स्वप्न मेरे: हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

ये ग़ज़ल पुनः आपके सामने है .......... गुरुदेव पंकज जी का हाथ लगते ही ग़ज़ल में बला की रवानगी आ गयी है ......

यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

बस उबर पाया नहीं तेरी कसक से
भर गया वो घाव जो सर पे पड़ा था

वो चमक थी या हवस इंसान की थी
कट गया सर जिसपे भी हीरा जड़ा था

कोई उसके वास्‍ते रोने न आया
सच का जो झंडा लिए था वो छड़ा था

आज का हो दौर या बातें पुरानी
सुहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था

बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था

65 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर शीर्षक के साथ..... बहुत ही भावपूर्ण रचना.....

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  2. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था
    बस तेरे ज़ख्मों से वो उभर न पाया
    भर गया था घाव जो सर पे पड़ा था

    बहुत प्यारी लाइने है नासवा साहब !

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  3. बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    ख़ून से सींचा तो खजाना गड़ा था

    कमाल की लाइनें हैं , शानदार रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सोहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था...

    लफ़्ज़ों में भावों को बहुत सच्चाई से पिरोया है आपने ..बेहतरीन लिखा है ...शुक्रिया

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  5. बस तेरे ज़ख्मों से वो उभर न पाया
    भर गया था घाव जो सर पे पड़ा था

    इसमें पहली लाइन में "हरा था" का स्कोप भी बनता है? है ना.

    यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था

    यह बहुत पसंद आई

    और

    आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सोहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था

    ये भी...

    जवाब देंहटाएं
  6. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा थ

    वो चमक थी या हवस इंसान की
    कट गया हर सर जहाँ हीरा जड़ा था

    आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सोहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था
    नास्वा जी हर बार की तरह कमाल की गज़ल है आपकी गज़ल । ये तीनो शेर तो बस दिल को छू गये अब तो शब्द भी नहीं मिल रहे और क्या कहूँ बस एक ही काम किया इस गज़ल ने जादू शुभकामनाये

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  7. बहुत कुछ कह गए आप अपनी इस कविता में हर शब्द हमेशा की तरह बोलता हुआ और दिल को गहराई तक छूता है
    विडम्बना नहीं तो और क्या है ये ओह !!!!!!!!!!!!!!!

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  8. बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    ख़ून से सींचा तो खजाना गड़ा था

    jisakee soch aisee hai vo sabse dhanee shakhs hai meree nazaro me.
    Bahut acchee rachana hai.

    जवाब देंहटाएं
  9. बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    ख़ून से सींचा तो खजाना गड़ा था

    jisakee soch aisee hai vo sabse dhanee shakhs hai meree nazaro me.
    Bahut acchee rachana hai.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  11. आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सोहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था.......कितनी गहरी बातें और कितनी अच्छी

    जवाब देंहटाएं
  12. नासवा जी

    बिल्कुल सही सच कहा आपने बेहतरीन ग़ज़ल

    कोई भी उसको न फिर रोने को आया
    सच का जो झंडा लिए था वो छड़ा था
    इस बेहतरीन ग़ज़ल को

    पढ़ कर मज़ा आगया

    बधाई कुबूल करें !

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  13. 'वो चमक थी या हवस इंसान की थी
    कट गया सर जिसपे भी हीरा जड़ा था'
    -गहन भाव-बहुत उम्दा !

    'आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सुहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था'
    - वाह !क्या बात है! बहुत खूबसूरत!

    नयी ग़ज़ल में नये ख्याल और ताज़गी है.

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  14. एक एक पंक्ति लाजवाब है किस किस को कट पेस्ट करूँ!!!

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  15. अनमोल , तराश तराश कर ग़ज़ल लायें है |
    आह ,
    सोहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था ,
    यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था
    बेशकीमती लाईनें

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  16. सुन्दर प्रयास है ..
    खासकर ---
    '' बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था ''

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  17. जनाब दिगम्बर नासवा जी, आदाब
    बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है-----
    यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था
    बस उबर पाया नहीं.....
    वो चमक थी या........
    बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था
    --------मतले से आखिरी शेर तक
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    जवाब देंहटाएं
  18. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था
    बस तेरे ज़ख्मों से वो उभर न पाया
    भर गया था घाव जो सर पे पड़ा था !

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ अनुपम प्रस्‍तुति ।

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  19. वो चमक थी या हवस इंसान की थी
    कट गया सर जिसपे भी हीरा जड़ा था
    kya behatreen baat likh di he aapne. sachmuch insaan ki havas hi jo dikhaave ki chamak liye hoti he, achhe achhe sikandar bhi chalte bane he ji.., waah, bahut khub. guruvar ka haath..mitti ko sona banaa detaa he.

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  20. "यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था"

    बहुत सुन्दर रचना.

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  21. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था
    Bas ek shabd..wah!

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  22. कोई उसके वास्‍ते रोने न आया
    सच का जो झंडा लिए था वो छड़ा था


    digambar ji, sabhi ek se badh kar ek lajawaab.

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  23. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

    शुरू की पंक्तियों में ही मज़ा आ गया।
    बेहतरीन।

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  24. .... सारे शेर, पूरी गजल......बेहतरीन !!!

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  25. वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है। ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  26. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था
    वाह क्या सुंदर भाव है, बहुत सुंदर
    धन्यवाद

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  27. इतना सब कुछ तो लोग कह ही चुके हैं.. में तो बस यही कहूँगा "मज़ा आ गया नसावा जी"

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  28. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था-

    -शुरुवात ही ऐसा हिला गई कि क्या कहें..अद्भुत महाराज!!

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  29. itni sundar gazal ki tarif ke liye to shabd bhi kam pad rahe hain..........behtreen

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  30. हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था....

    बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था

    क्या कह दिया जनाब आपने. बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  31. वो चमक थी या हवस इंसान की थी
    कट गया सर जिसपे भी हीरा जड़ा था

    बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था

    बहुत भाव पूर्ण ग़ज़ल....सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  32. कट गया सर जिसपे भी हीरा जड़ा था
    वाह वाह!!
    शेर-दर-शेर सोचते जाने को मजबूर करती हुई रचना, नासवा साहब कमाल बात छुपी है इसमें।
    सुबीर जी निस्संदेह धन्यवाद और आदर के पात्र हैं।

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  33. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

    wah kya baat hai . har shabad pure prabhav me hai...

    जवाब देंहटाएं
  34. प्रत्येक शेर लाजवाब ।हिल गई बुनियाद लेकिन घर खड़ा था यही तो तारीफ़ की बात है ,तमाम जिस्म ही घायल था घाव ऐसा था/ कोइ न जान सका रखरखाव ऐसा था ।बीज मोती ,गेहू सोना । पंत जी याद आगये ""रत्न प्रसविनि है वसुधा , अब समझ सका हूँ ।इसमे सच्ची समता के दाने बोने है/ इसमे जन की क्षमता के दाने बोने है/इसमे मानव ममता के दाने बोने है

    जवाब देंहटाएं
  35. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप सभी को .

    जवाब देंहटाएं
  36. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप सभी को .

    जवाब देंहटाएं
  37. Guru Pankajjee ka naam itanee post par dekha hai mai to naee naee ise duniya me aaee hoo kya aap parichay me unkee char panktiya likhenge ?
    dhanyvaad . sabhee ittnee shruddha rakhate hai mera bhee pranam.......

    जवाब देंहटाएं
  38. आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  39. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    गिर गइ थी नीव घर फिर भी खड़ा था|।।

    यूँ तो सारी की सारी गजल ही बेहतरीन बन पडी है लेकिन उपरोक्त पंक्तियाँ तो बेमिसाल लगी....
    आभार्!

    जवाब देंहटाएं
  40. बस उबर पाया नहीं तेरी कसक से
    भर गया वो घाव जो सर पे पड़ा था
    Bahut sundar prastuti..
    dheere-dheere ghav bhar hi jaaten hai lekin kasak kabhi-kabhi baaki rah hi jaati hai....
    Dhanyavad...

    जवाब देंहटाएं
  41. mere to jaise shabd hi chook gye itni sari "dad "ke bad .
    behtreen shero se sji hai ye gjal bhut khoob .

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  42. गजल अच्छी है दिगम्बर भाई. नई सोच से लैस.
    यहाँ सब ठीक है बस कम्प्यूटर की सेहत ठीक नहीं रही.
    अब आगे निरन्तरता रहेगी.

    जवाब देंहटाएं
  43. कोई उसके वास्‍ते रोने न आया
    सच का जो झंडा लिए था वो छड़ा था
    -सुंदर.

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  44. बेहतरीन मतला .......
    पूरी की पूरी ग़ज़ल शानदार बन पड़ी है........
    यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था
    क्या मतला है ........वह वह

    सच्चाइयों से रु ब रु करता शेर......

    कोई उसके वास्‍ते रोने न आया
    सच का जो झंडा लिए था वो छड़ा था

    जवाब देंहटाएं
  45. बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था.

    AGRICULTURE MINITRY KO ISE APNA SLOGAN BANANA CHAHIYE,

    BAHUT UMDA RACHNA DIGMABAR JI.

    SATYA

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  46. आपकी गज़लों की मधुरता मंत्रमुग्ध करती है..और गज़लों का यह कसाव भी आश्चर्यचकित करता है..यह गज़ल कोई अपवाद नही..खूबसूरत भाव पिरो देते हैं आप कुछ शब्दों मे
    यह जितनी सोहनी की किस्मत है उ्तनी ही उस कच्चॆ घड़े की भी..
    आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सुहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था
    सच है अक्सर जिनपर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं वो लोग भी तो कच्चा घड़ा ही निकलते हैं बुरे वक्त मे जरूरत पड़ने पर..
    मगर जिस शेर का सार्थक संदेश साथ ले जा रहा हूँ वो आखिरी वाला है

    बीज मोती, गेंहू सोना, धान हीरा
    खूं से सींचा तो खजाना ये गड़ा था

    जवाब देंहटाएं
  47. आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सुहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था.kache ghadhe kaha tarte hai?

    जवाब देंहटाएं
  48. बेहद खूबसूरत गज़ल . पंकज जी का हाथ लगा है तो आपके कहे अनुसार निखरी निखरी है । हर शेर लाजवाब है ।

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  49. बला की रवानगी तो सचमुच में आ गयी है दिगम्बर जी...

    क्या शेर बुने हैं सर जी। भई मान गये...मतला तो कमाल का है। और इस शेर पे खूब सारे दाद कबूलें:-
    आज का हो दौर या बातें पुरानी
    सुहनी के लेखे तो बस कच्चा घड़ा था

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  50. खासकर - बस उबर पाया नहीं तेरी कसक से, भर गया वो घाव जो सर पे पड़ा था. बहुत अच्छा लगा.

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  51. यूँ तो सारी उम्र ज़ख़्मों से लड़ा था
    हिल गई बुनियाद घर फिर भी खड़ा था

    दिगंबर जी भावों और शब्दों की बेजोड़ खूबसूरती मिलती है आपकी ग़ज़लों में मैं कैसे बताऊं इतने गहरे भाव होते है की कभी कभी आँखे भी नम हो जाती है..देर से आने के लिए माफी कहूँगा वैसे भी नुकसान मैं अपना ही कर रहा था इतने सुंदर ग़ज़ल से इतने दिन दूर रहा ...धन्यवाद दिगंबर जी बस अपनी रचनाओं से दुनिया को ऐसे ही प्रकाशित करते रहें यही हमारी दुआ है..सादर प्रणाम..

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