समय ने याद की गुठली गिरा
दी
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी
उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
किनारे की तरफ रुख मोड़ के
फिर
हवा के हाथ ये कश्ती थमा दी
दिया तिनका मगर इक छेद कर
के
कहा हमने वफादारी निभा दी
कहां हैं मानते इसको परिंदे
जो दो देशों ने ये सीमा बना
दी
बुजुर्गों के दिलों पे रख
के पत्थर
दरों दीवार बच्चों ने उठा
दी
तेरी यादें जुडी थीं साथ
जिसके
लो हमने आज वो तितली उड़ा दी
बहुत ही उत्कृष्ट उम्दा प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (24-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 155" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
वाह बहुत ही खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल.
जवाब देंहटाएंआपका तो अंदाज़ ए ब्यान ही निराला लग रहा है जनाब...अंतिम पंक्तियों ने कमाल कर दिया...सच आजकल यही सब करके ही तो सब अपने कर्तव्यों की इति श्री किए जा रहे हैं बस...
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -32 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
जवाब देंहटाएंतिनके में छेद, परिंदों का देशों की सीमाओं का न मानना, बुजुर्गों के लिए बच्चों द्वारा बनी दीवारें........और जिस तितली के साथ तेरी यादें जुड़ीं थीं उसे उड़ा देने जैसी बातें गजल को बहुत अच्छी बना गईं हैं। सुन्दर सहज लेकिन बहुत भावुक गजल।
जवाब देंहटाएंएक और लाजवाब, स्तरीय ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंकिनारे की तरफ रुख मोड़ के फिर
जवाब देंहटाएंहवा के हाथ ये कश्ती थमा दी
मन को छूते भाव ...हर शेर लाजवाब ....उम्दा प्रस्तुति ...!!
नये प्रयोगों के साथ उम्दा ग़ज़ल...।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंयक़ीनन वक्त को हमने बदल डाला ..उम्दा गजल.. वाह!
जवाब देंहटाएंसमय ने याद की गुठली गिरा दी
जवाब देंहटाएंलो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
waah lajawab gazal
तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
जवाब देंहटाएंलो हमने आज वो तितली उड़ा दी
लाजवाब गज़ल|
नई पोस्ट मैं
दिया तिनका मगर इक छेद कर के
जवाब देंहटाएंकहा हमने वफादारी निभा दी
!!
कहां हैं मानते इसको परिंदे
जवाब देंहटाएंजो दो देशों ने ये सीमा बना दी,,,
वाह क्या बात है बहुत उम्दा ,,,
RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
lajawab ghazal. har sher kai sher ke brabar hai
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम |बहुत ही खूबसूरत गजल |इस ब्लॉग की समस्त रचनाये ,बहुत ही उम्दा हैं |
जवाब देंहटाएंकहां हैं मानते इसको परिंदे
जवाब देंहटाएंजो दो देशों ने ये सीमा बना दी
मनुष्य परिंदों से ज्यादा खतरनाक प्राणी है !
सुन्दर ग़ज़ल .
बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
जवाब देंहटाएंदरों दीवार बच्चों ने उठा दी....
बहुत खूबसूरत रचना।
वाह ....प्रभावित करती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंbahut sundar v sarthak rachna .aabhar
जवाब देंहटाएंदिया तिनका मगर इक छेद कर के
जवाब देंहटाएंकहा हमने वफादारी निभा दी
वाह ! बहुत खूब नासवा जी ! हर शेर लाजवाब है ! इतनी वज़नी गज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार।
कहां हैं मानते इसको परिंदे
जवाब देंहटाएंजो दो देशों ने ये सीमा बना दी
बुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
दरों दीवार बच्चों ने उठा दी
वाह क्या अशआर लिखें हैं परिवेश को उधेड़ते हुए बतियाते से।
Kamaal ke ashaar.. Poori Ghazal khoobsoorat.!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंनासवा जी, हर एक शेर लाजवाब है तय नहीं कर पा रही हूँ कि किसे कोट करूँ बहुत सुन्दर गजल है !
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
जवाब देंहटाएंदरों दीवार बच्चों ने उठा दी
तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
लो हमने आज वो तितली उड़ा दी
हर शेर जबरदस्त ....
खुबसूरत लफ्जों और अहसासों का खुबसूरत संगम ..
जवाब देंहटाएंमुबारक कबूलें !
लाजवाब
जवाब देंहटाएंअति उत्तम। दिगम्बर जी सही में अपने कमाल ही कर दिया
जवाब देंहटाएंअपने तो गागर में सागर भर दिया।
बहुत उम्दा ग़ज़ल. आखिरी शे'र की कोमलता देखने लायक है. वाह दिगंबर जी वाह.
जवाब देंहटाएंदिया तिनका मगर इक छेद कर के
जवाब देंहटाएंकहा हमने वफादारी निभा दी
...बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू गया...
कल 25/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
जवाब देंहटाएंलो हमने आज वो तितली उड़ा दी....
संवेदना से भरी रचना.... खुबसूरत ग़ज़ल
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदिगम्बर भाई तारीफ करने के लिए मेरे पास लब्ज़ नहीं बचे , हर पंक्ति दमदार है।
जवाब देंहटाएंहिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें
कहां हैं मानते इसको परिंदे
जवाब देंहटाएंजो दो देशों ने ये सीमा बना दी
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल
वाह!
जवाब देंहटाएंहर शेर पर बस वाह
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
जवाब देंहटाएंदरों दीवार बच्चों ने उठा दी -----
बहुत सुंदर गजल -----
सहज अंदाज में जीवन की गहरी संवेदनाओं को व्यक्त करती ---
सादर
बहुत ही मार्मिक गज़ल। आज के समय को बतलाती जतलाती।
जवाब देंहटाएंलाजवाब कहना बहुत कम है इस ग़ज़ल के लिए. क्या शेर हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर, विचारशील व स्तरीय रचना।
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों के दिलों पे रख के पत्थर
जवाब देंहटाएंदरों दीवार बच्चों ने उठा दी … चुन दिया उनको जीते जी
वाह बहुत ही खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल, विचारशील व स्तरीय रचना।
जवाब देंहटाएंउड़ानों से परिंदे डर गए जो
जवाब देंहटाएंपरों के साथ बैसाखी लगा दी
जो डर गए तो भर नहीं पाएँगे कभी एक उड़ान लम्बी ,,,,
सादर !
तेरी यादें जुडी थीं साथ जिसके
जवाब देंहटाएंलो हमने आज वो तितली उड़ा दी
यह गज़ल आसान नहीं !!
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल.. शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंउन तितलियों पर ही तो तेरी यादों के सायें रहते हैं।।
कभी वो एक पल रुक जाते, फुर्र से फिर उड़ जाते हैं।।
मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..
लाजवाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंवाह ...खूब गहरे भाव
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनंद आया
गज़ब...आह और वाह!! मिली वो तितली उड़ती हुई मेरी गज़ल को...कहती थी चल बैठ मेरे काँधे पर...तुझे फूलों की महक दे दूँ. :)
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
जवाब देंहटाएंपरों के साथ बैसाखी लगा दी
वतन को खा गए हैं बेचके जो ,
उन्हीं के हाथ अब किश्ती थमा दी।
ati sundar!
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