स्वप्न मेरे: परों के साथ बैसाखी लगा दी ...

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

परों के साथ बैसाखी लगा दी ...

समय ने याद की गुठली गिरा दी 
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी 

उड़ानों से परिंदे डर गए जो 
परों के साथ बैसाखी लगा दी 

किनारे की तरफ रुख मोड़ के फिर 
हवा के हाथ ये कश्ती थमा दी 

दिया तिनका मगर इक छेद कर के 
कहा हमने वफादारी निभा दी 

कहां हैं मानते इसको परिंदे 
जो दो देशों ने ये सीमा बना दी 

बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर 
दरों दीवार बच्चों ने उठा दी 

तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके 
लो हमने आज वो तितली उड़ा दी 

57 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उत्कृष्ट उम्दा प्रस्तुती।

    आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (24-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 155" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  2. वाह बहुत ही खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल |

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  3. आपका तो अंदाज़ ए ब्यान ही निराला लग रहा है जनाब...अंतिम पंक्तियों ने कमाल कर दिया...सच आजकल यही सब करके ही तो सब अपने कर्तव्यों की इति श्री किए जा रहे हैं बस...

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  4. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -32 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  5. तिनके में छेद, परिंदों का देशों की सीमाओं का न मानना, बुजुर्गों के लिए बच्‍चों द्वारा बनी दीवारें........और जिस तितली के साथ तेरी यादें जुड़ीं थीं उसे उड़ा देने जैसी बातें गजल को बहुत अच्‍छी बना गईं हैं। सुन्‍दर सहज लेकिन बहुत भावुक गजल।

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  6. किनारे की तरफ रुख मोड़ के फिर
    हवा के हाथ ये कश्ती थमा दी
    मन को छूते भाव ...हर शेर लाजवाब ....उम्दा प्रस्तुति ...!!

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  7. यक़ीनन वक्त को हमने बदल डाला ..उम्दा गजल.. वाह!

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  8. समय ने याद की गुठली गिरा दी
    लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी

    उड़ानों से परिंदे डर गए जो
    परों के साथ बैसाखी लगा दी

    waah lajawab gazal

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  9. तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
    लो हमने आज वो तितली उड़ा दी
    लाजवाब गज़ल|
    नई पोस्ट मैं

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  10. दिया तिनका मगर इक छेद कर के
    कहा हमने वफादारी निभा दी
    !!

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  11. कहां हैं मानते इसको परिंदे
    जो दो देशों ने ये सीमा बना दी,,,

    वाह क्या बात है बहुत उम्दा ,,,

    RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.

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  12. सादर प्रणाम |बहुत ही खूबसूरत गजल |इस ब्लॉग की समस्त रचनाये ,बहुत ही उम्दा हैं |

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  13. कहां हैं मानते इसको परिंदे
    जो दो देशों ने ये सीमा बना दी
    मनुष्य परिंदों से ज्यादा खतरनाक प्राणी है !
    सुन्दर ग़ज़ल .

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  14. बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
    दरों दीवार बच्चों ने उठा दी....

    बहुत खूबसूरत रचना।

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  15. दिया तिनका मगर इक छेद कर के
    कहा हमने वफादारी निभा दी

    वाह ! बहुत खूब नासवा जी ! हर शेर लाजवाब है ! इतनी वज़नी गज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई !

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    साझा करने के लिए आभार।

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  17. कहां हैं मानते इसको परिंदे
    जो दो देशों ने ये सीमा बना दी

    बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
    दरों दीवार बच्चों ने उठा दी
    वाह क्या अशआर लिखें हैं परिवेश को उधेड़ते हुए बतियाते से।

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  18. नासवा जी, हर एक शेर लाजवाब है तय नहीं कर पा रही हूँ कि किसे कोट करूँ बहुत सुन्दर गजल है !

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  19. बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
    दरों दीवार बच्चों ने उठा दी

    तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
    लो हमने आज वो तितली उड़ा दी
    हर शेर जबरदस्‍त ....

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  20. खुबसूरत लफ्जों और अहसासों का खुबसूरत संगम ..
    मुबारक कबूलें !

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  21. अति उत्तम। दिगम्बर जी सही में अपने कमाल ही कर दिया
    अपने तो गागर में सागर भर दिया।

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  22. बहुत उम्दा ग़ज़ल. आखिरी शे'र की कोमलता देखने लायक है. वाह दिगंबर जी वाह.

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  23. दिया तिनका मगर इक छेद कर के
    कहा हमने वफादारी निभा दी

    ...बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू गया...

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  24. कल 25/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  25. तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
    लो हमने आज वो तितली उड़ा दी....
    संवेदना से भरी रचना.... खुबसूरत ग़ज़ल

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  26. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  27. दिगम्बर भाई तारीफ करने के लिए मेरे पास लब्ज़ नहीं बचे , हर पंक्ति दमदार है।
    हिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें

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  28. कहां हैं मानते इसको परिंदे
    जो दो देशों ने ये सीमा बना दी

    बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल

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  29. बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
    दरों दीवार बच्चों ने उठा दी -----

    बहुत सुंदर गजल -----
    सहज अंदाज में जीवन की गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करती ---

    सादर

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  30. बहुत ही मार्मिक गज़ल। आज के समय को बतलाती जतलाती।

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  31. लाजवाब कहना बहुत कम है इस ग़ज़ल के लिए. क्या शेर हैं.

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  32. बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
    दरों दीवार बच्चों ने उठा दी … चुन दिया उनको जीते जी

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  33. वाह बहुत ही खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल, विचारशील व स्तरीय रचना।

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  34. उड़ानों से परिंदे डर गए जो
    परों के साथ बैसाखी लगा दी

    जो डर गए तो भर नहीं पाएँगे कभी एक उड़ान लम्बी ,,,,

    सादर !

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  35. तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
    लो हमने आज वो तितली उड़ा दी

    यह गज़ल आसान नहीं !!

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  36. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल.. शुभकामनाये

    उन तितलियों पर ही तो तेरी यादों के सायें रहते हैं।।
    कभी वो एक पल रुक जाते, फुर्र से फिर उड़ जाते हैं।।

    मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..

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  37. वाह ...खूब गहरे भाव
    पढ़कर आनंद आया

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  38. गज़ब...आह और वाह!! मिली वो तितली उड़ती हुई मेरी गज़ल को...कहती थी चल बैठ मेरे काँधे पर...तुझे फूलों की महक दे दूँ. :)

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  39. वाह लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  40. उड़ानों से परिंदे डर गए जो
    परों के साथ बैसाखी लगा दी

    वतन को खा गए हैं बेचके जो ,

    उन्हीं के हाथ अब किश्ती थमा दी।

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