खोखले जिस्म में साँस लेतीं
कुछ ज़ख्मी यादें
कुछ लहुलुहान ख्वाब
जागती करवटों में गुज़री अधूरी रातें
जिस्म की ठंडक से चटके लम्हे
पसीने से नहाई चादर में लिपटा सन्नाटों का शोर
कुछ उबलते शब्दों की अंतहीन बहस
खून से रंगी चूड़ियों कि किरचें
कमीज़ पर पड़े कुछ ताज़ा जख्म के निशान
दिल के किसी कोने में
धूल के नीचे दबी
आवारा देह कि मादक गंध
कुछ हसीन लम्हों की तपिश
महकते लोबान का अधूरा नशा
गर्म साँसों का पिघलता लावा
उम्र के ढलते पड़ाव पर
कुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
लंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
दर्द, जख्म ....मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ... दर्द सहते सहते एक हद आती है जिसके बाद और दर्द का एहसास नहीं रहता ... सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंशुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
बहुत सुन्दर.....बढ़िया नज़्म ! उम्र की दास्ताँ को अलफ़ाज़ दे दिए आपने ....!
कुछ उबलते शब्दों की अंतहीन बहस
जवाब देंहटाएंखून से रंगी चूड़ियों कि किरचें
कमीज़ पर पड़े कुछ ताज़ा जख्म के निशान
हृदयस्पर्शी रचना !
सच है ---
"दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना"
पर अब दर्द में
जवाब देंहटाएंदर्द का एहसास नही होता ..।
बहुत ही बेहतरीन शब्द रचना ।
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता
" दर्द के एहसास की दरिया में बहती डूबती तरती आवारा यादो का ये सिलसिला भी क्या खूब है ना..."
regards
दर्द जब हद से गुजर जाता है
जवाब देंहटाएंहर अह्सास दफ़न हो जाता है
मौत से बडी सौगात मिल गयी हो जिसे
फिर दर्द का अहसास कैसे हो?
You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful! hope u go for this website to increase visitor.
जवाब देंहटाएंमहकते लोबान का अधूरा नशा
जवाब देंहटाएंगर्म साँसों का पिघलता लावा ...
bahut hi shaandar roopak
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
bahut khubsurati se uker diya hai aapne
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंUff! Yah alfaaz hain yaa dahakte angare...!Aap hamesha nishabd hi kar dete hain!
जवाब देंहटाएंbeautiful thoughts!
जवाब देंहटाएंउम्र के ढलते पड़ाव पर
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
bahut hi shaandaar abhivyakti
मर्म को दर्द का स्पर्श देती रचना....
जवाब देंहटाएं"महकते लोबान का अधूरा नशा
गर्म साँसों का पिघलता लावा"
ये प्रयोग बहुत सुन्दर लगा...
"पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता"
दर्द को उकेरती ये पंक्तियाँ, उम्र के एक ठहराव की और इशारा करती हैं .....
शुभकामनाएं....
शरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलम्बे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास ही नहीं होता
कुछ सुलगते हुए लम्हों को
दिल में बसाए रखने की कोशिश में रची गयी
भावपूर्ण रचना ........
आपके विचारों की उड़ान पढने वालों को भी
साथ बहा ले जाती है
अभिवादन
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंपर अब दर्द में
जवाब देंहटाएंदर्द का एहसास नही होता ...
ऐसा तो दो ही हालात में होता है एक डायबिटीज़ में , दूसरा उम्र ढल जाने के बाद ।
बेहतरीन प्रदर्शन किया है दर्द के अहसास का ।
सुन्दर रचना , नासवा जी ।
बहुत intense अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना.
"उम्र के ढलते पड़ाव पर
कुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं "
बहुत अच्छा लगा.
इसको हमारा भासा में करेजा निकाल कर रख देना बोलते हैं... साझा दर्द का अनोखा कहानी लिखे हैं आप अपना कबिता में… अऊर एतना दर्द के बाद त दर्द दवाई का काम करने लगता है... खाड़ी में डूबकर लगता है आप मोती निकालते हैं… नासवा जी धन्यबाद!!
जवाब देंहटाएंइतना दर्द मत उंड़ेलिये भाई
जवाब देंहटाएंजिगर का दर्द कहीं मालूम होता है
जवाब देंहटाएंजिगर का दर्द नहीं मालूम होता है..
अच्छा दर्द है भाई कि दर्द को भी अहसास नहीं होता. काफी खतरनाक किस्म का दर्द है.
कुछ उबलते शब्दों की अंतहीन बहस
जवाब देंहटाएंखून से रंगी चूड़ियों कि किरचें
कमीज़ पर पड़े कुछ ताज़ा जख्म के निशान
है पंक्ति में एक नया सा दृश्य दिखा ...ऐसा लगा की दर्द निरंतर बह रहा है....संवेदनशील अभिव्यक्ति
बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना, सही कहा दर्द जब हद से बढ जाये तो दर्द का एहसास भी नही होता. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकुछ कहने के लायक नहीं छोड़ा… कुछ भी कहूँ तो छोटा होगा...तमाम दर्द भरी यादों को समेटकर आपने बिखेर दिया है... ऐसे में दर्द का एहसास ही ख़त्म हो जाता है... सच कहा है आपने!!
जवाब देंहटाएंउम्र के ढलते पड़ाव पर
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
--
बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील रचना प्रस्तुत की है आपने!
dard takleef aur yaaden !man chheelane ka ehasaas karati aapki rachanaa bahut sundar lagi ...khaaskar tab jyaada jab aapne kaha ki dard itana ki dard ka ehasaas hi nahin rha.. badhayi
जवाब देंहटाएंदर्द मे दर्द का एहसास ना होना दर्द की पराकाष्ठा ही तो है
जवाब देंहटाएंशुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
ओह ऐसा एहसास भी कितना दर्दनाक होता है--- जब दर्द दर्द न लगे---- मगर इस दर्द को कई बार छोडने को भी मन नही चाहता --कुछ दर्द ओढने बिछाने और याद करने के लिये बहुत अच्छे लगते हैं ।तभी तो उनकी टीस एहसास नही होता। दिल की गहराई से निकली इस रचना के लिये धन्यवाद।
अहसास न होने वाले दर्द .बहुत बढिया अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंदर्द जब हद से गुजर जाता है, किसी और ही रंगत में नजर आता है....
जवाब देंहटाएंदर्द की टीस शब्दों में उकेर दी.
sundar dard bhari marmik rachna.........:)
जवाब देंहटाएंबहुत अनूठी.कहते हैं की वक़्त सारे दर्द भर देता है पर ये भी उतना ही सच है की वक़्त ही पुराने दर्द को कुरेदता रहता है
जवाब देंहटाएंशुरू होता है न ख़त्म होने वाला
लंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
दिगम्बर जी लगता है अब तो दर्द ही दवा है आपकी।
जवाब देंहटाएं"यथार्थ वर्णन....प्रभावशाली आरम्भ-मध्य-अंत..."
जवाब देंहटाएंउम्र के ढलते पड़ाव पर
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
लंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ..
shabd saare kamaal ke hai ,rachna bhi lazwaab ,dard spasht jhalak raha hai .ahsaas shoonya se ....badhiya
"पर अब दर्द में
जवाब देंहटाएंदर्द का एहसास नही होता"
बस जीने की शर्त यही है....बेहद उम्दा रचना
दिगंबर नासवा जी
जवाब देंहटाएंकमाल की हैं आवारा यादें…
क्या बिंब लिए हैं …
ज़ख्मी यादें
लहुलुहान ख्वाब
लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
उबलते शब्द
और ये आप ही की महारत है कि कविता फिर भी बिदकी सहमी नहीं ।
वाह जी !
शस्वरं पर आने का आमंत्रण है , समय मिले तो पधारिएगा ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
bahut hi bhaw se bhari rachna.....
जवाब देंहटाएंJeevan ka katu satya.
जवाब देंहटाएंअहसास बनाये रखें तब तो कुछ बात बनेगी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी रचना है नासवा जी।
जवाब देंहटाएंपसीने से नहाई चादर में लिपटा सन्नाटों का शोर
जवाब देंहटाएंबिम्बों का उत्तम प्रयोग।
उम्र के ढलते पड़ाव पर
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
अद्भुत शब्द संयोजन ....!!
दर्द का एक दर्द भरा वर्णन । दिल मे दर्द का एहसास दिलाती हुई । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंdard ka adbhut chitran.........
जवाब देंहटाएंEk ek pankti lajawab.............
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ...
bahut asardaar bhav. badhai!!
उम्र के ढलते पड़ाव पर
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे लम्हों के भूत
चुड़ेली यादें
जिस्म के खंडहर में जवान होती हैं
वक़्त के हाथों मरहम लगे जख्म कुरेदती हैं
ताज़ा तरीन रखती हैं
दिगंबर जी...उम्र के उस पड़ाव पर बस यादों के सिवा कुछ साथ नही रहती...बहुत सुंदर कविता ..वाकई ऐसे ऐसे पल से गुज़री जिंदगी में बाद में दर्द तो होगा ही..पर यह दर्द उन सभी दर्द से अलग होता है जो पहले होता रहा होगा..एहसान से हीन...सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार....
बेहतरीन प्रदर्शन दर्द के अहसास का ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...... नासवा जी ।
बहुत ही दर्द भरी रचना दिल की गहराई से निकली हुई.........
जवाब देंहटाएंबेहद करुण ...
जवाब देंहटाएंदुनिया की अच्छी दर्दभरी रचनाओं में एक और बेहतरीन रचना शामिल हो गई !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा यहाँ आना।
जवाब देंहटाएंकिसी और का कलाम है - दर्ज किए जाता हूँ:
वहशतों के सिलसिले - सोज़े-निहाँ तक आ गए
हम तो दिल तक जानते थे, तुम तो जाँ तक आ गए
अब तुम्हें शायद हमारी जुस्तजू करनी पड़े
हम तुम्हारी जुस्तजू में - अब यहाँ तक आ गए!
बहुत बढ़िया कविताएँ मिलीं, आभार…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपर अब दर्द में.. दर्द का एहसास नही होता ...बहुत ही मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंशुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता
ye Awara yadon kee fitrat hai...
Umdaaaaa.....
एक दर्द भरी कविता.दर्द की हदें बताती हुई जहाँ सहनशीलता भी दम तोड़ने लगती है और दर्द का अहसास शून्य हो जाता है..इस अहसास को शब्दों में व्यक्त करती यह मर्मस्पर्शी कविता उदास कर जाती है.यह आप की लिखी पहले की रचनाओं से हट कर लगी.
जवाब देंहटाएंपर अब दर्द में
जवाब देंहटाएंदर्द का एहसास नही होता ...
यही है दर्द की इंतेहा शायद...
Part 1of 4
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से एक विचार मेरे मन की गहराइयों में हिलोरे खा रहा था लेकिन उसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आप सबका सहयोग चाहिए इसलिए उसे आप सबके समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की पता नहीं कहीं वो असफल और अस्वीकार ना हो जाए लेकिन तभी ये विचार भी आया की बिना बताये तो स्वीकार होने से रहा इसलिए बताना ही सही होगा .
दरअसल जब भी मैं इस देश की गलत व्यवस्था के बारे में कोई भी लेख पढता हूँ, स्वयं लिखता हूँ अथवा किसी से भी चर्चा होती है तो एक अफ़सोस मन में होता है बार-2 की सिर्फ इसके विरुद्ध बोल देने से या लिख देने से क्या ये गलत व्यवस्थाएं हट जायेंगी , अगर ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता , हम में से हर कोई वर्तमान भ्रष्ट system से दुखी है लेकिन कोई भी इससे बेहतर सिस्टम मतलब की इसका बेहतर विकल्प नहीं सुझाता ,बस आलोचना आलोचना और आलोचना और हमारा काम ख़त्म , फिर किया क्या जाए ,क्या राजनीति ज्वाइन कर ली जाए इसे ठीक करने के लिए ,इस पर आप में से ज़्यादातर का reaction होगा राजनीति !!! ना बाबा ना !(वैसे ही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति ने जान का डर पैदा कर दिया है राजनीति में कदम रखने वालों के लिए ) वो तो बहुत बुरी जगहं है और बुरे लोगों के लिए ही बनी है , उसमें जाकर तो अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आदि आदि ,इस पर मेरा reaction कुछ और है आपको बाद में बताऊंगा लेकिन फिलहाल तो मैं आपको ऐसा कुछ भी करने को नहीं कह रहा हूँ जिसे की आप अपनी पारिवारिक या फिर अन्य किसी मजबूरी की वजह से ना कर पाएं, मैं सिर्फ अब केवल आलोचना करने की ब्लॉग्गिंग करने से एक step और आगे जाने की बात कर रहा हूँ आप सबसे
आप सोच रहे होंगे वो कैसे ,तो वो ऐसे जनाब की मैं एक साझा ब्लॉग (Common Blog ) create करना चाहता हूँ जिसका की मकसद होगा एक ऐसा मंच तैयार करना जिसपे की हम सब हमारे देश के वर्तमान सिस्टम की खामियों की सिर्फ आलोचना करने के साथ-२ उसका एक तार्किक और बढ़िया हल भी प्रस्तुत करें और उसे बाकायदा एक बिल के रूप में पास करें आपसी बहस और वोटिंग के द्वारा
जवाब देंहटाएंइस पर आपका कहना होगा की क्या सिर्फ ब्लॉग जगत के द्वारा देश के लिए नए और बेहतर कानून और सिस्टम बनाने से और वो भी सिर्फ ब्लॉग पर पास कर देने से देश का गलत सिस्टम और भ्रष्ट व्यवस्था बदल जायेगी ? तो श्रीमान आपसे कहना चाहूँगा की ये मैं भी जानता हूँ की ऐसा नहीं होने वाला लेकिन ज़रा एक बात सोचिये की जब भी हममें से कोई इस भ्रष्ट और गलत व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाता है या भविष्य में भी कभी उठाएगा तो जब इस गलत व्यवस्था के समर्थक हमसे पूछेंगे की -" क्या तुम्हारे पास इससे बेहतर व्यवस्था का प्लान है ?,अगर है तो दिखाओ " , तो क्या आपको नहीं लगता की हमारे पास पहले से वो सही सिस्टम होना तो चाहिए जो उस समय हम उनके सामने पेश कर सकें ,एक बार हम एक सही व्यवस्था का खाका तैयार करने में कामयाब हो गए तो वो दिन दूर नहीं होगा जब हम इसे पूरे देश के सामने भी पेश करेंगे और देश हमारा साथ देगा और इस पर मोहर लगाएगा .
इसीलिए मेरी आप सबसे प्रार्थना है की इसमें सहयोग करें , मैं आपसे आर्थिक सहयाग मतलब रुपया ,पैसे का सहयोग नहीं मांग रहा बल्कि आपसे बोद्धिक सहयोग चाह रहा हूँ ,
हमारे इस common BLOG का नाम होगा
"BLOG Parliament - Search for a right system & laws for the country "
http://blog-parliament.blogspot.com/
इसके मुख्यतः 3 चरण होंगे
1 . अपने बिल अथवा प्रस्ताव की प्रस्तुति और उसपे बहस
2 . उस प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में वोटिंग
3 . Majority वोटिंग के हक में प्रस्ताव का पास होना अथवा reject होना
आप सबसे यही सहयोग चाहिए की आप सब इसके मेम्बर बनें,इसे follow करें और प्रत्येक प्रस्ताव के हक में या फिर उसके विरोध में अपने तर्क प्रस्तुत करें और अपना vote दें
जवाब देंहटाएंजो भी लोग इसके member बनेंगे केवल वे ही इस पर अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में publish कर सकते हैं जबकि वोटिंग members और followers दोनों के द्वारा की जा सकती है . आप सबको एक बात और बताना चाहूँगा की किसी भी common blog में members अधिक से अधिक सिर्फ 100 व्यक्ति ही बन सकते हैं ,हाँ followers कितने भी बन सकते हैं
तो ये था वो सहयोग जो की मुझे आपसे चाहिए ,
मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की इसके बदले आप अपने-२ ब्लोग्स लिखना छोड़ दें और सिर्फ इस पर ही अपनी पोस्ट डालें , अपने-2 ब्लोग्स लिखना आप बिलकुल जारी रखें , मैं तो सिर्फ आपसे आपका थोडा सा समय और बौद्धिक शक्ति मांग रहा हूँ हमारे देश के लिए एक बेहतर सिस्टम और न्याय व्यवस्था का खाका तैयार करने के लिए
1. डॉ. अनवर जमाल जी
2. सुरेश चिपलूनकर जी
3. सतीश सक्सेना जी
4. डॉ .अयाज़ अहमद जी
5. प्रवीण शाह जी
6. शाहनवाज़ भाई
7. जीशान जैदी जी
8. पी.सी.गोदियाल जी
9. जय कुमार झा जी
10.मोहम्मद उमर कैरान्वी जी
11.असलम कासमी जी
12.राजीव तनेजा जी
13.देव सूफी राम कुमार बंसल जी
14.साजिद भाई
15.महफूज़ अली जी
16.नवीन प्रकाश जी
17.रवि रतलामी जी
18.फिरदौस खान जी
19.दिव्या जी
20.राजेंद्र जी
21.गौरव अग्रवाल जी
22.अमित शर्मा जी
23.तारकेश्वर गिरी जी
( और भी कोई नाम अगर हो ओर मैं भूल गया हों तो मुझे please शमां करें ओर याद दिलाएं )
मैं इस ब्लॉग जगत में नया हूँ और अभी सिर्फ इन bloggers को ही ठीक तरह से जानता हूँ ,हालांकि इनमें से भी बहुत से ऐसे होंगे जो की मुझे अच्छे से नहीं जानते लेकिन फिर भी मैं इन सबके पास अपना ये common blog का प्रस्ताव भेजूंगा
common blog शुरू करने के लिए और आपको उसका member बनाने के लिए मुझे आप सबकी e -mail id चाहिए जिसे की ब्लॉग की settings में डालने के बाद आपकी e -mail ids पर इस common blog के member बनने सम्बन्धी एक verification message आएगा जिसे की yes करते ही आप इसके member बन जायेंगे
प्रत्येक व्यक्ति member बनने के बाद इसका follower भी अवश्य बने ताकि किसी member के अपना प्रस्ताव इस पर डालते ही वो सभी members तक blog update के through पहुँच जाए ,अपनी हाँ अथवा ना बताने के लिए मुझे please जल्दी से जल्दी मेरी e -mail id पर मेल करें
mahakbhawani@gmail.com
हमारे इस common blog में प्रत्येक प्रस्ताव एक हफ्ते के अंदर अंदर पास किया जायेगा , Monday को मैं या आप में से इच्छुक व्यक्ति अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में डाले ,Thursday तक उसके Plus और Minus points पर debate होगी, Friday को वोटिंग होगी और फिर Satuday को votes की गणना और प्रस्ताव को पास या फिर reject किया जाएगा वोटिंग के जरिये आये हुए नतीजों से
जवाब देंहटाएंआप सब गणमान्य ब्लोग्गेर्स को अगर लगता है की ऐसे कई और ब्लोग्गेर्स हैं जिनके बौधिक कौशल और तर्कों की हमारे common ब्लॉग को बहुत आवश्यकता पड़ेगी तो मुझे उनका नाम और उनका ब्लॉग adress भी अवश्य मेल करें ,मैं इस प्रस्ताव को उनके पास भी अवश्य भेजूंगा .
तो इसलिए आप सबसे एक बार फिर निवेदन है इसमें सहयोग करने के लिए ताकि आलोचना से आगे भी कुछ किया जा सके जो की हम सबको और ज्यादा आत्मिक शान्ति प्रदान करे
इन्ही शब्दों के साथ विदा लेता हूँ
जय हिंद
महक
दर्द में दर्द का अहसास नहीं होता। सच ही तो है...इतनी यादें और इतनी ज़ख्मी देह..दर्द भी तप बन जाता है। दिगम्बरजी, वाकई शब्दों के साथ खेलते हैं आप और बेहतरीन अभिव्यक्ति दे जाते हैं। यही आपकी खासियत है कि किसी संस्मरण को ताज़ा रखती हुई रचनायें करते हैं..
जवाब देंहटाएंखोखले जिस्म में सांस लेती, लहुलुहान ख्वाब, चादर में लिपटी सन्नाटे का शोर, उबलते शब्द,...वाह क्या जानदार शब्दों से बुनी रचना है..
आपके उपमान और बिम्ब गजब के होते हैं। सचमुच लाजवाब कर दिया।
जवाब देंहटाएं--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
क्या-क्या उपमाएं खोज कर लाये हैं आप!!! वास्तव में कमाल हैं...
जवाब देंहटाएंshayad kisi ne sach hi kaha hai,ki jab dard ki intahan ho jaati hai to fir dard bhi jidagi ka ek hissaa ban jaati hai,aur koi dava kaam nahi karti kyon ki dard ka had se gujar jaana hi vo khud ekdawa ban jaati hai.
जवाब देंहटाएंशुरू होता है न ख़त्म होने वाला
लंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता.
nishabd kar dene wali ek behad khoobsurat post.
poonam
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता
मर्मस्पर्शी कविता |
शुरू होता है न ख़त्म होने वाला
जवाब देंहटाएंलंबे दर्द का सिलसिला
पर अब दर्द में
दर्द का एहसास नही होता ..
क्या खूब निचोड़ा है आपने दर्द से भीगी हुई शब्दों की चादर को
यक़ीनन बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..दर्द में लिपटे शब्द क्या अंदाज-ए-बयां है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (30-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
दर्द का अहसास लिए..
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना...
दर्द तो दर्द ही है चाहे उसका अहसास हो या नहो |
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना है |
आशा
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