१)
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
बैसाखी भी तो नहीं मिलती
२)
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
वो देखो ...........
रेत के पीली समुन्दर में
शब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
वाह !!
जवाब देंहटाएंबस बार बार मन यही कह रहा है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
बस यही तलाश रह जाती है और शब्द यूँ ही अपने बात कहते रहते हैं ...शब्दों में जो एहसास है तलाश की वह दिल को छु लेती है ...
सुना है गुज़रे मुसाफिर
जवाब देंहटाएंलौट कर ज़रूर आते हैं
यही सच है वो गुजरेगा फिर इन रास्तो से होकर.
बहुत भावपूर्ण और संवेदनशील रचनाए
wo jaroor wapas aayenge.
जवाब देंहटाएंachchhe bhaav
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंमुई बैसाखी भी तो नहीं मिलती ....
बहुत सुन्दर भाव !
तुम तक पहुँचने से पहले
जवाब देंहटाएंलड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
इतनी बड़ी बात चंद लाइनों में वाह जी वाह,
नमस्कार
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
fir fir fir.....kya baat he digambarji, javaab nahi aapka|
जवाब देंहटाएंghayal shbdo ko mui besakhi bhi nahi milati...shbdo ko aap jis andaaz me vyakt kar rahe he vo anokha he| shbdo ka jangar ug aaya he aour vah bhi ret ke peele samundar me, ye jo pryog he vo anokha pryog he| aour fir shor se mahaknaa...shour se sirf shbd hi mahak sakte he..abhivyakti ki pyaas hi he jo gujare musafir ke intjaar me he| ..|
aap gazab ke he../
दिगम्बर जी
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाये हमेशा से ही मेरे दिल को छू जाती है ..........
वो शब्द ही होते है जो एहसास को जमा पहनाते है ..............यही शब्द जब सही जगह नही पहुंचते तो टुट कर बिखर जाते है ............
रेत के पीली समुन्दर में
शब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
यह तलाश भी बहुत ही अजीब सी होती है जो कभी खत्म भी होती है तो कभी लम्बी जिसका कोई अंत नही होता.............एक तरफ एक टीस पैदा करती है आपकी रचना तो दुसरी तरफ एक उम्मीद एक तलाश के रुप मे.........बहुत बहुत बहुत सुन्दर रचना ......बधाई!
bahut sundar . badhai.
जवाब देंहटाएंउफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंमुई बैसाखी भी तो नहीं मिलती
wah wah, lajawaab abhivyakti, digambar ji, badhai sweekaren.
"शोर से महकते जंगल को
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं"
कविता में बहुत मार्मिकता है!
शब्द-संयोजन बहुत बढ़िया है।
बहुत-बहुत बधाई!
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंमुई बैसाखी भी तो नहीं मिलती
लाजवाब शब्दों खअ सनुद्र् बह रहा है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
शब्द तो आपके पास ही लौट कर आयेंगे कहाँ जा सकते हैं आपसे अधिक कौन उन्हें जान सकता है और संजो कर रख सकता है बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
ये तलाश शायद कभी तो खत्म होगी.....
अति सुन्दर कविता !
बधाई!!!
नासवा जी आप दिल की कलम से लिखते हैं शायद .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .. वाह !!
जवाब देंहटाएं.1-.इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंमुई बैसाखी भी तो नहीं मिलती !
-.कभी कभी शब्दों को सच बैसाखी की जरुरत होती है फिर ये तो घायल हैं...बहुत खूब लिखा है!
2-सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
-सच ही सुना है..उम्मीद पर दुनिया कायम है..!
-शब्दों का यह सफ़र अच्छा चल रहा है..आभार.
रेत के पीली समुन्दर में
जवाब देंहटाएंशब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
-ओह!! कल्पना कर रहा हूँ..बहुत जबरदस्त!!
शोर से महकते जंगल को
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
इस तलाश में ही तोलड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द ..
बेहतरीन ..!!
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
जवाब देंहटाएंतू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
" कमाल की अभिव्यक्ति है.....जैसे आँखों के आगे चित्र ही उभर आता है शब्दों के जंगल......बेहतरीन और क्या कहें...ये पंक्तियाँ कुछ ख़ास ही मन को भा गयी ."
regards
behtarin....
जवाब देंहटाएंतू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
बहुत ही सुन्दर दिल को छूत शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
शोर से महकते जंगल को
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
लुभातीं, पुचकारतीं और आवाज देतीं पंक्तियां
बधाई।
इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंमुई बैसाखी भी तो नहीं मिलती !
wah...ek nayi soch..
रेत के पीली समुन्दर में
शब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
बस तेरी ही उसको तलाश है
bahut sundar abhivyakti.....
बहुत दिनों बाद तुम्हारी सुंदर कविताएं पढ़ने को मिली । खरी बात कि बीच की कुछ कविताएं मुझे तुम्हारे रंग में नहीं मिलीं । पहली कविता तो बहुत गाम्भीर्य और प्रभाव लिये है । उसमें वो सब कुछ है जो एक गम्भीर कविता में होना चाहिये । दुसरी कविता की अंतिम दो पंक्तियां कविता को सार्थक कर जाती हैं । हम सब ही तो इसी प्रकार की प्रतीक्षा कर रहे हैं । किसी गए हुए के लौट कर आने की । बधाई दो सशक्त रचनाओं के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति…. बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंतू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं ..in pankatio me ik umeed hai ik aas hai.....
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
wah umeed ki aas ke saath behad sunder abhivyakti
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
bahut hi gahre jazbaat..........shabdon ki kya bangi hai........dil ko choo gayin dono hi rachnayein
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं
bahut hi gahre jazbaat..........shabdon ki kya bangi hai........dil ko choo gayin dono hi rachnayein
घायल शब्दों को बैसाशी नहीं मिलती
जवाब देंहटाएंसच है
मिलन की आश भी कभी कम नहीं होती।
--वाह! क्या बात है!! बधाई।
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंबैसाखी भी तो नहीं मिलती ..
क्या कहूँ कभी कभी सोच में पड़ जाता हूँ इतने बेहतरीन शब्द और विचार...कविता दिल में बस जाती है बहुत अच्छा लिखा है आपने ..बस लिखते रहिए...यही कामना है हमारी की आपकी लेखनी अमर रहे..बधाई
हुज़ूर !!
जवाब देंहटाएंबिलकुल अनूठी और अनुपम रचना कही है आपने
एक फल्सेफाना अंदाज़ ...
शैली और कथया दोनों प्रभाव छोड़ते हैं
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंबैसाखी भी तो नहीं मिलती ..
ये लाजवाब शैली है कविता कहने की नितांत अपना अंदाज़. बहुत ख़ूब
वाह.. वाह... दिगंबर जी, साधुवाद...
जवाब देंहटाएंरेत के पीली समुन्दर में
जवाब देंहटाएंशब्दों का जंगल उग आया है
शोर से महकते जंगल को
अभिव्यक्त हो जाने की प्यास है
shbdo ke avykt itne roopo ko bahut hi
sundrta se rcha hai aapne .gajb
abhar
बहुत सुन्दर भाव ...
जवाब देंहटाएंउफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंबैसाखी भी तो नहीं मिलती
मुझे तो यह उपमान अच्छे लगे ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवो चाहें तो दिलको बहला सकते हैं
जवाब देंहटाएंमगर उनकी जिद है कि पहले आप,
हम उनसे हैं वो हमसे हैं फिर भी
वक्त जाया कर रहे कि पहले आप.
नासावा जी,
मीठे मीठे भावों के लिए . मीठी मीठी बधाई !!
Antarman kee gahraayee se ubharee rachana..lekin kaash ,guzare musafir laut aate!
जवाब देंहटाएंउफ़ ......... इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंबैसाखी भी तो नहीं मिलती...........
सुना है गुज़रे मुसाफिर
लौट कर ज़रूर आते हैं..........
हमारी टिपण्णी यही तो सिद्ध कर रही है.........
सुन्दर रचना.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
तू कभी तो इस रास्ते से गुजरेगा
जवाब देंहटाएंबस तेरी ही उसको तलाश है
आपका इन्तजार कामयाब हो .....!!
सबने इतनी तारीफ कर तो मैं क्या कहूँ .....बस लाजवाब ....!!
बहुत ही सुंदर और गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी! इस शानदार और ज़बरदस्त रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंतुम तक पहुँचने से पहले
जवाब देंहटाएंलड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
बैसाखी भी तो नहीं मिलती
" behtarin ...aapka bhi jawab nahi ..aapki lekhnee ko salam "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
talaash, intejaar aur tanhaayi,
जवाब देंहटाएंyahi hai jeevan ki sachhayi...
aapki kavitayein humesha se achhi lagi...
vआपकी रचनायों के हम तो हमेशा ही प्रशंसक रहे हैं ,मगर शब्दों के जंगल कीक्या बात है बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंVisiting your blog
जवाब देंहटाएंgire hue shabd, ladkhadate hue meri kalam main samahit ho gaye aur bund-bund panne par utar gaye........bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंतुम तक पहुँचने से पहले
जवाब देंहटाएंलड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
वो देखो ...........
laajwab sir....
आह, दिगम्बर जी शब्दों के ये दो अनूठे-चित्र...कैसे लिखते हैं आप इतना खूबसूरत, एकदम दिल को छूती हुयी पंक्तियां!
जवाब देंहटाएंbahut bhavpoorn rachana aur ashamaee aabhar
जवाब देंहटाएंbahut bhavpoorn rachana aur ashamaee aabhar
जवाब देंहटाएंतुम तक पहुँचने से पहले
जवाब देंहटाएंलड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द ...
jhuk kar uthaye they maine wo shabd aur rakhe they.... jholi mein apne sambhaal kar....
aapki kavita ne dil choo liya.....
bahut hi bhaavpoorn.....
बहुत सुन्दर भावों से सजी है आपकी ये कविता.....बधाई
जवाब देंहटाएंsundar shabd !!! jode hain !!1
जवाब देंहटाएंसुना है गुज़रे मुसाफिर
जवाब देंहटाएंलौट कर ज़रूर आते हैं........
यह एक आस है
जो इंसान को जीवत रखती है
......जी एस पनेसर
शब्दों में भाव कुछ ऐसे स्फुटित हुए हैं ,
जवाब देंहटाएंजैसे लगता है प्रत्येक शब्द जीवंत हो अपने भाव का jeevant आभास करा रहें हैं..
बहुत बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
इन घायल शब्दों को
जवाब देंहटाएंबैसाखी भी तो नहीं मिलती ..
ये लाजवाब शैली है कविता कहने की नितांत अपना अंदाज़. बहुत ख़ूब
बहुत बहुत बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएं