पंकज जी के गुरुकुल में तरही मुशायरा नयी बुलंदियों को छू रहा है ... प्रस्तुतत है मेरी भी ग़ज़ल जो इस तरही में शामिल थी ... आशा है आपको पसंद आएगी ....
महके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
सहरा शहर बस्ती डगर उँचे महल ये झोंपड़ी
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
है इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा
दानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
मीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला
जब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
बेहतरीन गज़ल ………………शानदार शेर्।
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
बहुत बढ़िया गज़ल ...बंदगी करती हुई सी ..
"नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
जवाब देंहटाएंतुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी"
बहुत खूब, दिगम्बर जी। इतनी खूबसूरत गज़ल पढ़वाने के लिये आभार।
नास्वा जी आपकी गज़ल पहले भी पढी है। वाकई इसे कहते हैं गज़ल्\ लाजवाब
जवाब देंहटाएंहै इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा
दानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
मीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला
जब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
वाह वाह क्या शेर कहे हैं। बहुत बहुत बधाई।
.
जवाब देंहटाएंमहबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
मीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी ...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल । प्यार उसी को कहते हैं जिसमें पवित्र भक्ति तथा प्रेमी के लिए पूर्ण समर्पण का भाव होता है। उसी में सारी खुशियाँ, और उसी में इश्वर दीखता है। बहुत सुन्दर भाव और शब्द संरचना। इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई।
.
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
बहुत खूबसूरत गज़ल
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
जवाब देंहटाएंतुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी ...
क्या बात है...उम्दा गज़ल ....
इससे सुन्दर क्या प्रियतम को क्या उपमा दी जा सकती है ....बहुत सुन्दर !
आप तो गज़ल के बादशाह हो..वहाँ भी पसंद आई थी, यहाँ वही बताने आये. :)
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली.
नासवा साहब , खूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंतुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
इसमें बहुत मजा आया..
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
जवाब देंहटाएंकाली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
वाह वाह बहुत सुन्दर कहा ..बेहतरीन लिखा है आपने बहुत पसंद आया यह शेर
"इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला
जवाब देंहटाएंजब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी"
यही तो दिल की लगी है.
खूब ग़ज़लें कह रहे हैं नासवा जी आजकल आप
इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला
जवाब देंहटाएंजब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी
बहुत खूब नासवा जी ।
सभी शेर कमाल के हैं ।
खूबसूरत ग़ज़ल ।
बेहतरीन ग़ज़ल है नासवा जी ...
जवाब देंहटाएंवाह..वाह!
जवाब देंहटाएंमहके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
--
ग़ज़ल के मतले ने ही मन मोह लिया!
इस मखमली ग़जल के लिए बधाई!
नासवा जी, बेहतरीन ग़ज़ल है...
जवाब देंहटाएंआपने ये शेर शायद सुना होगा-
बेहिजाबी ये कि हर ज़र्रे में जलवा आशकार
और पर्दा ये किसी ने आज तक देखा नहीं...
इधर आपका ये मतला-
महके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
कमाल है....लाजवाब है...जितनी भी दाद दी जाए, कम है...
हम तो इस मतले से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं.
यहां काफ़ी देर ठहरकर आपके ख्यालों की उडान को देख रहे हैं...
हर शेर बहुत खूब.
नासवा जी, बेहतरीन ग़ज़ल है...
आपने ये शेर शायद सुना होगा-
बेहिजाबी ये कि हर ज़र्रे में जलवा आशकार
और पर्दा ये किसी ने आज तक देखा नहीं...
इधर आपका ये मतला-
महके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
कमाल है....लाजवाब है...जितनी भी दाद दी जाए, कम है...
हम तो इस मतले से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं.
यहां काफ़ी देर ठहरकर आपके ख्यालों की उडान को देख रहे हैं...
हर शेर बहुत खूब.
भाई नासवाजी आपका हमारे ब्लाग पर आना अच्छा लगा।आपको भी दीपावली की असीम शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमहके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
जवाब देंहटाएंतुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
... jadugar se kahen koi jadu kare
saaree khushiyon se sabki jeben bhare
kuchh alag saa ehsaas laga is rachnaa mein
जवाब देंहटाएंवाह..वाह
जवाब देंहटाएंमहके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी ...
प्यार का बेहतरीन अंदाज़, अच्छा और नया लगा
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
जवाब देंहटाएंतुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
Bahut hee sundar!
Behtrin Gazal
जवाब देंहटाएंअहा, बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल इअतनी सहज होती है कि एक बार मे ही दिल मे उतर जाती है . इस गज़ल का तो कहना ही क्या.............
जवाब देंहटाएंशानदार गज़ल.
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक लाजवाब शेर.
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल.
5.5/10
जवाब देंहटाएंग़ज़ल अच्छी बन गयी है
सातवाँ और आठवां शेर प्रभावशाली हैं
आखिरी शेर का तो अंदाज ही निहायत जुदा सा है
इसके लिए आप विशेष मुबारकबाद के हकदार हैं.
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
जवाब देंहटाएंकाली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
उम्दा ख्याल.....बेहतरीन रचना....
अपनी पसंद दूसरा शेर ...एक उम्मीद ! एक दुआ अपनी भी !
जवाब देंहटाएंदिगंबर भाई जी, उक्त ग़ज़ल पहले भी पढ़ा और अब भी पढ़ रहा हूँ..भाव इतने प्रबल है की बात ही क्या करने है...मिसिरा कुछ कठिन था पर जिस तरह से आपने शेर कहें है वो लाज़वाब है..आपके लेखनी के हम सब कायल है..एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली..बहुत बहुत धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंइस गजल की जितनी भी तारिफ की जाय कम है.
जवाब देंहटाएंये तीन तो बहुत खास लगे...
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी ..
जवाब देंहटाएंवाह !
गज़ल बहुत खूबसूरत है..
जवाब देंहटाएंनज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
जवाब देंहटाएंतुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी ...
वाह ... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
सोचने पर मजबूर करती है ये लाइने
इस ग़ज़ल में सूफियाना टच है।
जवाब देंहटाएं(टिप्पणीःघृतकुमारी वाले आलेख का विस्तार किया गया है। आवश्यकता पड़ने पर संदर्भ लिया जा सकता है।)
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी !
बेहतरीन रचना....!!
वाह वाह क्या शेर कहे हैं। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंइतनी खूबसूरत गज़ल पढ़वाने के लिये आभार।
..........नास्वा जी
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
@नासवा जी
जवाब देंहटाएंइन शब्दों अर्थ पता चल जाये तो मैं भी समझ सकूंगा
इब्तदाए, उफक, दानिश, आलिम
[ये टिप्पणी अनावश्यक लगे तो हटाई जा सकती है ]
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
जवाब देंहटाएंतुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
दीपावली की असीम शुभकामनाएँ।
तुझको तो देखा नहीं मगर तेरी जादूगरी देखली क्या बात है। इश्क इवादत सूफी। मालिक को अजनवी कैसे कहूं बहुत सुन्दर। भक्त बडा भगवान से ।ठोकर तुझे मारी सदा अपमान भी तेरा किया क्षमा मांगना बहुत भाया
जवाब देंहटाएंaaj aapki gazal dil ko bahut bhai.man karta hai bar-bar ise padhti rahun.kuchh shabdon ke arth nahi samajh me aaye ,parpuri gazal padh kar uska saar samajh me aa gaya.
जवाब देंहटाएंbahut hibehatreen gazal.
der se hi sahi dipawali avam bhai duuj ki bahut bahut shubh-kamna.
सहरा शहर बस्ती डगर उँचे महल ये झोंपड़ी
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
है इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा
दानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी
ye panktiyan bahut hi achhi lagin.
poonam
"तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी"
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई, भाव प्रवण अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत बढ़िया गज़ल ,दीपावली की असीम शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब......
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यों मुझे रागिनी, जानकी जैसे शब्द बंदगी, अजनबी जैसे शब्दों के साथ मेल खाते नहीं दिखाते, ग़ज़ल पढ़ने पर कुछ अटपटे से लगते है ....... भाव तो खैर खासे अच्छे बांधे है आपने ...
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ....
Bahut alag see khoobsurat gazal.
जवाब देंहटाएंमहके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
सहरा शहर बस्ती डगर उँचे महल ये झोंपड़ी
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
Deewali par itani sunder kamna bhee.
बहुत समय लगा इस खोज में
जवाब देंहटाएंआलिम = ज्ञान वाला,
इब्तदा = शुरूआत,
उफक = आसमान
थैंक्स टू गूगल
'महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी '
-बेहद बेहद खूबसूरत बात कही है !
बहुत अच्छी लगी गज़ल
----@Gaurav-
दानिश का अर्थ नहीं मिला आप को शायद..उस का अर्थ मेरे ख्याल से 'ज्ञानी' होता है.
और आलिम का अर्थ 'विद्वान, /बुद्धिमान / सुबोध'.
और ...'उफ़क 'का सटीक अर्थ क्षितिज[horizon] होगा.
@अल्पना जी
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने... "दानिश" का अर्थ नहीं मिला था :(
बहुत बहुत धन्यवाद आपका :)
मुझे भी मेरे ढूंढें अर्थ अधूरे से ही लग रहे थे :)
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
sundar!
हाँ ... शायद अब पूरी तरह समझ में आ गया है
जवाब देंहटाएंदानिश और आलिम दोनों सम्बंधित हैं
जैसे ज्ञान और ज्ञानी या बुद्दी और बुद्दिमान
और इसी के साथ हुयी एक नयी खोज ..मेरी अगली पोस्ट में जरूर पढियेगा :)
मीरा राधा हीर को एक साथ देखना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंहै इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा
जवाब देंहटाएंदानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी
वाह-वा !!
ये शेर अपनी मिसाल आप बन गया है
एक खूबसूरत ग़ज़ल से मिलवाने के लिए
आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
नासवा जी!
जवाब देंहटाएं"है ग़ज़ल आप की, वाक़ई टाप की।
बैटरी चार्जर है ये उत्ताप की॥"
सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ.
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
आपके लिए कहूंगा काइम रहे ये रौशनी...........
जवाब देंहटाएंशानदार गजल है, बिल्कुल आपके जुदा अंदाज की तरह।
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
एक दम दर्शन की अभिव्यक्ति और वो भी सटीक, लाजबाब रचना
"नासवा" जी मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया , इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहिये ताकि लेखन का क्रम अनवरत जारी रहे.....शुक्रिया
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
जवाब देंहटाएंमीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
बेहतरीन गज़ल ………………शानदार शेर्।
दिगम्बर भाई, बहुत प्यारी गजल कही है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएं---------
इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी !
वाह! दिगम्बर जी, गजल बहुत ही बढिया लगी....
आभार्!
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
जवाब देंहटाएंकाली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
...वाह क्या बात है!
भावों को मोतियों की तरह सुन्दर शब्दों में पिरोया है. बहुत खूब.शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंवाह ..क्या उम्दा ग़ज़ल है .
जवाब देंहटाएंआभार ..
.....ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया,
जवाब देंहटाएंकाली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी .
बेहतरीन
बधाई स्वीकारें।
regard >
P.S.Bhakuni (Paanu)
उम्दा कविता के लिए हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
जवाब देंहटाएंये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी
नज़रें झुकाए तू खड़ी है थाल पूजा का लिए
तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी
ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया
काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी
bahut hi badhiya gazal ,har baat laazwaab .
behad sunder.
जवाब देंहटाएंekdam roohani hai..!
जवाब देंहटाएंवहां दी बधाई (गुरुदेव के ब्लॉग पर)....यहाँ लो बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
वहां दी बधाई (गुरुदेव के ब्लॉग पर)....यहाँ लो बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
है इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा
जवाब देंहटाएंदानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी
महबूब तेरे अक्स में है हीर लैला सोहनी
मीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी
इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला
जब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी
.......बहुत खूब शे'र कहे हैं मेरे मनके करीब आके दस्तक देने लगे हैं कि...देख तुझ-से हैं हम या हम जैसी ही है तु? तेरे अक्स को उतारा है शायर ने कूंची से नही अपने लफ्जों से ' और मैं ??? ऐसिच हूँ मैं तो प्यार जिसके लिए ईश्वर है.
किन्तु.............
तुम आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में
ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी' इस शे'र में शुद्ध हिंदी के शब्दों का प्रयोग नही सुहा रहा,खटक सा रहा है.अपने गुरूजी से कहिये 'पृथ्वी' 'हवा' 'अंश' के स्थान पर उर्दू के शब्द बताए.इससे नीचे लिखे शे'र में भी हिंदी के सब्द अखर रहे हैं.मेरे ख्याल से नज्म और गीत में उसी के अनुसार उर्दू /हिंदी शब्दों का प्रयोग ही होना चाहिए. मुझे इसका ज्ञान नही.बस पढते हुए एक रवानी सी ना होने पर ऐसा लगता है.उसी तरह जैसे हमे रागों का ज्ञान नही होते हुए भी हम गीत की मधुरता को पहचान लेते है. है ना?
अपने आप में यह एक सुन्दर रचना है किन्तु या हिंदी शब्दावली होती या केवल उर्दू शब्दों का प्रयोग होना चाहिए.जिस तरह एक ही रचना (कविता या नज्म कुछ भी हो) में 'तु' तुम' ठीक है किन्तु उसी में 'आप' का प्रयोग बहुत खटकता है जबकि बड़े बड़े रचनाकारों कवियों को मैंने ये सब करते देखा,सुना,पढा है.दोनों का प्रयोग व्याकरणीय,कव्यशिल्प दोष कहलाता है.
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