rachna...!
जवाब देंहटाएंहथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
उसे तो मरना ही था
कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
उफ...... , मन को छूती संवेदनशील रचना.
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
आह!
जवाब देंहटाएंउसे तो मरना ही था
कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
हकीकत तो आप ने ही ... बयाँ कर दी|
शुभकामनाएँ !
कोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था...
ओह!! बहुत ही प्रभावी कविता
गहन अभिव्यक्ति के साथ बहुत ही प्रभावशाली रचना....
जवाब देंहटाएंBahut badhiya rachana hai!
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था... लाजवाव
हथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
उसे तो मरना ही था
कोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
....एक कटु सच जो सफ़ेदपोश कभी नहीं समझ पाता..
..बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...आभार
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .
जवाब देंहटाएंनीरज
waah kitna umda likha hai aap ne bahut hi behtereen rachna....pahli baar blog par aana hua khushi huee yhan aakr....
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक,
जवाब देंहटाएंबढ़िया चित्रण !
आभार !!
जिनकी कमीज़ सफ़ेद होती है, गंदा हो जाने का डर उन्हें ही सबसे ज़्यादा सताता है।
जवाब देंहटाएंओह!
जवाब देंहटाएंभाई दिगम्बर नासवा जी बहुत ही सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंनासवा जी ,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,और शब्द संयोजन |
जवाब देंहटाएंआशा
कम शब्दों में इतनी सारी बातें कहने वाली कविता बहुत दिन बाद पढ़ रहा हूं। यही हमारे समय का यथार्थ है और सत्यधर्मियों,ईमानदारों की नियती।
जवाब देंहटाएंगहन सोच के साथ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया चित्रण रचना अच्छी लगी.....
जवाब देंहटाएंnew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
उसे तो मरना ही था
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
ओह क्या भाव है रचना के.
बेहतरीन
NAMASKAR NASVA JI
जवाब देंहटाएंBAHUT HI MARMIK VARNAN .........GHAYAL HO GAYA DIL ...SHABD HO GAYE GUM ......SARTH PRABHAVSHALI CHITRAN .
हृदय को झझकोरने वाली अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंलाजवाब.....बधाई.....
उसे तो मरना ही था
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
निशब्द कर दिया इस प्रस्तुति ने. आपकी कव्यधार्मिता को नमन.
रचना अच्छी लगी| मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंकोयले की दलाली में हाथ काला... आपने दामन बचाए रखा.. बधाई॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ...
जवाब देंहटाएंउसे तो मरना ही था
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था...
मार्मिक अभिव्यक्ति.
हथोड़े की चोट को
जवाब देंहटाएंशब्दों में ढालने की जंगली जिद्द
जिस्म के पसीने से निकलती
गाड़े लाल रंग की बू
क्या बात है !
बहुत कुछ कह जाती हैं आपकी कविताएं।
कोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था...
nishabd karti rachna....aabhar
उसे तो मरना ही था
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
कमीज़ का रंग सफेद जो था.very nice n marmik ahivaykti.
एक मर्म को स्वर देती उत्कृष्ट रचना को नमन...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना |
जवाब देंहटाएंलाजवाब और उम्दा रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंकोयले की खादान में रह कर
जवाब देंहटाएंकमीज़ का रंग सफेद जो था...
गहरी अभिव्यक्ति...
badhiya rachna ........
जवाब देंहटाएंमार्मिक,भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी.
जवाब देंहटाएंहर शब्द मानो हथोड़ा चला रहा हो.
Atulneey .
जवाब देंहटाएंकल 04/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
very touchy
जवाब देंहटाएंmajdoor ke jeevan ke prati marmik
जवाब देंहटाएंabhivyakti.