रविवार, 26 जून 2022
जवाब ...
खिड़की की चौखट पे बैठे
बुधवार, 15 जून 2022
शिव ...
प्रार्थना के कुछ शब्द
जो नहीं पहुँच पाते ईश्वर के पास
बिखर जाते हैं आस्था की कच्ची ज़मीन पर
धीरे धीरे उगने लगते हैं वहाँ कभी न सूखने वाले पेड़
सुना है प्रेम रहता है वहाँ खुशबू बन कर
वक़्त के साथ जब
उतरती हैं कलियाँ
तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप ले कर
आँखें मुध्ने लगती हैं, हाथ खुद-ब-खुद उठ जाते हैं
उसे इबादत ... या जो चाहे नाम दे देना
खुशबू में तब्दील हो कर शब्द, उड़ते हैं कायनात में
मैं भी कुछ ओर तेरे करीब आने लगता हूँ
तू ही तू सर्वत्र ... तुझ में ईश्वर, ईश्वर में तू
उसकी माया, तेरा मोह, चेतन, अवचेतन
मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का
बुधवार, 8 जून 2022
एहसास ...
जब तक नहीं पड़ती धूल आँखों में
एहसास नहीं होता
आती-जाती साँसों का एहसास भी तब तक नहीं
रुकने न लगे हवा जब तक
वैसे रात का एहसास भी रौशनी के जाने से नहीं
अंधेरे के आने से होता है
मैं जानता हूँ नहीं जुडी ऐसी कोई भी वजह तेरे एहसास के साथ
सिवाए इसके की मैं तुझे प्रेम करने के लिए पैदा हुआ हूँ
मेरे जंगली गुलाब तेरे होने का एहसास मेरी साँसों तक तो है न
...
#जंगली_गुलाब
बुधवार, 1 जून 2022
सफ़र ज़िन्दगी का ...
ये दिन, ये शाम, ये रात, चाँद या
फिर ये सूरज
क्या सच में सब ढलते हैं या ढलती है उम्र
वैसे तो जाता नहीं ये रास्ता भी कहीं
हम ही चल के गुज़र जाते हैं कभी न लौटने के लिए
ये जिंदगी भी तो गुज़र रही है तेरे बिना
हाँ कुछ यादें साथ चलती हैं ... जैसे चलता है तारों का
कारवाँ
लम्हों के अनगिनत जुगनू ... जलते बुझते हैं सफ़र में
पर साथ नहीं देते जैसे समय भी नहीं देता साथ
काली सड़क पे झूलते हरे पत्तों के कैनवस
और कैनवस की डालियों पर बैठे अनगिनत रंगीन पंछी
झक्क नीले रंग में रंगा स्तब्ध आकाश
और आकाश पर रुके कायनात के कुछ किरदार
ठिठका पवन और चन्द आवाजों की आवाजें सड़क के दूसरी छोर पर
घने कोहरे में बनता बिगड़ता तेरा बिम्ब इशारा करता है चले आने
का
हालांकि ये सब तिलिस्म है ... फिर भी चलने का मन करता है
यूँ भी उम्र तमाम करने को अकसर जरूरत रहती है किसी बहाने की
शुक्रवार, 13 मई 2022
रिश्ते ...
रिश्ते कपड़े नहीं जो काम चल जाए
निशान रह जाते हैं रफू के बाद
मिट्टी बंज़र हो जाए तो कंटीले झाड़ उग आते हैं
मरहम लगाने की नौबत से पहले
बहुत कुछ रिस जाता है
हालांकि दवा एक ही है
वक़्त की कच्ची सुतली से जख्म की तुरपाई
जिसे सहेजना होता है तलवार की धार पे चल कर
संभालना होता है कांपते विश्वास को
निकालना होता है शरीर में उतरे पीलिये को
रात के घने अन्धकार से
सूरज की पहली किरण का पनपना आसान नही होता
ज़मीन कितनी भी अच्छी हो
जंगली गुलाब का खिलना भी कई बार
आसान नहीं होता ...
गुरुवार, 21 अप्रैल 2022
बातें - बातें ...
खुद से बात करना ... करते रहना ...
सोच भी पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है ... पर क्या करूं
इंसानी फितरत ही ऐसी है ...
तुम न होतीं तो कोई और होता ... होता ज़रूर किसी का नाम जिंदगी
की किताब में ... स्याही देता है सबको इश्वर ... खाली पन्ने भी देता है जिंदगी में किसी का नाम लिखने को
सोचता हूँ ... तुम न होतीं तो कौन होता ... तुम्हारे जैसा, तुमसे बेहतर, तुमसे अच्छा ... क्या पता न होता ... तुमसे
बेहतर, तुमसे अच्छा
फिर सोचता हूँ तुम्हारे आगे पीछे ही क्यों सोचता हूँ ... तुमसे आगे क्यों नहीं ...
अकसर तेरा अक्स हवा में होता है हर सोच से पहले ...
कितना अच्छा है कभी कभी नशे में डूब जाना, कुछ सोचो और सुबह होते-होते कुछ याद भी न रक्खो ...
उफ़ कितना बे-फजूल सोचता है तू ...
मंगलवार, 29 मार्च 2022
सौदा ...
प्यार सौदा है
जिसके बदले में कुछ नहीं मिलता
मुझे तो कुछ नहीं मिला
पर सच बताना ... क्या तुम्हें भी
फिर मेरे दिल का क्या हुआ ... ?
*****
तुम तो नहीं लिख सकते
किसी के प्रेम की शक्ति लिखवा लेती है
तो क्या वो मुझसे प्रेम करने लगे है ...
सोमवार, 21 मार्च 2022
लम्हे यादों के ...
मत तोडना पेड़ की उस टहनी को
जहाँ अब फूल नहीं खिलते
की है कोई ...
जो देता है हिम्मत मेरे होंसले को
की रहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना ...
*****
बालकनी के ठीक सामने वाले पेड़ पर
चौंच लड़ाते रहे दो परिंदे बहुत देर तक
फिर उड़ गए अलग-अलग दिशाओं में
हालांकि याद नहीं पिछली बार ऐसा कब हुआ था
आज तुम बहुत शिद्दत से याद आ रही हो ...
शनिवार, 12 मार्च 2022
प्रेम ...
प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे
मैंने कहा ... “मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है”
उसने कहा ... “प्रेम की
पैमाइश नहीं होती”
अचानक वो उठी ...
चली गई, वापस न आने के लिए
और मुझे भी समुन्दर का तल नहीं मिला ...
बुधवार, 2 मार्च 2022
हिसाब कुछ लम्हों का ...
जल्द ही ओढ़ लेगा सन्यासी चुनर
की रात का गहराता साया
मेहमान बन के आता है रौशनी के शहर
मत रखना हिसाब मुरझाए लम्हों का
स्याह से होते किस्सों का
नहीं सहेजना जख्मी यादें
सांसों की कच्ची-पक्की बुग्नी में
काट देना उम्र से वो टुकड़े
जहाँ गढ़ी हो दर्द की नुकीली कीलें
और न निकलने वाले काँटों का गहरा एहसास
की हो जाते हैं कुछ अच्छे दिन भी बरबाद
इन सबका हिसाब रखने में
वैसे जंगली गुलाब की यादों के बारे में
क्या ख्याल है ...
सदस्यता लें
संदेश (Atom)