कभी कभी बातों ही बातों में मन के आस पास उमड़ते घुमड़ते अनजाने कुछ शब्द, कोई कल्पना या रचना का रूप ले लेते हैं ..... प्रस्तुत है ऐसी ही एक रचना जो अनजाने ही उग आयी मन के आँगन में ..........
खूब है मासूम सी अदा
बोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
ग्वाल में राधा तू मेरी
बांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
हूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा
हूँ पथिक विश्राम कैसा
जवाब देंहटाएंआपसे लेता हूँ मैं विदा
बिलकुल विश्राम मत करिए , लिखते रहिये
सुन्दर लगा
ग्वाल में राधा तू मेरी
जवाब देंहटाएंबांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
सुन्दर शब्दों का समागम किया आपने नासवा साहब ! बहुत खूब !!
bahut hi sundar rachna.........badhayi
जवाब देंहटाएंहाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
इब्तदा ए इश्क है रोता है क्या ....
आगे आगे देखिये होता है क्या ...!!
हूँ पथिक विश्राम कैसा
जवाब देंहटाएंआपसे लेता हूँ मैं विदा
इतने सजीव शब्दों का चयन कर हर पंक्ति को आपने तो जीवंत ही कर दिया, बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, बधाई ।
हाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
यही प्रेम होता है ..:) बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना ..शुक्रिया
बहुत खूबसूरत रचना है जी
जवाब देंहटाएंस्पर्श से महका जो तेरे
जवाब देंहटाएंखिल रहा वो फूल सर्वदा
वाह क्या कहने
और भी
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
खूब है मासूम सी अदा
जवाब देंहटाएंबोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
एक रुमानी एहसास को जगाती हुई पंक्तियाँ......
जिसमे कुछ भिंगा भिंगा एहसास है जो मन मानस को मदहोशी के आलम तक ले कर जा रही है ......
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
मन के आंगन मे खिली धूप से प्रेम का सरसो लहलहा रही है और महबूबा एक कायनात की महारानी बन प्रकृति के सौन्दर्य से आपकी चाहत को मानो सजा रही हो ............
बहुत बहुत सुन्दर रचना.......बधाई!
खूब है मासूम सी अदा
जवाब देंहटाएंबोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
एक रुमानी एहसास को जगाती हुई पंक्तियाँ......
जिसमे कुछ भिंगा भिंगा एहसास है जो मन मानस को मदहोशी के आलम तक ले कर जा रही है ......
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
मन के आंगन मे खिली धूप से प्रेम का सरसो लहलहा रही है और महबूबा एक कायनात की महारानी बन प्रकृति के सौन्दर्य से आपकी चाहत को मानो सजा रही हो ............
बहुत बहुत सुन्दर रचना.......बधाई!
बहुत सुंदर शब्द संयोजन, उतने ही गहरे भाव, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
nice
जवाब देंहटाएंहाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
ye panktiyan bahut achchhee lagin.
urdu aur hindi ke shuddh shbdon ka sundar prayog kiya hai.
prem bhaav bhari yah rachna achchhee lagi.
vida le lo hona na juda
जवाब देंहटाएंbha gai ye aapki ada
bahut khoob digambar ji,
एक एक शब्द मन को छू रहा है भाव बहुत आत्मीय और सघन हैं . बधाई
जवाब देंहटाएंहूँ पथिक विश्राम कैसा
जवाब देंहटाएंआपसे लेता हूँ मैं विदा
Babut umda lagi aapki rachana. Videsh mein rahakar aapka hindi ke prati prem bahut achha laga.
Likhate rahiyega.
Badhai
सहज में बन गई रचना बड़ी खूब रचना है जी,,,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबधाई होई......
बहुत ही सुंदर लगी आप की यह रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
bahut sunder rachna par esse pichhli apki 3 rachnaye bahut bahut sunder thi..awesome...
जवाब देंहटाएंहाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
बहुत खुबसूरत रचना है.
सहज और सुंदर .
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी नमस्कार फीड ना मिलाने के नाते मै अभी आपके ब्लॉग पर आया ....
जवाब देंहटाएंआपके लिखे की क्या तारीफ़ करू बस अभिवादन स्वीकार करे
ग्वाल में राधा तू मेरी
जवाब देंहटाएंबांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा ।।
बहुत ही बढिया कविता! शब्दों और भावों का लाजवाब संयोजन !!
हाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
बेमिसाल, बेहतरीन वाह, वाह.......................
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
य्e ीसे ही केवल शब्दों से उपजी रचना नहीं है इसे आपकी संवेदनाओं ने खाद पानी दिया है और आप्के दिल की उपजाऊ धरती पर सुन्दर फूल बन के खिली है।
जवाब देंहटाएंहाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा लाजवाब रचना हमेशा की तरह बहुत बहुत बधाई
hriday sparshi bahut sundar !!
जवाब देंहटाएंग्वाल में राधा तू मेरी
जवाब देंहटाएंबांसुरी बजती यदा यदा..........waah
हाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
"jaki rhi bhavna jaisi tin murt dekhi taisi "
prem ki koi prakashtha nhi hoti
shbdo ka khubsurat sanyojan.
Bhaavpoorn बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना....वाह !!!
जवाब देंहटाएंबगैर किसी अलंकार के सुन्दर रचना.....दिल को छु लेने वाली ग़ज़ल नुमा कविता...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंहूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा
क्या खूब लिखा है।
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
बहुत ही मासूमियत भरा अशआर।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
anjane me hi to rachna ka uday hota he, aour jab is tarah ki rachna ka uday hota he to ise bagiya ka khoobsoorat ful mana jaa sakta he.
जवाब देंहटाएंहूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा,
yah darshata he aapke safar ko jo chareveti chareveti ...se prabhavit he...,ham katai nahi chahenge ki aap ruke..khoob likhe likhate rahe..anjane me hi sahi magar bemisaal likhte he.
अच्छी भली रोमांटिक कविता मगर अंत में विदा क्यों?
जवाब देंहटाएंलिखते रहिए ऐसे ही सुंदर कविता सर्वदा,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है आपके लिखने की यह अदा,
कुछ इस तरीके से शब्द पिरोए गये हैं,
जो भी पढ़ेगा निश्चित हो जाएगा फिदा,
गीत किसी भी प्रकार का हो आप उसमें जान डाल देते हैं..सुंदर कविता ..धन्यवाद जी..
sundar rachna... Naswa ji..
जवाब देंहटाएंJai Hind
खूब है मासूम सी अदा
जवाब देंहटाएंबोलती आँखें यदा कदा
होठ से तेरे जो निकले
गीत मैं गाता रहूँ सदा
स्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
ग्वाल में राधा तू मेरी
बांसुरी बजती यदा यदा
हाथ में सरसों खिली है
प्रेम की ये कैसी इब्तदा
मेघ धरती अगन वायु
कायनात तेरी सम्पदा
हूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा.......
kya baat hai..... aapne to nishabd kar diya......
ek komal ehsas aur rachnatamak sukh bhee...
जवाब देंहटाएंbahut sundar kahana hi kya ,main sabse pahale tippani karne aai thi aur bahut khush rahi ki aage tippani karungi magar box bahut koshish pe bhi nahi khula aur lautna pada .
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana .badhai !
जवाब देंहटाएं्बहुत ही सुन्दर एवं भा्वपूर्ण रचना --हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंपूनम
प्रेम पर लिखी गयी बेहतरीन रचना। दिगंबर जी हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहेमन्त
बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने अत्यन्त सुंदर रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है ! दिल को छू गई आपकी ये शानदार रचना!
जवाब देंहटाएंनासवा जी मुझे एक शब्द में "बेहतरीन'' कहने दीजिये...
जवाब देंहटाएंसीधी, सादी, नदी के बहते हुए शांत प्रवाह की तरह है आपकी यह गजल।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंहूँ पथिक विश्राम कैसा
आपसे लेता हूँ मैं विदा...
ये अंदाज़ पसंद आया
... bahut khoob, behatreen rachanaa !!!!
जवाब देंहटाएंइतने कम शब्दों में बड़ी बात कहना कठिन होता है ।
जवाब देंहटाएंमेघ धरती अगन वायु
जवाब देंहटाएंकायनात तेरी सम्पदा
kya baat hai! badhai!
हाथ में सरसों खिली है
जवाब देंहटाएंप्रेम की ये कैसी इब्तदा
itanaa gahra aur bhari she'r??..kya kha kar likha tha sir ji..humen bhi dijiye aisi koi recipe..Ultimate hai!!!
gagan ki spelling check kar lijiyega..second last sher me!!
maaf kijiyega thoda galat padh gaya tha is second last sher ko..ekdum sahi hai..sorry!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावाभिव्यक्ति हेतु साधुवाद....
जवाब देंहटाएंलिखते रहें आप ऐसा ही सदा
जवाब देंहटाएंदेता हूं आपको ये दिल से दुआ
अभी तो सरसों खिली है इश्क मे
कुछ दिनों के बाद बोलेंगे अरे ये क्या हुआ
vहरबार की तरह सुंदर रचना ,मगर यह विदा क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंअनजाने ही उग आयी मन के आँगन में .......... ati khoobsurti se ugii ye rachna !!
जवाब देंहटाएंस्पर्श से महका जो तेरे
खिल रहा वो फूल सर्वदा
होठ से निकले
जवाब देंहटाएंतो शब्द
आँख से निकले
तो अर्थ ......
Kya khoob kah diya...kuch aisa hi aaj likh raha hoon apne blog par...
Neelesh Jain
दिल से निकली हुई रचना हमेशा ही अनजाने ही उग आती है. बहुत सुन्दर भावों से ओतप्रोत रचना है.
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव,परफ़ेक्ट मीटर. एक मनभावन रचना.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा .विदा , शायद फिर आने के लिए .
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com