स्वप्न मेरे: मार्च 2025

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

होठों के आस पास ये इक टूटा जाम है …

कोमा कहाँ लगेगा कहाँ पर विराम है.
किसको पता प्रथम है के अंतिम प्रणाम है.

घर था मेरा तो नाम भी उस पर मेरा ही था,
ईंटों की धड़कनों में मगर और नाम है.

कोशिश करोगे तो भी न फिर ढूँढ पाओगे,
अक्सर वहीं मिलूँगा जो मेरा मुक़ाम है.

होता है ज़िन्दगी में कई बार इस क़दर,
दिन उग रहा है पर न पता किसकी शाम है.

घर यूँ जलाया उसने मेरे सामने लगा,
अब हो न हो ये कोई पड़ोसी का काम है.

यादों में क़ैद कर के रखा है तमाम उम्र,
सच-सच कहो ये आपका क्या इंतक़ाम है.

घायल न कर दे मय की तलब इस क़दर मुझे,
होठों के आस-पास ये इक टूटा जाम है.

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

होली है …

रंगों में डूब जाइए होली का रोज़ है
फागुन का गीत गाइए होली का रोज़ है

पलकें ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
ख़ुद में सिमट न जाइए होली का रोज़ है

कीचड़ नहीं ये रंग हैं ताज़ा पलाश के
यूँ तो न मुँह बनाइए होली का रोज़ है

कुछ लोग पीट-पीट के छाती कहेंगे अब
पानी न यूँ बहाइए होली का रोज़ है

बाहर खड़े हैं देर से आ आइये हज़ूर
हमको न यूँ सताइए होली का रोज़ है

भर दूँ ये माँग आपकी उल्फ़त के रंग में
हाँ है तो मुस्कुराइए होली का रोज़ है

कुर्ता सफ़ेद डाल के ये रिस्क ले लिया
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है

वैसे भी मुझपे इश्क़ का रहता है अब नशा
ये भांग मत पिलाइए होली का रोज़ है
तरही ग़ज़ल