स्वप्न मेरे

बुधवार, 29 अगस्त 2012

अब गुज़री तो तब गुज़री ...


अब गुज़री तो तब गुज़री 
धीरे धीरे सब गुज़री 

तन्हाई में फिर कैसे 
पूछो ना साहब गुज़री 

मुद्दत तक रस्ता देखा 
इस रस्ते तू अब गुज़री   

दिन बीता तेरी खातिर 
तेरी खातिर शब् गुज़री 

महफ़िल महफ़िल घूम लिए 
तन्हाई पर कब गुज़री 

मोती तब ही चुन पाया   
गहरे सागर जब गुज़री 

बुधवार, 22 अगस्त 2012

इक तबस्सुम में ये दम है ...


दिन हैं छोटे रात कम है 
साथ उनका दो कदम है  

फुर्र हो जाते हैं अपने 
वक़्त का कैसा सितम है 

तू है या एहसास तेरा 
या मेरे मन का वहम है 

दूर होने पर ये जाना 
आज फिर क्यों आँख नम है 

दूसरों को कौन रोए 
सब को बस अपना ही गम है  
  
छोड़ के मैं जा न पाया  
इक तबस्सुम में ये दम है  

सोमवार, 13 अगस्त 2012

सुख दुःख से जब परे हुए हो ...


सब से परदा करे हुए हो   
तन्हाई में घिरे हुए हो   

पत्तों से ये हवा ने बोला     
पतझड़ से क्यों डरे हुए हो   

भाव नहीं है दया का दिल में 
अंदर से क्या मरे हुए हो 

संगी साथी नहीं रहेंगे  
गुस्से से जो भरे हुए हो 

बदकिस्मत हो तभी तो अपनी   
डाली से यूं झरे हुए हो 

जीवन उस दिन समझ सकोगे 
सुख दुःख से जब परे हुए हो  

रविवार, 5 अगस्त 2012

कैसी है तेरी सरहद ...


कविताओं के दौर से निकल के पेश है आज एक गज़ल ... आशा है पसंद आएगी ...

चाहे मेरा जितना कद  
पर बापू तू है बरगद  

बंटवारे का खेल हुवा 
खींची अपनी अपनी हद     

बेटे ने बस पूछ लिया  
अम्मा है कितनी गदगद   

जूते चप्पल चलते हैं 
कैसी है अपनी संसद 

अंदर आना नामुमकिन   
कैसी है तेरी सरहद 

बुधवार, 25 जुलाई 2012

चिंतन ...


अनेकों बार पढ़े गीता सार से प्रभावित रचना ... 

जो हुआ 
या जो हो रहा है 
और आगे भी होने वाला है    
सब कुछ बेमानी तो नहीं 

हर होने के पीछे की वजह मालुम हो 
ये जरूरी नहीं 
और जो हुआ या होने वाला है ... वो बेवजह नहीं    
ये कह देना भी जरूरी नहीं 

जो जरूरी है वो ये की हर होने को जीना    
जो होने वाला है उसको तहे दिल से तसलीम करना   

जो होना है वो तो होगा 
वजह जान के बेवजह करना 
या जो होना है उसको न होने देना    
आसान तो न होगा 

तो क्यों न मान लेना ही अच्छा 
की जो हो रहा है अच्छा हो रहा है 
जो होगा वो भी अच्छा ही होगा 
भूत गुज़र गया भविष्य की चिंता न करो 
वर्तमान तो चल रहा है