स्वप्न मेरे: गोया लुटने की तैयारी ...

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

गोया लुटने की तैयारी ...

मिट्टी का घर मेघ से यारी
गोया लुटने की तैयारी

जी भर के जी लो जीवन को
ना जाने कल किसकी बारी

सागर से गठजोड़ है उनका
कागज़ की है नाव उतारी

प्रजातंत्र का खेल है कैसा
कल था बन्दर आज मदारी

बुद्धीजीवी बोल रहा है
शब्द हैं कितने भारी भारी

धूप ने दाना डाल दिया है
साये निकले बारी बारी

रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
ढूंढ रही है धूल बिचारी

जाते जाते रात ये बोली
देखो दिन की दुनियादारी

91 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर...वाह!

    मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    शुभकामनाएँ!

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  2. धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    बहुत ही बढ़िया सर!

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    यह पंक्तियां बहुत ही बढि़या ..आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी
    दिगम्बर साब इन खूब सूरत शेरों के लिए आप को साधुवाद .पूरे ग़ज़ल में एक कटाक्ष किया है जो उम्दा शेरों में जीवंत कर दिया , बधाई .
    सादर

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  5. बुद्धीजीवी बोल रहा है---
    शब्द हैं कितने भारी भारी

    बढ़िया अंदाज ||

    बहुत बहुत बधाई ||

    neemnimbouri.blogspot.com

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  6. ला-जवाब कर दिया आपने………

    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

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  7. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी
    बुद्धीजीवी बोल रहा है
    शब्द हैं कितने भारी भारी
    ...sach kaha aapne kal jo bandar the aaj wahi madari bankar apna khel dekha kar janta ko nacha rahe hai.. aur budhijivi kahalani wale mook ban tamashbeen ban baithe hai..
    saarthak chintransheel prastuti hetu aabhar..

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  8. कौन सी एक पंक्ति ढूंढें वाह कहने के लिए ...
    बेहद मारक!

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  9. प्यारी गज़ल।

    मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी
    ..वाह!

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  10. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    लाज़वाब गज़ल..सभी शेर बहुत उम्दा..

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  11. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    क्या खूब...वो शेर याद आ गया..

    शायद कुछ ऐसा था...
    "बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़
    कच्चा है तेरा मकान,कुछ तो ख्याल कर, "

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  12. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    लाज़वाब गज़ल..हर पंक्ति लाजवाब.....

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  13. वाह ...बहुत खूब उम्दा और लाजबाब

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  14. कोई एक शेर कैसे चुनूँ पूरी गज़ल ही शानदार दिल मे उतरने वाली है।

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  15. लाजवाब ! हर पंक्ति अपने आप में बेजोड़ है..जीवन जिसने भी चाहा है
    कर ली मृत्यु की तैयारी

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  16. बुद्धीजीवी बोल रहा है
    शब्द हैं कितने भारी भारी

    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी


    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।

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  17. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    जाते जाते रात ये बोली
    देखो दिन की दुनियादारी

    वाह , बेहतरीन शे'र कहे हैं ।
    शानदार ग़ज़ल ।

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  18. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी
    क्‍या बात है?

    जवाब देंहटाएं
  19. रेगिस्तान में थोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    जाते जाते रात ये बोली
    देखो दिन की दुनियादारी....
    अति सुंदर भाव
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  20. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी
    क्‍या बात है.......

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  21. जो जितना लुटा उतना पाया भी.सुन्दर लिखा है.शुभकामना...

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  22. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    वाह क्या गजब का शेर कहा है, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम

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  23. धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी... waah ....दशहरा की शुभकामनायें

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  24. सागर से गठजोड़ है उनका
    कागज़ की है नाव उतारी

    Bahut hi Sunder...

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  25. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी
    छोटी बहर की ग़ज़ल लिखने के आप उस्ताद हैं। एक-एक शे’र लाख-लाख शब्दों की बातें कह जाते हैं। बधाई आपको इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  26. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    सागर से गठजोड़ है उनका
    कागज़ की है नाव उतारी

    प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    बुद्धीजीवी बोल रहा है
    शब्द हैं कितने भारी भारी

    बहुत उम्दा !!
    वाह !!
    ख़ूबसूरत अश’आर से सुसज्जित ग़ज़ल
    मुबारक हो

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  27. जाते जाते रात ये बोली
    देखो दिन की दुनियादारी
    वाह बेहतरीन.

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  28. गोया लूट लेने की तैयारी है.. उम्दा लेखन से

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  29. NICE.
    --
    Happy Dushara.
    VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
    --
    MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
    ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
    Net nahi chal raha hai.

    जवाब देंहटाएं
  30. बुद्धीजीवी बोल रहा है
    शब्द हैं कितने भारी भारी
    वाह .. अत्यंत प्रभावशाली ... सुन्दर

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  31. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी.

    बहुत खूब.

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  32. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

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  33. वाह! हर दोहे एक से बढ़ कर एक..
    वर्त्तमान और चीर-काल तक रहने वाली बातों को खूब संजोया है इनमें..

    आभार

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  34. आपकी उत्कृष्ट रचना है --
    शुक्रवार चर्चा-मंच पर |
    शुभ विजया ||
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  35. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
    नवीन सी. चतुर्वेदी

    जवाब देंहटाएं
  36. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी
    गहरी बातें हैं...!
    विजयादशमी की शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है नासवा जी .गदगद हुआ मन पढके .बहुत उदास था मन ,हल्का हुआ आपकी बेहतरीन ग़ज़ल पढके ,सार्थक हुआ आजका दिन .

    जवाब देंहटाएं
  38. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी
    हर बंद मुखर है ,मूल्यवान है, बधाईयाँ जी .

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  39. बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ व्यवस्था को आईना दिखाता गजलों का खुबसूरत गुलदस्ता ।
    दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  40. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    कमाल कर दिया ,नासवा जी !
    जीवन का इतना बड़ा सत्य कहने के लिए इतने कम शब्दों को आपने राजी कैसे कर लिया ?

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  41. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    दिगंबर जी...वाह...लाजवाब...क्या शेर कहा है...पहली बाल पर सीधा छक्का जड़ दिया आपने...

    प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    आज की तल्ख़ सच्चाई को धारदार व्यंग से व्यक्त किया है आपने...बेजोड़...

    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    ये ऐसा शेर है जिस पर टिपण्णी करना आसान नहीं...सीधा दिल में उतर गया है...ये उस्तादों वाला शेर है जनाब ...

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    क्या मंज़र कशी की है,गहरी बात कहने का ये अंदाज़..ये हुनर...वाह.....सुभान अल्लाह...

    भाई दिगंबर जी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  42. दशहरा पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं
  43. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी
    नासवा जी, बहुत अच्छा मतला है...

    सागर से गठजोड़ है उनका
    कागज़ की है नाव उतारी
    अच्छा शेर है...
    प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी
    आज की राजनीति पर करारा तंज़.

    संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
    विवरण जज़्बात पर है
    http://shahidmirza.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  44. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  45. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    सागर से गठजोड़ है उनका
    कागज़ की है नाव उतारी


    gazab ki soch

    जवाब देंहटाएं
  46. सिम्पली ब्रीलीएंट . कमाल है साहब .

    जवाब देंहटाएं
  47. बेमिसाल है हर शेर ! बहुत बहुत बहुत ही खूबसूरत ! बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  48. सुन्दर रचना दिगंबर जी निम्न पंक्तियाँ गजब की यथार्थ .....हमारे सभी मित्रो को आप के साथ साथ विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं -सौभाग्य से कुल्लू में प्रभु श्री राम के दर्शन हुए और मन में आया आप सब के बीच भी इस शुभ कार्य को बांटा जाए .--

    आभार आप का
    भ्रमर ५

    प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    बुद्धीजीवी बोल रहा है
    शब्द हैं कितने भारी भारी

    जवाब देंहटाएं
  49. लाजवाब मतला है। शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  50. behad khubsurat ghazal hai digambar jee khaskar ye do sher..


    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    जवाब देंहटाएं
  51. जाते जाते रात ये बोली
    देखो दिन की दुनियादारी
    bahut hi sundar rachna !

    जवाब देंहटाएं
  52. मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    सब शेर पसंद आये, लाजवाब ग़ज़ल!

    जवाब देंहटाएं
  53. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    कितनी सही बात कही है सर आपने!! :)

    जवाब देंहटाएं
  54. आपके पोस्ट पर आना बहुत सार्थक लगता है । .बहुत सुंदर लगा । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  55. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी

    digambar ji aapka jabab nahi....har shabd bahut khoobsurat hain....aabhar

    जवाब देंहटाएं
  56. रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी ....

    लाजवाब ग़ज़ल!........

    जवाब देंहटाएं
  57. वाह! बहुत सुन्दर भाव, प्रभावी कविता!

    जवाब देंहटाएं
  58. एक एक शेर स्वतः तालियाँ बजवा गए...

    क्या लिखा है आपने...बस वाह...वाह...वाह....

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  59. दर पे आये हाथ जोड़कर
    गोया लूटने की तैयारी.
    उनका खेल ह्मेशा जारी
    लुटना अपनी भी लाचारी.
    थोड़ी उनकी भी लाचारी
    कुछ अपनी भी जिम्मेदारी.
    हम चुपचाप नहीं सहते तो
    कैसे निभती रिश्तेदारी.
    अच्छी गज़ल पढ़ी,मैं बहका
    भाई दिगम्बर VERY SORRY..
    आपकी गज़ल ने तो कमाल कर दिया,बेमिसाल..

    जवाब देंहटाएं
  60. सागर से गठजोड़ है उनका
    कागज़ की है नाव उतारी

    प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    वाह वाह, आम आदमी का जीवन भी, नेताओ की मजबूरी भी

    जवाब देंहटाएं
  61. लुटने की तैयारी बढ़िया लगी
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  62. इतने सरल शब्दों में इतनी गूढ़ बातें .... बेहतरीन !!!

    जवाब देंहटाएं
  63. बेहतरीन गज़ल ... हर शेर कुछ कहता हुआ सा ..

    जवाब देंहटाएं
  64. आदरणीय नासवा जी
    नमस्कार !
    मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी
    ..गजब का शेर
    .....बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  65. जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ...नासवा जी

    जवाब देंहटाएं
  66. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी
    जीवन का सही फलसफा ..

    जवाब देंहटाएं
  67. जी भर के जी लो जीवन को
    ना जाने कल किसकी बारी
    bhut khub.

    जवाब देंहटाएं
  68. भाई दिगम्बर जी बहुत ही उम्दा और लाजवाब गज़ल बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  69. भाई दिगम्बर जी बहुत ही उम्दा और लाजवाब गज़ल बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  70. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं
  71. वाह ...बहुत खूब उम्दा और लाजबाब

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  72. बहुत सुंदर...वाह!

    मिट्टी का घर मेघ से यारी
    गोया लुटने की तैयारी

    सारे शेर अच्छे हैं मगर ये मतला ख़ास है..... नया सा प्यारा सा ! अभिव्यक्ति पसंद आयी,....! अच्छी रचना का आभार !

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  73. लाजवाब....
    धूप ने दाना डाल दिया है
    साये निकले बारी बारी

    रेगिस्तान में ठोर ठिकाना
    ढूंढ रही है धूल बिचारी

    ...गज़ब की सोच है

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  74. प्रजातंत्र का खेल है कैसा
    कल था बन्दर आज मदारी

    मदारी ने बनाया सब को बन्दर.
    सब खेल खिला रहा है अंदर ही अंदर.

    प्रजातंत्र पर लगा रहें हैं धब्बा
    मेरी टिपण्णी का अंक है अब नब्बा.

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है