नही मैं नही चाहता
नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
जहाँ धुएं का विस्तार खुद को समेटने नही देता
जहाँ हर दूसरा तारा
तेज़ चमकने कि होड़ में लुप्त हो जाता है
पैर टिकाने कि कोशिश में
दूसरे का सिर कुचल जाता है
जहाँ सिक्कों का शोर बहरा कर दे
खुद का अस्तित्व बोना हो जाए
संवेदनहीन दीवारों में धड़कन खो जाए
तेरे हाथों की खुश्बू
" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
जहाँ अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
बचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए
मैं नही चाहता
हाँ मैं नही चाहता
उस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
सुंदर भाव, प्रकृति की और लौटता मन्।
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति!!
ऊपर बढ़ने की चाह यह सब विस्मृत करा देती है...लेकिन ऊंचाई पर पहुचंकर ,ऊंचाई का खोखलापन...जड़ और जमीन से कटाव, यही लालसा मन में भर देती है...
जवाब देंहटाएंअंतस को छूती एक सुन्दर भावुक रचना,जो सोचने को विवश कर दे...
अपनों से दूर होने का दर्द छुपा है इन पंक्तियों ने ..दिल को छूती हुई कविता ..
जवाब देंहटाएं"जहाँ सिक्कों का शोर बहरा कर दे
जवाब देंहटाएंखुद का अस्तित्व बोना हो जाए
संवेदनहीन दीवारों में धड़कन खो जाए"
वाकई ऐसी ऊँचाई और बुलन्दियाँ जहाँ अस्तित्व बौना हो जाय किस काम की.
सुन्दर रचना ..
hum bhi to nahi chahte ..par kyaa kare .... dil ke kone mein desipan bachakar rakha hai ..tabhi zinda hai
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना। लेकिन ये हमारे समय का सच है। हम इस समय अंधी सुरंग में हैं। सुरंग में जाना भी हमारी नियति है। चाहे मन से जाआ चाहे बेमन से। अंत देखिए क्या हो इस दौड़ का बहरहाल कविता में ही सही संवेदना जिन्दा तो रहे। आपका आभार एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए
जवाब देंहटाएंsundar rachana
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना। बहुत दिनों बाद आपको वापस देखके बढिया लगा ।
जवाब देंहटाएंआपका दर्द बखूबी समझ में आता है !
जवाब देंहटाएंहर शब्द के लिए, इस नहीं चाहने के लिए यही कहूँगा... आमीन!!
जवाब देंहटाएंहकीकत तो यही है……………ये ऊँचा उठने की चाह मे इंसान अपनी ज़िन्दगी के सुकून के पल भी खो देता है। एक बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंहाँ मैं नही चाहता
उस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
Bahut bhav vibhor kar diya aapne! ye hod sachme badi darawni hoti hai!
मैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंहाँ मैं नही चाहता
उस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
-झलक गये भाव, दिगम्बर! बहुत खूब!
बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको
जवाब देंहटाएंआनंद आया
दिगंबर जी... उअके आगे किसी का बस नहीं है, आप फिर से अपना कबिता के साथ बापस आ गए हम लोगों के लिए एही बहुत खुसी का बात है... केतना खूबसूरत बात आप कहे हैं... आज हम अपना बात जावेद अख़्तर साहेब के सेर से कहते हैंः
जवाब देंहटाएंगिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदुरा हुआ
जाती रही वो लम्स की नर्मी, बुरा हुआ..
दुबई में, जहाँ हर आदमी खाली पइसा जोडने में लगा होता है, रहकर भी आप एतना भावनात्मक सोच रखते हैं...सलाम है आपके जज्बात को!!!
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
जवाब देंहटाएंपिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
AMMA KE HAATH KI ROTI AUR WO PYAAR AUR KAHAN
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...संवेदनशील भाव...
जवाब देंहटाएं"नही मैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंनीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
जहाँ धुएं का विस्तार खुद को समेटने नही देता
जहाँ हर दूसरा तारा
तेज़ चमकने कि होड़ में लुप्त हो जाता है
पैर टिकाने कि कोशिश में
दूसरे का सिर कुचल जाता है"
--
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है!
--
जितनी तारीफ करता हूँ
उतने ही अल्फाज़ कम पड़ जाते हैं!
बहुत अच्छी आरजू है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन दल में दफ़न होकर रह जाती है ।
ऊँची मीनारों पर बैठ कर धरती की सोंधी मिट्टी भूल जाने की पीड़ा, तपती धूप से संभवतः कम हो।
जवाब देंहटाएंटुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
जवाब देंहटाएंकोट और पैंट में फँस जाए
दर्द छुपा है इन पंक्तियों ने ..दिल को छूती हुई कविता ..
दिगंबर जी......सलाम है आपके जज्बात को
जवाब देंहटाएंआप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
लेकिन आज लोग वही चाहत लिए हैं जो आप नहीं चाहते.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.... कैसे हैं आप?
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद पढना आपको अच्छा लगा...
नासवा जी, सबसे पहले तो श्रेष्ठ ग़ज़लकार का पुरस्कार हासिल करने के लिए आपको मुबारकबाद.
जवाब देंहटाएंआपने जिस तरह ग़ज़ल से लेकर नज़्म तक अपनी श्रेष्ठता साबित की है, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रतिभा के दम पर ही होता है...आप हर रचना में अपनी प्रतिभा को साबित करते आए हैं...
प्रस्तुत नज़्म दिल को छूने वाली है..
बहुत बहुत बधाई.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जहाँ हर दूसरा तारा
जवाब देंहटाएंतेज़ चमकने कि होड़ में लुप्त हो जाता है
पैर टिकाने कि कोशिश में
दूसरे का सिर कुचल जाता है.
Arthpoorn .yatharth ke dharatal se.
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी... सचमुच आज आपने दिखा दिया कि आदमी जब शिखर पर होता है तो बहुत अकेला होता है और तब वो हर उस वस्तु, व्यक्ति या स्थान को याद करता है, जिसको पैरों तले रौंद कर वह इस ऊँचाई तक पहुँचा है...बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील रचना ...जब अपनों से दूर रहना पड़ता है तभी एहसास होता है ....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इसे पढकर
जवाब देंहटाएंएक संवेदनशील ह्रदय भला क्यों ये सब चाहेगा.. दिल को छूती कविता लगी सर..
जवाब देंहटाएंनही मैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंनीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
जहाँ धुएं का विस्तार खुद को समेटने नही देता
जहाँ हर दूसरा तारा
तेज़ चमकने कि होड़ में लुप्त हो जाता है
पैर टिकाने कि कोशिश में
दूसरे का सिर कुचल जाता है
Na chahate hue bhee isee ko jeena niyati hai har Kamyab aadmee ki.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंसही कहा -यह भी एक मनस्थिति है !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
जहाँ अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए...
मैं नहीं चाहता ...
नहीं चाहना चाहिए ...
बहुत जरुरी है ऐसी चाहना ..
सुन्दर कविता ..!
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है!
जवाब देंहटाएंमैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंहाँ मैं नही चाहता
उस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना ।
गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जहाँ सिक्कों का शोर बहरा कर दे
जवाब देंहटाएंखुद का अस्तित्व बोना हो जाए
संवेदनहीन दीवारों में धड़कन खो जाए
नही मैं नही चाहता !!!!!!
बहुत सुन्दर ,नासवा साहब !
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम सादर प्रणाम ,,,,,चरण वंदन ........अगस्त का महिना मुबारक हो .............
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों की खुश्बू
" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
बचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए
मनुष्यता इन पंक्तियों को पढ़ धन्य हुयी ..................
मनुष्यता इन पंक्तियों को पढ़ धन्य हुयी ..................
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों की खुश्बू
जवाब देंहटाएं" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
कितने गहरे भाव और व्यथा सहेजे हुए है ये प्रस्तुति
आपकी ये रचना तो एकदम से मन को भा गई...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा!
शानदार अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंभाव विभोर करती यह सुन्दर अभिव्यक्ति उजागर कर देती है वे साडी कीमते जो शिखर पर पहुचने के लिए चुकानी होती है !
जवाब देंहटाएंआभार
क्या कहूँगा, ये तो अपने दिल के भाव हैं.
जवाब देंहटाएंशानदार् है ,सुंदर् भावों से परिपूर्ण्
जवाब देंहटाएंचढ़ाई को जीवन का इष्ट मानने वालों के लिए यह कविता किसी वैद्य से कम नहीं। दरअसल, कविता में जो सिहरन है, उसे आज के भागते हुए आदमी के चेहरे पर भी आसानी से पढ़ा जा सकता है। बहुत सही पकड़े हैं, नासवां जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंजहाँ अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए
...सुंदर रचना, बधाई!
AApke blog par aaker bahut hi achha lagaa.
जवाब देंहटाएंApki ye bhavpurn kavita bahut hi achhi lagi..blog par aana safal ho gaya.
AApke blog par aaker bahut hi achha lagaa.
जवाब देंहटाएंApki ye bhavpurn kavita bahut hi achhi lagi..blog par aana safal ho gaya.
जहाँ अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए
कभी ना कभी ऐसे भाव आते ही हैं सबके मन में....पर वही बेबसी बांधे रखती है...गहरी वेदना बयाँ करती पंक्तियाँ
यही तो मजबूरी है। न चाहकर भी बैठना पड़ता है। रेस लगानी पड़ती है। हम कुछ नहीं कर पाते। मन मनोस कर रह जाते हैं। अर्थ के तंत्र का हिस्सा बनते जा रहे हैं। मानवीय मूल्य खोते जा रहे हैं। पर उसके खिलाफ लगातार अंदर ही सही विरोध इसी तरह चलता रहा तो एकदिन जरुर इस बंधन को तोड़ने में कामयाबी मिल ही जाएगी।
जवाब देंहटाएंतेरे हाथों की खुश्बू
जवाब देंहटाएं" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
मैं नही चाहता
हाँ मैं नही चाहता
उस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
बहुत सुन्दर मनमोहक भाव.बधाई!!!
सही कहा है...
जवाब देंहटाएंयदि भागम भाग का यही दौर चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि रिश्ते सिर्फ अंतर्जाल , दूरसंचार में निभाए जाएंगे... दुलार, स्पर्श और सेवा वंचित कागजी रिश्ते.
एक एहसास लिए खूबसूरत भावों की पंक्तियाँ....जहाँ मनुष्य आधुनिकता के ज़ंजीरों की जकड़न में इतना बाँध जाएँ कि वो सब कुछ एक सपना हो जाए जहाँ से उसका जीवन चला था..मन यही चाहता है कि भगवान हमारी ज़रूरत पूरी होती रहे बाकी हम उन याद से अलग ना हो...उससे अलग उँचाई तो मिल जाएगी पर वो चैन नही मिलेगी..
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी...दिल के सुंदर भावनाओं को बेहतरीन शब्द दिया ....बहुत बहुत आभार
एक एहसास लिए खूबसूरत भावों की पंक्तियाँ....जहाँ मनुष्य आधुनिकता के ज़ंजीरों की जकड़न में इतना बाँध जाएँ कि वो सब कुछ एक सपना हो जाए जहाँ से उसका जीवन चला था..मन यही चाहता है कि भगवान हमारी ज़रूरत पूरी होती रहे बाकी हम उन याद से अलग ना हो...उससे अलग उँचाई तो मिल जाएगी पर वो चैन नही मिलेगी..
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी...दिल के सुंदर भावनाओं को बेहतरीन शब्द दिया ....बहुत बहुत आभार
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
जवाब देंहटाएंपिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
Aapne kya khoob likha hai.
सच मे ऎसी तरक्की किस काम की .बहुत शी लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया |
जवाब देंहटाएंsir,
जवाब देंहटाएंaapki yah rachna padh kar wek bahut hi sukhad anubhuti hui .
तेरे हाथों की खुश्बू
" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
bahut hi prabhavpurn aur sateek
rachna.
poonam
हम भी पढ़ चले।
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति!!बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंJo jameen se jud kar rahte...
Unko aasman ki chah nahin..
Khud main hi jo jee le duniya...
usko sikkon ki parwah nahin...
Sundar Bhav...
Deepak..
बहुत सुन्दर पंक्तिया है ....
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएंनही मैं नही चाहता.......
जहाँ...
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये....
hume essa Sansar bilkul nahee chaheeye .
Amma kee rotee
Kabhee Pizza se sharma hee nahee saktee....
kion ke yeh VO hai....jismein AMMA ka PYAR BHRA hai...VO aap ko Pizza main khan milega???
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंभौतिकता के इस युग में सभी एक अंधी दौड़ का हिस्सा हैं.एक कवि ह्रदय इस दौड़ के बारे में क्या सोचता है इस कविता के माध्यम से समझा जा सकता है.सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति.बधाई.
जवाब देंहटाएंदिल न चाहे तो भी साथ संसार के
जवाब देंहटाएंचलना पड़ता है सबकी ख़ुशी के लिए
मजबूरी है \बहुत अछि भावाभिव्यक्ति |
har baar ki tarah is baar bhi behtrin likha hai aapne ,shobhna ji ne sahi kaha .sundar
जवाब देंहटाएंजहाँ अंतस का चुंबकीय तेज महत्व हीन हो जाए
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों पर पहरा लग जाए
टुकड़ों में बँटा मेरा अस्तित्व
कोट और पैंट में फँस जाए
नेक ख्याल हैं आपके .....
धन को उतना ही महत्त्व देना चाहिए जितना जीवन के लिए जरुरी हो ....
आपने बहुत अच्छे से इन भावों को kavita का rup diya ......!!
bhai digambhar ji , maine aapko ab apna guru maan liya hai .. deri se aur bahut dino ke baad aane ke liye maafi .. lekin what a treat to my eyes and soul and HEART.. sir tussi grreat ho , itni acchi love poems likhte ho ki ,main ab chela hi ban gaya hoon..
जवाब देंहटाएंjai ho , badhayi
vijay
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
हाँ मैं नही चाहता
जवाब देंहटाएंउस नीले आकाश को छूना
नयी बुलंदी को पाना
उस गगनचुंबी इमारत में बैठना
....खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.
________________
शब्द-सृजन की ओर पर ''तुम्हारी ख़ामोशी"
पैर टिकाने कि कोशिश में
जवाब देंहटाएंदूसरे का सिर कुचल जाता है"
--
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति है!
बहुत लम्बे अरसे बाद आने में सफल हो सका हूँ. आप भी क्या क्या सोचते होगे, कैसा बन्दा है, मैनर्स तो छू कर भी नहीं गुज़रे. फ़िलहाल, सिर्फ माफी के लिए हाज़िर हुआ.
जवाब देंहटाएंअब इतने सारे लोगों के बाद मेरे लिए कहने को बचा भी तो नहीं. अगली पोस्ट पर कमेन्ट देने का वादा.
पछले कुछ दिनों से बॉक्स ओपन नहीं हो रहा था सो बस आपकी रचनायें पढ पा रहा था मगर टिप्पणी नही कर पा रहा था। अभी भी मेरे कम्प्युटर में कुछ प्रोबलम है...
जवाब देंहटाएंक्या बात है !..वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
"Bikhare sitare'pe aap kee shukr guzaaree pesh kee hai..gaur karen to khushee hogee..
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाइयों को खूब निभाया है ,बहुत दिनों के बाद ब्लॉग खोला ,अच्छा लगा आपकी कविता पढ़ कर ।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna!
जवाब देंहटाएंजहाँ सिक्कों का शोर बहरा कर दे
जवाब देंहटाएंखुद का अस्तित्व बोना हो जाए
संवेदनहीन दीवारों में धड़कन खो जाए
तेरे हाथों की खुश्बू
" सिक्योरिटी चैक" कर के आए
अम्मा के हाथों से बनी रोटी
पिज़्ज़ा बर्गर से शरमाये
....bahut gahri bhavabhivykti..
sir..itna aasan nahi yun hi kayal hona..:)..awesome!
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, आधुनिकता और भौतिकता की होड़ में फ़ंसे व्यक्ति के अन्तर्मन में झांकने का अच्छा प्रयास है इस कविता में। सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंbeautiful poem
जवाब देंहटाएंdarshan to aapki rachnaoon mein milta hai
जवाब देंहटाएंsirf bhaav ko gahraai se mehsoos karne ki baat hai.
bahot achcha laga.
जवाब देंहटाएं