गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से संवरा गीत ....
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है  
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है  
 
दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात करती है  
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव लगती है  
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर  
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है  
बड़ी शिद्दत से अम्मा..... 
 
कभी जब भूल से पत्नी मेरी चूल्हा जला ले तो 
दही मक्खन पराठा जब कभी तुझसा बना ले तो  
कभी घर से अचानक हींग की खुश्बू के आते ही 
तेरे हाथों की वो खुश्बू मेरे दिल को सताती है  
बड़ी शिद्दत से अम्मा..... 
 
वो छुटके को हुई थी रात में उल्टी अचानक ही  
लगी थी खेलते में गैन्द फिर उस शाम किरकेट की   
हरी मिर्ची नमक नींबू कभी घर के मसालों से  
दवा देसी बगल वाली पड़ोसन जब बनाती है 
बड़ी शिद्दत से अम्मा.... 
 
निकलती है कभी बिस्तर से जब फ़र्नैल की गोली  
नज़र आती है आँगन में कभी जब दीप रंगोली  
पुरानी कतरनें अख़बार के पन्नों को छूते ही 
तू शब्दों से निकल कर सामने जब मुस्कुराती है 
बड़ी शिद्दत से अम्मा.... 
 
मैं छोटा था मुझे चोरी से तू कुछ कुछ खिलाती थी   
मुझे है याद सीने से लगा के तू सुलाती थी  
किसी रोते हुवे बच्चे को बहलाते में जब अक्सर 
नये अंदाज़ से जब माँ कोई करतब दिखाती है  
बड़ी शिद्दत से अम्मा....
मंगलवार, 31 मई 2011
गुरुवार, 26 मई 2011
वो हो गये बच्चों से पर माँ बाप हैं फिर भी
बातें पुरानी छेड़ना अच्छा नही होता   
ज़ख़्मों की मिट्टी खोदना अच्छा नही होता
जो है उसे स्वीकार कर लो ख्वाब मत देखो
सच्चाई से मुँह मोड़ना अच्छा नही होता
जो हो गया सो हो गया अब छोड़ दो उसको
गुज़रे हुवे पल सोचना अच्छा नही होता
ये रोशनी रफ़्तार तेज़ी चार दिन की है
बस दौड़ना ही दौड़ना अच्छा नही होता
बातें नसीहत हैं ज़माने में बुज़ुर्गों की
कहते में उनको रोकना अच्छा नही होता
  
कमज़ोर हैं तो क्या हुवा कुछ काम आएँगे
माँ बाप को यूँ छोड़ना अच्छा नही होता
वो हो गये बच्चों से पर माँ बाप हैं फिर भी
हर बात पे यूँ टोकना अच्छा नही होता
मैं वो करूँगा, ये करूँगा है मेरी मर्ज़ी
बच्चों का ऐसा बोलना अच्छा नही होता
कुछ फूल भी बच्चों की तरह मुस्कुराते हैं
डाली से उनको तोड़ना अच्छा नही होता
ज़ख़्मों की मिट्टी खोदना अच्छा नही होता
जो है उसे स्वीकार कर लो ख्वाब मत देखो
सच्चाई से मुँह मोड़ना अच्छा नही होता
जो हो गया सो हो गया अब छोड़ दो उसको
गुज़रे हुवे पल सोचना अच्छा नही होता
ये रोशनी रफ़्तार तेज़ी चार दिन की है
बस दौड़ना ही दौड़ना अच्छा नही होता
बातें नसीहत हैं ज़माने में बुज़ुर्गों की
कहते में उनको रोकना अच्छा नही होता
कमज़ोर हैं तो क्या हुवा कुछ काम आएँगे
माँ बाप को यूँ छोड़ना अच्छा नही होता
वो हो गये बच्चों से पर माँ बाप हैं फिर भी
हर बात पे यूँ टोकना अच्छा नही होता
मैं वो करूँगा, ये करूँगा है मेरी मर्ज़ी
बच्चों का ऐसा बोलना अच्छा नही होता
कुछ फूल भी बच्चों की तरह मुस्कुराते हैं
डाली से उनको तोड़ना अच्छा नही होता
सोमवार, 16 मई 2011
गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से सजी ....
धीरे धीरे बर्फ पिघलना ठीक नही
दरिया का सैलाब में ढलना ठीक नही
पत्ते भी रो उठते है छू जाने से
पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही
 
इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही
अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
सपनों का आँखों में पलना ठीक नही
जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही
 
यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही
जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही
गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही
धीरे धीरे बर्फ पिघलना ठीक नही
दरिया का सैलाब में ढलना ठीक नही
पत्ते भी रो उठते है छू जाने से
पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही
इक चिड़िया मुद्दत से इसमें रहती है
घर के रोशनदान बदलना ठीक नही
ख़ौफ़ यहाँ बेखौफ़ दिखाई देता है
रातों को यूँ घर से निकलना ठीक नही
अपने ही अब घात लगाए बैठे हैं
सपनों का आँखों में पलना ठीक नही
जब तक सुनने वाला ही बहरा न मिले
दिल के सारे राज़ उगलना ठीक नही
यादों का लावा फिर से बह निकलेगा
दिल के इस तंदूर का जलना ठीक नही
जिनके चेहरों के पीछे दस चेहरे हैं
ऐसे किरदारों से मिलना ठीक नही
गुस्से को सड़कों तक तो लाना होगा
बर्तन में ही दूध उबलना ठीक नही
रविवार, 8 मई 2011
माँ .....
मैने तो जब देखा अम्मा आँखें खोले होती है   
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
बँटवारे की खट्टी मीठी कड़वी सी कुछ यादें हैं
छूटा था जो घर आँगन उस पर बस अटकी साँसें हैं
आँखों में मोती है उतरा पर चुपके से रोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
मंदिर वो ना जाती फिर भी घर मंदिर सा लगता है
घर का कोना कोना माँ से महका महका रहता है
बच्चों के मन में आशा के दीप नये संजोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
चेहरे की झुर्री में अनुभव साफ दिखाई देता है
श्वेत धवल केशों में युग संदेश सुनाई देता है
इन सब से अंजान वो अब तक ऊन पुरानी धोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
बँटवारे की खट्टी मीठी कड़वी सी कुछ यादें हैं
छूटा था जो घर आँगन उस पर बस अटकी साँसें हैं
आँखों में मोती है उतरा पर चुपके से रोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
मंदिर वो ना जाती फिर भी घर मंदिर सा लगता है
घर का कोना कोना माँ से महका महका रहता है
बच्चों के मन में आशा के दीप नये संजोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
चेहरे की झुर्री में अनुभव साफ दिखाई देता है
श्वेत धवल केशों में युग संदेश सुनाई देता है
इन सब से अंजान वो अब तक ऊन पुरानी धोती है
जाने किस पल जगती है वो जाने किस पल सोती है
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