स्वप्न मेरे: माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली

हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली

आज भी आँगन में वो पीपल खड़ा है
पर नही आती है वो कोयल सुरीली

नल खुला रखती है आँगन का हमेशा
सूखती जाती है पर फिर भी चमेली

अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

अब नही करती है वो बातें किसी से
बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली

उम्र के इस दौर में खुद को समझती
काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

हो गये हैं अनगिनत तुलसी के गमले
पर है आँगन की ये वृंदा आज पीली

92 टिप्‍पणियां:

  1. हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
    माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली ।


    बहुत खूब ...हर पंक्ति लाजवाब ..।

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  2. "उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली "
    बहुत सम्वेदन्शील रचना... मन को छू गयी हर पन्क्ती

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  3. दर्द ! बहुत असहाय है इन्सान ! कई बार सब कुछ होते हुए भी, इस दुखद पहलू का कोई उपाय हमारे पास चाहकर भी नहीं होता !

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  4. lajawab abhivykti.......ye dukh sab kuch cover kar deta hai.......ateet vartmaan par bharee padta hai...

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  5. बहुत खूब
    हर पंक्ति लाजवाब
    आभार!

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  6. bahut umda post...maine bhi maa par ek post likha hai aapki nazar pade to
    khushi hogi.

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  7. वो कहते हैं, दीवार के बीच दरार आ गई,
    मैं कहता हूं, दरार आई तो बीच में दीवार आ गई...

    किसी के हिस्से मकां आया, किसी के हिस्से दुकान आई,
    मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई...

    मां तो है मां, मां जैसा है कोई और कहां...

    जय हिंद...

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  8. उफ़ ……………झकझोर कर रख दिया…………कितने कटु सत्य को कितनी सरलता से कह दिया…………मां …………अब क्या कहूँ इसके आगे……………ना जाने कितना कुछ टूट सा गया अन्दर्।

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  9. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    इतना सटीक और मार्मिक चित्रण..अंतस को झकझोर दिया..कौन समझता है इनका दर्द..बहुत मर्मस्पर्शी रचना

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  10. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...हर पंक्ति लाजवाब .. माँ जैसा कोई नहीं... माँ तो बस माँ है..

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  11. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली.
    बेहद भावपूर्ण और सुन्दर रचना.हर पंक्ति दिल को छूती है.

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  12. आँखें सूख गयी है,
    पर यादें हैं गीली।

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  13. अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली॥

    भावुक कर दिया इस रचना ने।

    .

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  14. बेहतरीन कविता ..... बस फिर से याद गयी तुम माँ

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  15. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...मन को झकझोर देने कि क्षमता रखती रचना

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  16. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    माँ के अकेलेपन की व्यथा बयाँ करती...बहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ

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  17. दर्दे-दिल को छू गयी ..यह कविता !

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  18. अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली
    ... us trunk mein asli motee hote hain jivan ke

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  19. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  20. दिगम्बर भाई सच में आज आपने इस ग़ज़ल की संवेदना से रुला दिया।
    आज भी आँगन में वो पीपल खड़ा है
    पर नही आती है वो कोयल सुरीली

    नल खुला रखती है आँगन का हमेशा
    सूखती जाती है पर फिर भी चमेली
    • इस ग़ज़ल के द्वारा आपने आसन्‍न संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।

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  21. वृद्ध , असहाय और एकाकी मां के जीवन का हृदय विदारक वर्णन ।
    बेहतरीन ।

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  22. हो गये हैं अनगिनत तुलसी के गमले
    पर है आँगन की ये वृंदा आज पीली
    Aah!

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  23. "उम्र के इस दौर में खुद को समझती

    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली


    हो गए हैं अनगिनत तुलसी के गमले

    पर है आँगन की ये वृंदा आज पीली "

    ******************************

    भाव और बिम्ब ...क्या कहने !

    उम्दा ग़ज़ल ....हर शेर लाजवाब

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  24. शानदार ग़ज़ल है...मतला बहुत अच्छा लगा

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  25. आदरणीय नासवा जी
    नमस्कार !
    बहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  26. नासवा जी ........कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  27. अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली

    उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    हो गये हैं अनगिनत तुलसी के गमले
    पर है आँगन की ये वृंदा आज पीली

    रचना के गहन भावों ने मन को आर्द्र कर दिया।

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  28. ओह!! सीधे भेद गई यह रचना तो....अद्भुत!!


    नल खुला रखती है आँगन का हमेशा
    सूखती जाती है पर फिर भी चमेली

    जवाब देंहटाएं
  29. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    बहुत भावनात्मक और हृदयस्पर्शी रचना

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  30. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    बहुत भावनात्मक और हृदयस्पर्शी रचना

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  31. ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत बढ़िया हैं!
    --
    मैं इसे उम्दा और मुक्म्मल गजल कह सकता हूँ!

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  32. नासवा जी आपकी इस रचना ( गज़ल) का कोई ज़वाब नहीं ,मां के प्रति ऐसी बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत ही कम देखने को मिलती है मां की पीड़ा को आपने अपने आंसुओं से लिखा है बहुत बहुत मुबारकबाद।

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  33. bahut sunder rachna hai.......aapki rachnaye bahut prabhavit karti hai manko,pahle bhi bahut baar apke blog par aai hun...mere blog par swagat hai.shukriya....

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  34. तारीफ़ का हर शब्द कम है....हर पंक्ति के विषय में कुछ कहना चाहती हूँ.... बस इतना ही कहूँगी कि आँखों में आंसू आ गए पढ़कर .....

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  35. बहुत खूब ... लाजवाब कविता. आभार.

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  36. नासवा जी, पूरी ग़ज़ल अनुपम लगी, सो कोई शेर कोट नहीं कर रहा हूं,
    कमाल के भाव हैं, बिल्कुल ट्रंक जैसे...जिसे आपके कलाम ने बखूबी दिखाया है.

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  37. उम्र के इस दौर में अकेलापन और भावनात्मक लगाव का सुंदर चित्रण

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  38. झाडती रहती है कमरे को हमेशा ...
    आँगन की यह वृंदा पीली ...
    नम पलके , भरे गले से कुछ कहने की स्थिति में होती तो कोई टिप्पणी लिखी जाती ...
    बेहद भावपूर्ण !

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  39. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    बहुत दर्द भरी रचना है और इस माँ के आँसुओं के दर्पण में ना जाने कितनी माँओं को अपना प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा होगा ! शायद उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचने के बाद माँ के नसीब में यही हासिल रह जाता है ! बहुत संवेदनशील प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  40. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  41. हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
    माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली
    मत्ला बहुत मार्मिक.
    और ये शेर :-
    अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली॥
    लाजवाब लाजवाब.

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  42. अब्बा की त्क्सीम हो चुकी हवेली से आँगन की वृंदा तक के सफ़र में नल-चमेली-पतीली-ट्रंक और पनीली आँखों से खूब मुलाकात करवाई है दिगंबर भाई| बधाई|

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  43. कई बार शब्द भावों को अभिव्यक्त करने में अशक्त होते है , मेरे पास शब्द कम पड गए .

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  44. SEEDHE - SAADE SHABDON MEIN
    MARMIK BHAAV . RACHNA MUN KO
    SPARSH KAR GAYEE HAI .

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  45. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली .....

    लाजवाब. खूबसूरत गजल.

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  46. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    वाह! क्या उम्दा ग़ज़ल कही है आपने!

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  47. अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली

    उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।

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  48. अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली

    उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली
    ..बेहद भावनात्मक और दिल को छूने वाली उम्दा रचना..

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  49. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली
    poori rachna hi khoobsurat hai ,har baat dil ko chhoo gayi .badhai .

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  50. Behad marmsparshi kavita.. har pankti maa ki nayi tasveer samne le kar aayi :)

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  51. aadarniy sir
    aapki is post ne mujhe nishabd kar diya hai .kya likhun
    kitna dard kitni marm ko chho lene wali bhavnaye------chhupi hain aapki is rachna me.
    अब नही करती है वो बातें किसी से
    बस पुराना ट्रंक है उसकी सहेली .
    maa- bas jhakjhor gai hai dil ko
    behad mrmik abhivykti
    sadar badhai
    poonam

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  52. हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
    माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली

    बहुत उम्दा चित्रण.

    उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    क्या लिखूं ,शब्द नहीं मेरे पास.
    सलाम.

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  53. jahan 'maa' ho..kuch bhi achuta nahi rehta.ye ek aisa sparsh hai jo rom rom mein basta hai!

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  54. आपकी ये रचना अंदर तक झकझोरती है। बेहद भावपुर्ण।

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  55. आद्योपांत लाजवाब कृति नासवा जी।

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  56. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली.

    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर में निराला अंदाज है आपका. बधाई एवं शुभकामनायें.

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  57. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली


    बहुत खूब.

    जवाब देंहटाएं
  58. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली

    वेदना के अहसास का जबर्दस्त चित्रण ।

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  59. दिगंबर जी आप का तो जवाब नहीं बिल्कुल चित्रित कर देते हो आप
    बहुत ही आत्मावषित कविता है सुन्दर
    बहुत बहुत शुभकामना

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  60. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली
    छूती हुई रचना ... बेहतरीन

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  61. भाई दिगंबर जी अगर आज आप सामने होते तो गले से लगा लेता...क्या ग़ज़ल कही है आपने...सुभान अल्लाह...मेरा अब तक का लिखा सारा इस ग़ज़ल पर कुर्बान...कसम से दिल खुश कर दिया भाई...वाह...एक एक शेर पे आंसू टपकता है...सलाम है आपकी कलम को...दिगंबर भाई...जिंदाबाद...जिंदाबाद...

    नीरज

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  62. झाड़ती रहती है कमरे को हमेशा
    फिर भी आ जाती हैं कुछ यादें हठीली

    बहुत ही सुन्दर और दिल को छुं लेने वाली रचना ...

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  63. बहुत गहराई से सुंदर शब्दों से सजाया है पोस्ट को बहुत बहुत बधाई |आपकी लेखनी में तो जादू है |
    आशा

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  64. bahut se blogs par visit krne k baad, ek sarthak poem mili h.....sach me jab kuchh b bakwas likh rhe h, aapka lekhan prashansniye h.

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  65. नल खुला रखती है आँगन का हमेशा
    सूखती जाती है पर फिर भी चमेली

    शेरों में जीवन की सारी संवेदना समेट कर रख दी है आपने !
    मुक्कमल ग़ज़ल !

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  66. गहन संवेदनात्मक और मन को छू लेने वाली प्रस्तुति !

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  67. एक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?

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  68. उम्र के इस दौर में खुद को समझती
    काँच के बर्तन में पीतल की पतीली
    ...सभी शेर लाज़वाब हैं मगर यह अनूठा है। माँ के दर्द को, कोमल ममता को इससे अच्छा कैसे अभिव्यक्त किया जा सकेगा भला!

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  69. हमेशा देर से आने का अफसोस रहता है..आज पंखा बन लटक ही जाता हूँ।

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  70. बहुत ही सुन्दर और दिल को छुं लेने वाली रचना|

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  71. नसवा जी
    कमाल कर दिया इस गजल में
    दिल को झकझोर दिया
    उम्दा शेर
    आज भी आँगन में वो पीपल खड़ा है
    पर नही आती है वो कोयल सुरीली

    बधाई ................!

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  72. बहुत सुंदर गज़ल भाई दिगम्बर जी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

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  73. हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
    माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली
    "यहाँ से जो पढना शुरू किया तो ................हो गये हैं अनगिनत तुलसी के गमले
    पर है आँगन की ये वृंदा आज पीली ...यहाँ तक कौन कौन से दर्द से नहीं गुजरा ये दिल......जहन में जैसे आपके इन शब्दों ने बेसहारा माँ का ऐसा चित्र खींचा जो अभी तक नहीं निकल पा रहा है..."
    regards

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  74. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    क्या लिखा है

    हो गयी तक्सीम अब्बा की हवेली
    माँ तभी से हो गयी कितनी अकेली

    दिल को छूती हुई एक गम्भीर रचना...

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  75. अनगिनत यादों को आँचल में समेटे
    भीगती रहती हैं दो आँखें पनीली

    Digambar ji
    is pyaari-si,, nyaari-si
    mahaan rachnaa ke liye
    aapko
    dheroN dheroN dheroN
    s a l a a a m .

    जवाब देंहटाएं
  76. वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
    बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
    अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
    आपका मित्र दिनेश पारीक

    जवाब देंहटाएं
  77. वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
    बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
    अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
    आपका मित्र दिनेश पारीक

    जवाब देंहटाएं
  78. Jeevant shabd dharkan ko badha dete hain aur soch ke naye aayam ko kholte hain...ye gajal aisi hi hai...shukriya....

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है