स्वप्न मेरे: कैसे जीवन बीतेगा

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

कैसे जीवन बीतेगा

राशन नही मिलेगा भाषन
पीने को कोरा आश्वासन
नारों की बरसात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा

भीख मांगती भरी जवानी
नही बचा आँखों का पानी
बेशर्मी से बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा

जातिवाद का जहर घोलते
राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
अपनो का प्रतिघात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा

आदर्शों की बात पुरानी
संस्कार बस एक कहानी
मानवता पर घात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा

नियम खोखले, तोड़े हैं दम
मैं ही मैं है, नही बचा हम
निज के हित की बात हो जब
तब कैसे जीवन बीतेगा

52 टिप्‍पणियां:

  1. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    वाह, एकदम सटीक, बहुत सुन्दर !

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  2. त्रासद यथार्थ को मार्मिक ढंग से शब्दों में ढाल चिंतन को उद्वेलित करती प्रभावशाली रचना....वाह !!!

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  3. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    bahut sahi evam chintneeybaat kahi hai. Badhai!!

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  4. नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    सच में ऐसे कैसे जीवन बीतेगा ? शायद कदम-कदम पर अपमानित होकर, शायद कदम-कदम पर अंधा होकर, शायद संवेदनाओं को मारकर... जीवन बीत जायेगा , लेकिन वह घोर अमानवीय जीवन ही तो होगा !

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  5. sach hi to he, samaaz shastra hame kuchh aour padhhataa he aour vyavhaarvaad me hame dekhane ko kuchh aour miltaa he. fir isame raajniti sab chaknachoor kar deti he..aadami ke saare sapne havaa ho jaate he..., vaado ke naam par hame milataa he aashvaasan aour jaativaad,kattarvaad,raajnitivaad...rashtravaad kanhi dikhataa bhi he to dhundh ki tarah.
    is rachna me aapne bhi to karaaraa waar kiyaa he is sthiti par.., hona jaroori he..lagataar.., itihaas me ek adhyaay aayaa thaa jab kaavyvaad ne desh dharm nibha kar apna daaitva nibhayaa tha..ek baar fir se jaroorat he usi itihaas ke dohraane ki.

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  6. नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    anupam rachna badhaai.

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  7. naswa sahab
    apne blog se aapke balog tak aaya..
    aur dang rah gaya ye jaan kar ki aapko wo sawal tang kar rahi hay jiska uttar khojna ham sabhi ko behad zaruri hay.
    aapne aane wale mushkil daur ke gambhir samsyaon me sabse gambhir samsyaa
    "तब कैसे जीवन बीतेगा"par prakhas dala..
    duniya jis raste par jaa rahi hay waise me chinta hona lazmi hay..magar ALLAH,ISWAR, ham sabhi ko jina sikhla dega..aur kai had tak wo sambhal lega ham sabhi sidhe sonchne walon ko..

    Dhanywad ewm badhai.

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  8. क्या सच् लिखा आपने . शब्द् नही मिल् रहे है तारीफ़् के लिये

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  9. हमारे समय की विडम्बना तो
    यही है , भाई ! ---
    ''नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम .... ''
    ............ आभार ,,,

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  10. जातिवाद का जहर घोलते
    राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
    अपनो का प्रतिघात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    आपकी रचना एक एक शब्द
    हर एक पँक्र्ति हर एक शब्द जीवन की सच्चाई से जुडे हैं सही मे नियम खोखले हैं संस्कार लुपत होते जा रहे हैं ,धर्म जाति पर दंगे हो रहे हैं ,नेता लोग भाषणो से जन्ता का पेट भर रहे हैं--- हर विडंवना को आपने बहुत सहज और सुन्दर शब्दों से संवारा है अद्भुत रचना शुभकामनायें

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  11. हर पंक्ति सच को उजागर करती हुई...बहुत अच्छी रचना...

    नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    स्वार्थ को बताती हुई ये पंक्तियाँ सच कह रही हैं....बधाई इस रचना के लिए

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  12. आपकी इस रचना की तो जितनी भी तारीफ की जाए,कम ही होगी......
    यथार्थ को शब्दों में किस खूबी से ढाला है आपने...
    लाजवाब्!

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  13. क्या बात है सर जी..एक नया ही अंदाज निखर आया नज़्म के बहाने..मधुर..हमारे यथार्थ को अभिव्यक्त करती इतनी तल्ख बातें इतनी सहजता से कह जाना आसान नही..बहुत खूबसूरत..
    हाँ भारी को शायद ’भरी’ लिखना चाहते थे आप!

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  14. " bahut hi badhiya
    आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    ye aapne bilkul sahi kaha hai sir

    ----- eksacchai { AAWAZ }

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  15. बहुत लयबद्धता है पढने में अच्‍छी लगती हैं .....आज की कठिनाइयों को उघाडती हुई

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  16. बहुत अच्छी लगी ये रचना..एक सतत लय भी..और शब्दशः सच्चाई भी क्या खूब..!

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  17. जातिवाद का जहर घोलते
    राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
    अपनो का प्रतिघात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    बहुत सामयिक और सार्थक सवाल किया है आपने ।

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  18. नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    बहुत ही गहराई लिये हुये, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  19. सच्चाई के साथ .... बहुत खूबसूरत कविता....

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  20. प्रभावशाली रचना है. दिगंबर जी, आपने जिस प्रकार दृश्य चित्रण कर सम्वेंदना को जगह दी है. काबिले-तारीफ़ है.

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  21. prabhavshali dhang se bahut hi gahan baat kah di isi prakar jagate rahiye.

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  22. अपूर्व जी .......... गलती सुधार ली है .......... बहुत बहुत शुक्रिया, ध्यान दिलाने का .........

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  23. नासवा साहब
    भाई कमाल कर दिया अपने
    जातिवाद का जहर घोलते
    राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
    अपनो का प्रतिघात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    बड़ी संजीदगी से इतनी बड़ी बात कह दी |
    धन्यवाद ................

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  24. बहुत ही प्रभावशाली रचना है.
    सामयिक और सटीक भी..यही है आज की स्थिति..अक्षर अक्षर सत्य है...बहुत ही उम्दा लिखा है.

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  25. सुन्दर भाव व शब्द चयन आभार.
    http://sonal-rastogi.blogspot.com/

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  26. जातिवाद का जहर घोलते
    राष्ट्र वेदी पर स्वार्थ तोलते
    अपनो का प्रतिघात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    Kya kahen ispe?Waise to har pankti dohrane layaq hai...

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  27. नासवा जी, आदाब
    भीख मांगती भरी जवानी......
    जातिवाद का जहर......
    आदर्शों की बात पुरानी.....
    नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    .............तब कैसे जीवन बीतेगा
    हर पंक्ति दिल को छू गई, शानदार लेखन
    मुबारकबाद

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  28. नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    kuch bhi ho..desh ki vyavastha..rajnitik bhrashtachar yahi jab isi soch par pahuchte hai to sab dam tod dete hai...sb khud k hit me lage hai..tabhi ye haal hai aur yahi rahega...isi soch ko badalna hai.
    bahut chetna jagati rachna.

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  29. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा !!!
    aapki chinta bahut jayaj hai! manvta ko ghat pahuncha kar koi jati dhrm desh aage nhin badh sakta hai !aape vicharon aur bhaon me kartvynishthta hai !eise brkrar rkhen !

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  30. एक संवेदनशील ह्रदय द्वारा व्यक्त इस रचना का सन्देश आम आदमी आत्मसात कर सके, यही शुभकामनाएं हैं !
    सादर !

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  31. नियम खोखले, तोड़े हैं दम
    मैं ही मैं है, नही बचा हम
    निज के हित की बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    बहुत सुंदर ।

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  32. जिंदगी की तल्ख सच्चाई बयां कर दी आपने।
    पर कमबख्त जीवन तो बीत ही जाता है, चाहे हंसकर, चाहे रो कर।
    --------
    ये इन्द्रधनुष होगा नाम तुम्हारे...
    धरती पर ऐलियन का आक्रमण हो गया है।

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  33. एक मुहावरा है- हक्का-बक्का. पढ़ा भी और इस्तेमाल भी किया. इसका अर्थ आज समझ में आया. इस गीत ने मुझ से कहाः बेटा, ऐसा कभी लिखा?
    और मैं जवाब में वही हो गया. भाई, पूरे देश और समाज की मानसिकता तो छाप के रख दी. अब हमारे जैसों के लिए बचा ही क्या!
    जब आप लोग हैं तो मुझे कविता करने की जरूरत? मैं सचिन तेंदुलकर तो हूँ नहीं कि जब तक निकाला न जाऊं, बल्ला न छोडूं. वैसे आप की मुहब्बत का शुक्रगुज़ार हूँ. कभी कभी कुछ फैसले लेने जरूरी हो जाते हैं.

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  34. राशन नही मिलेगा भाषन
    पीने को कोरा आश्वासन
    नारों की बरसात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    ..............jabardast hai dear naswa sahab.

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  35. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    ..... behad prabhaavashaalee abhivyakti !!!

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  36. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    bahut pate ki baat kah di aapne ,gaur farmaane wali hai .

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  37. ek ek panktee vazadaar hai .....sashakt rachana ke liye tahe dil se badhai..............

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  38. आदर्शों की बात पुरानी
    संस्कार बस एक कहानी
    मानवता पर घात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा

    आज कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका कुछ उत्तर नही हैं ..बढ़िया भाव..सुंदर रचना

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  39. भीख मांगती भरी जवानी
    नही बचा आँखों का पानी
    बेशर्मी से बात हो जब
    तब कैसे जीवन बीतेगा
    सामयिक और यथार्थपरक रचना
    सुन्दर दृश्यांकन और सटीक शब्द

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  40. रंगोत्सव पर्व की अनेको हार्दिक शुभकामनाये ...

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है