किरण के रथ पर सवार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
तू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
मार्ग दुर्गम है बहुत सब जानते हैं
प्रबल झंझावात है सब मानते हैं
कंटकों से तू न हार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
विश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
बहुत सुंदर एवं सारगर्भित गीति रचना
जवाब देंहटाएंसाधुवाद दिगम्बर जी
दिगम्बर जी,
जवाब देंहटाएंतू स्वयं अग्नि शिखा है कर्म पथ पर
तू जो चाहे होम हो जा धर्म पथ पर
स्वयं के बल को निहार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
बहुत ही सारगर्भित रचना। शब्दों का सुन्दर प्रयोग। बधाई एवं शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
जवाब देंहटाएंविश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं!
अग्रसर हो कर समर्पण कर समर्पण
जवाब देंहटाएंविश्व का तू पुनः कर फ़िर मार्ग दर्शन
दूर कर ये अंधकार भोर के सूरज
विजय का तू कर श्रृंगार भोर के सूरज
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Ati sundar.....
300CF2CDDE
जवाब देंहटाएंkiralık hacker
hacker arıyorum
belek
kadriye
serik