गुरुवार, 21 अप्रैल 2022
बातें - बातें ...
खुद से बात करना ... करते रहना ...
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हा हा तू ना होती तो ? हो के देखे तो सही कोई और हा हा
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-०४ -२०२२ ) को
'चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं'(चर्चा अंक-४४०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
खुद से किए गए वार्तालाप को रचना में ढाल देना बहुत बड़ी बात है ...!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई हो आपको!
@दिगम्बर नासवा जी, भावपूर्ण प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआपकी नज्म शैली में भावाभिव्यक्ति अद्भुत है। हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"कुछ सोचो और सुबह होते-होते कुछ याद भी न रक्खो ..."
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,मन सचमुच पागल है सोच में कहाँ से कहाँ पहुंच जाये कुछ पता नहीं,सादर नमन आपको
कितना अच्छा है कभी कभी नशे में डूब जाना, कुछ सोचो और सुबह होते-होते कुछ याद भी न रक्खो ...
जवाब देंहटाएंउफ़ कितना बे-फजूल सोचता है तू ...
......सच फिजूल की सोच से इंसान पगले जैसी हरकते लगता है
बहुत सुन्दर
फिर सोचता हूँ तुम्हारे आगे पीछे ही क्यों सोचता हूँ ... तुमसे आगे क्यों नहीं ...
जवाब देंहटाएंक्योंकि सोच सबों में तुम हो...बस जो भी हो तुमसे हो...ये सोच बे-फजूल नहीं प्यार का पागलपन है..
याद भी रखें तो कितना बे-इम्तिहा को...
वाह!!!
लाजवाब ।
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभी 'तू' और 'मैं' के बीच थोड़ा फ़ासला बाक़ी है.
जवाब देंहटाएंअभी इश्क की इंतिहा नहीं हुई है.
सही तो कहा 'बे फज़ूल' यानी अर्थपूर्ण . हर पंक्ति कितना कुछ कह रही है . आप कभी फुज़ूल कहते ही नहीं हैं .
जवाब देंहटाएंसर आपकी लेखनी में जादू है। एक आम से विचार को खास बना देते है।
जवाब देंहटाएंमन के पुर्जों तक को हिला देती हैं आपकी रचनायें ! बीच में कुछ दिन तक नहीं पढ़ पाया आपको तो लगा कुछ छूट सा रहा है जिंदगी में !!
जवाब देंहटाएंहृदय का आलोड़न, मन ही तो है कुछ बस कहां सोच पर।
जवाब देंहटाएंईमानदारी के भाव ।
इंसानी फितरत या इश्क है ये ....
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