क्या हर युग में
एकलव्य को देना होगा अंगूठे का दान ..?
शिक्षक की राजनीति का
रखना होगा मान ..?
झूठी परंपरा का
करना होगा सम्मान ..?
रिस्ते हुवे अंगूठे का बोझ
द्रोण ने उठा लिया
शिक्षा का व्यवसायिक करण
भीष्म ने निभा लिया
पर साक्षी है इतिहास
व्यवस्था के अन्याय का
शिक्षा के व्यवसाय का
गीता के अध्याय का
कृष्ण के न्याय का
शिक्षक से ज़्यादा
कौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
क्या संभव है
इस परंपरा का अंत ...
jordar kataksh.................sahi baat kahi aapne.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्षम पुनर्रचना है सर्जनात्मक ऊर्जा की सक्रियता है। मकसद है - सबकी जिंदगी बेहतर बने।
जवाब देंहटाएंशिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
....कुछ शिक्षक तब भी विद्यार्थियों के साथ छ्ल-कपट करते थे और आज भी कुछ शिक्षक कर ही रहे है!...आप से मै सहमत हुं!
एक दीर्घ उच्छ्वास और हताशा....बस यही दे जाता है वर्तमान सन्दर्भ में यह प्रश्न....
जवाब देंहटाएंनिकट कुछ दशकों में इसका कोई निराकरण होगा, दीखता नहीं...कम से कम हमारा जेनरेशन यह दुःख ह्रदय में लिए दुनिया से जायेगा,यह दीखता है.....
लेकिन हाँ,अपने भर इस विषय को यूँ ही हम नहीं जाने दें,इतना कर सकते हैं...आपके सद्प्रयास के लिए आपका साधुवाद...
और आपकी रचना क्षमता की तो क्या कहूँ..
परम्परा का अंत करना भी तो एक नयी परम्परा ही होगी.
जवाब देंहटाएंsateek kataksh..bahut khoob
जवाब देंहटाएंTeachers day se pahle aisee rachna......:)
जवाब देंहटाएंbahut khub!! ........shandaar!!
Teachers day se pahle aisee rachna......:)
जवाब देंहटाएंbahut khub!! ........shandaar!!
सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंएकलव्य को देना होगा अंगूठे का दान ..?
एक बेहतरीन प्रश्नचिन्ह लगा दिया आपने तो !
जवाब देंहटाएंशिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
.......bilkul sahi......anoothi kalam....anoothi kriti!
khoobsoorat katakch
जवाब देंहटाएंdron guru nahi the eklavya ke , uski prerna srot the, jiska mulya chukaya-dron kee guruta khatm hui...aadar aur anguthe me fark hona chahiye
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता । अच्छा विष्लेषण ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मन को उद्धेलित करने वाली पंक्तिया
जवाब देंहटाएंशिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
क्या संभव है
इस परंपरा का अंत
bina dwand ke to nahi us par bhi badlao nishchit nahi ,behad shaandaar aur arthpoorn ......
रश्मि जी की बात को आगे बढ़ाते हुए कि एकलव्य ने दान नहीं दक्षिणा में दिया था अपना अंगूठा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या हर युग में
जवाब देंहटाएंएकलव्य को देना होगा अंगूठे का दान ..?
शिक्षक की राजनीति का
रखना होगा मान ..?
सुन्दर शब्द रचना, गहरे भाव ।
पर साक्षी है इतिहास
जवाब देंहटाएंव्यवस्था के अन्याय का
शिक्षा के व्यवसाय का
गीता के अध्याय का
कृष्ण के न्याय का
व्यवस्था की अव्यवस्था और परंपराओं में जकड़ी हुई मानवता की व्यथा का दर्पण है ये कविता
अपने ही बनाए हुए परंपराओं के इस मकड़ जाल से
क्या हम कभी बाहर आ पाएंगे?
इस का उत्तर कहां है?
आपने इतिहास के पन्नों को खोल दिया है ..ड्रोन ही पहले शिक्षक थे जिन्होंने शिक्षा का व्यवसायी करण किया ...बहुत अच्छी प्रस्तुति और सार्थक प्रश्न ..
जवाब देंहटाएंआज तो शिक्षा का ही बाजारीकरण हो गया है ........ ..
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार
कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
(क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
http://oshotheone.blogspot.com
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
जवाब देंहटाएंक्या संभव है
इस परंपरा का अंत ...
Shaayad nahin.....
sir ji...Aapke sawal ka utter dhundna kisi ke liye bhi itna aasaan nahin hoga.
Bhautikvaadi jeevan shailly is parampara ko aur majboot kar rahi hai..... sir ji
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएं_______________________
'पाखी की दुनिया' में अब सी-प्लेन में घूमने की तैयारी...
शिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
-बेहतरीन विवेचन. गहरी बात..
.
जवाब देंहटाएंawesome !
The poet has beautifully defined the current day status and attitude of our teachers.
Nice creation !
.
शिक्षक तो वैसे भी सब किताबी ही नसीब हुए, जिंदगी ही अपनी गुरु है, मुफ्त में सिखा देती है और साथ में तजुर्बे भी मुफ्त. कमाल का offer है !
जवाब देंहटाएंअच्छा पस्तुतिकरण.
शिक्षा का क्षेत्र तो आजकल सबसे बढ़िया व्यापार बन गया है ।
जवाब देंहटाएंस्कूल , कॉलिज या फिर कोचिंग सेंटर -कुछ भी खोल लो , नोटों की बारिस अपने आप होने लगेगी ।
गुरु शिष्य की परंपरा अब कहाँ ।
बेहतरीन.............
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar.......
जवाब देंहटाएंबहुत सही विश्लेषण \शिक्षक और उससे जुड़े भारतीय पौराणिक इतिहास का |
जवाब देंहटाएंमंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर और गहरे भाव के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
जवाब देंहटाएंक्या हर युग में
जवाब देंहटाएंएकलव्य को देना होगा अंगूठे का दान ..?
शिक्षक की राजनीति का
रखना होगा मान ..?
झूठी परंपरा का
करना होगा सम्मान ..?
--
वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार!
--
सोचने को बाध्य करती रचना!
अति सुंदर रचना जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजिस परम्परा को सही नहीं माना जाये, उसका अनुसरण भी त्याज्य है।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना......
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी! देख लीजिए, सिस्य के मोह में एक सिछक के द्वारा किया गया अपराध (हम त अपराध समझते हैं, आज भी) आज सिछा के ब्यापार के इस सीमा तक पहुँच गया… एक गुरू ने बबूल बोया था, आज ज्यादातर सिछक ओही बोया हुआ काट रहे हैं अऊर छात्र लोग को भुगतना पड़ रहा है...अईसे मौका पर सरोजिनी प्रीतम का एक छणिका याद आ रहा हैः
जवाब देंहटाएंएकलव्य की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि
यदि गुरू पत्थर की मूरत बना रहे
तो शिष्य को अच्छी शिक्षा दे सकता है!!
पर साक्षी है इतिहास
जवाब देंहटाएंव्यवस्था के अन्याय का
शिक्षा के व्यवसाय का
गीता के अध्याय का
कृष्ण के न्याय का
बहुत बढ़िया रचना
बहुत सादगी से आपने शिक्षा के बाजारी करण की ओर लोगों का ध्यान खींचा है।
जवाब देंहटाएंसाक्षी है इतिहास
जवाब देंहटाएंव्यवस्था के अन्याय का
शिक्षा के व्यवसाय का
.........................
शिक्षक से ज़्यादा
कौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
क्या संभव है
इस परंपरा का अंत ...
नासवा जी, कमाल है, इन भावनाओं और विचारों ने...
काफ़ी देर तक सोचने पर विवश कर दिया...
जिन्हें सोचना चाहिए, काश वो भी सोचना शुरू कर दें.
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
vicharniya post......
जवाब देंहटाएंsach mein aisi parmparaon ka ant bhi zaroori hai... nayi soch ke aagaz ke liye badhai.
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
जवाब देंहटाएंक्या संभव है
इस परंपरा का अंत ... शिक्षा व्यवसाय तो बन चुकी है..गुरु शिष्य के रिश्ते बदल चुके है..दिन प्रतिदिन बदलती परम्पराओं में इसका हाल भी सबके सामने है...
शिक्षा और चिकित्सा दोनो पूरी तरह व्यवसायिक हो गई है। एकलव्य के अंगूठे देने से भी काम नहीं चलता। अब तो एकलव्य का हाथ काट लिया जाता है। चिकित्सा के अभाव में उसकी जान चली जाती है। क्या करें.....कोई मदनमोहन मालविय भी नहीं है अब
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है |एकलव्य को कब तक अंगूठा देना होगा |एक शिक्षक ही ना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
शिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
samay ke sath sare mulya badal gaye, ab na shikshak guru raha aur na shishy eklavya. itihas badal gaye parivar ke rishton ki paribhasha badal gayi phir ye to samajik rishte hain. phir bhi shishak aadarniy hai.
आपकी विवेचना अच्छी लगी ,अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
"शिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान"
आईना दिखाती रचना.
टूटते परम्पराओं का दर्द, मैं महसूस करता हूँ. एक शिक्षक की भूमिका निभाई है मैंने अपने छोटे से शहर में.
बदलता युग इतना सब कुछ बदल देगा. क्या कहूँ मैं. बहरहाल आपने बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए कविता प्रस्तुत करी है.
प्रशंशा करता हूँ आपकी.
- सुलभ
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
जवाब देंहटाएंक्या संभव है
इस परंपरा का अंत ... ????????????????????????
aapki rachna jubaaN khamosh kar rahi hai .
shyad chintan or vichar ki jarurat hai
aaj samaj ko ..
कविता बहुत गहरे तक जाकर असर छोडती है ....बेहतरीन
जवाब देंहटाएंwaah waah waah .....bahut hi sateek ..vakai DRON to pahle sikshak vyapari the.
जवाब देंहटाएंशिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
bahut sach kaha hai.... Parampara to waise hi khatam ho chuki hai. aajkal kaha aise shishy hai ...
व्यवस्था के अन्याय का
जवाब देंहटाएंशिक्षा के व्यवसाय का !!
आपने जलता हुआ सवाल उठाया है ! क्योंकि यहाँ बात बुद्धिजीवी वर्ग की है ! जब तक छात्र शिक्षा को समझता है तब तक वह व्यवसाय का अंग हो चुका होता है ! इस क्षेत्र में भारी शोषण और मारामारी है !आप एक सजग प्रहरी की तरह सवाल उठाते हैं ! आभार !
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
जवाब देंहटाएंक्या संभव है
इस परंपरा का अंत
....Prampara ka nirvahan dusare roop mein hona aaj bhi dukhat sthiti ko darshata hai....
..bahut achhi saarthak rachna
शिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
अच्छी प्रस्तुति। आभार !
बेहद उम्दा...
जवाब देंहटाएंbahut hii sundar rachanaa,
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनापूर्ण रचना। पढ़कर आनंद आ गया। वैसे सब परस्थितियों पर निर्भर करता है। आज भी एकलव्य मिल जाएंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, शानदार और ज़ोरदार कटाक्ष किया है आपने! लाजवाब रचना! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंएक बहुत अच्छी पोस्ट. मैं इस क्षेत्र से सालों तक जुडी रही हूँ सो जानती हूँ क्या क्या होता है किसको क्या क्या झेलना पड़ता है. अच्छी प्रस्तुति। आभार
जवाब देंहटाएंशिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
अनगिनत परंपराओं की भीड़ में
क्या संभव है
इस परंपरा का अंत ...
Shiksha kshetra ka aaj ka such. Sunder rachna
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी और पर्युषण पर्व की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
अच्छा हुआ टाईम रहते मास्टरी छोड़ दी.... वर्ना आपकी चपेट में आ जाता! हा हा हा....
सशक्त सन्देश देती और सत्य बयाँ करती रचना!
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
....जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!.... सब मंगलमय हो!
जवाब देंहटाएंआपकी ये बेहतरीन रचना पढकर किसी कवि की ये पंक्ति स्मरण हो आई कि "सम्बन्ध आज सारे व्यापार हो गए हैं"....जब दुनिया के सभी सम्बंध बाजारीकरण की भेंट चढ चुके हैं तो भला ये गुरू-शिष्य सम्बन्ध इससे कैसे अछूता रह सकता था...
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण,बेहतरीन रचना,
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.बधाई ....
सच और सटीक बात _____________________________
जवाब देंहटाएंएक ब्लॉग में अच्छी पोस्ट का मतलब क्या होना चाहिए ?
क्या हर युग में
जवाब देंहटाएंएकलव्य को देना होगा अंगूठे का दान ..?
शिक्षक की राजनीति का
रखना होगा मान ..?
झूठी परंपरा का
करना होगा सम्मान ..?
वाह कितना वाजिब सबाल है। मगर आज ऐसे शिक्षक कहाँ है जिन्हें अंगूठा दान किया जाये। वो तो पहले ही टुयूशन के लिये एक्लव्य की फिराक मे रहते हैं। वैसे इसमे कुछ अपवाद भी होंगे मगर आज के शिक्षक व्यापारी बन गये हैं। बहुत अच्छी लगएए रचना बधाई।
शिक्षक से ज़्यादा
जवाब देंहटाएंकौन समझता है
बीते हुवे कल का इतिहास
सही और ग़लत का गणित
भौतिक इच्छाओं का अर्थशास्त्र
झूठे अहम का मनोविज्ञान
bahut behtareen...
jahaa tak dakshina ki prampara khtm karne ka swaal hai use puri tarah se khatm bhi nahi kiya ja sakta, haan roop jarur badla ja sakta hai......dakshina mudra ya wastuk me na hokar kisi ache wachan ke roop me ho to aur baat hai.......