हक़ीकत ले ही आती है उठा कर.
इबादत पर सियासत हो जहाँ पे,
निकल जाओ वहाँ से सर झुका कर. .
उन्हें भी प्यार हमसे हो गया है,
कभी तो बोल दें वो मुस्कुरा कर.
सभी क़ानून इनकी जेब में हैं,
बरी हो जाएँगे सब कुछ चुरा कर.
मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
कमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.
न उनको भूल पाए हम कभी भी,
चले आये थे यूँ सब कुछ भुला कर.
शिकारी जाल जितने भी बिछा लें,
परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर.
#स्वप्नमेरे
लाज़वाब अश'आर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
जवाब देंहटाएंकमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.
सटीक , सुंदर
आभार
सादर
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत और सटीक रचना ..दिगंबर जी ।
जवाब देंहटाएंwah!!!! ek ek sher moti hai!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंइबादत पर सियासत हो जहाँ पे,
जवाब देंहटाएंनिकल जाओ वहाँ से सर झुका कर. .
बहुत सटीक एवं लाजवाब
वाह!!
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