स्वप्न मेरे

बुधवार, 1 जून 2022

सफ़र ज़िन्दगी का ...

ये दिन, ये शाम, ये रात, चाँद या फिर ये सूरज 
क्या सच में सब ढलते हैं या ढलती है उम्र
 
वैसे तो जाता नहीं ये रास्ता भी कहीं
हम ही चल के गुज़र जाते हैं कभी न लौटने के लिए
 
ये जिंदगी भी तो गुज़र रही है तेरे बिना
हाँ कुछ यादें साथ चलती हैं ... जैसे चलता है तारों का कारवाँ  
लम्हों के अनगिनत जुगनू ... जलते बुझते हैं सफ़र में
पर साथ नहीं देते जैसे समय भी नहीं देता साथ
 
काली सड़क पे झूलते हरे पत्तों के कैनवस
और कैनवस की डालियों पर बैठे अनगिनत रंगीन पंछी
झक्क नीले रंग में रंगा स्तब्ध आकाश
और आकाश पर रुके कायनात के कुछ किरदार
 
ठिठका पवन और चन्द आवाजों की आवाजें सड़क के दूसरी छोर पर
घने कोहरे में बनता बिगड़ता तेरा बिम्ब इशारा करता है चले आने का
 
हालांकि ये सब तिलिस्म है ... फिर भी चलने का मन करता है
यूँ भी उम्र तमाम करने को अकसर जरूरत रहती है किसी बहाने की 

शुक्रवार, 13 मई 2022

रिश्ते ...

रिश्ते कपड़े नहीं जो काम चल जाए
निशान रह जाते हैं रफू के बाद
 
मिट्टी बंज़र हो जाए तो कंटीले झाड़ उग आते हैं
मरहम लगाने की नौबत से पहले
बहुत कुछ रिस जाता है
 
हालांकि दवा एक ही है
 
वक़्त की कच्ची सुतली से जख्म की तुरपाई
जिसे सहेजना होता है तलवार की धार पे चल कर
 
संभालना होता है कांपते विश्वास को
निकालना होता है शरीर में उतरे पीलिये को 
 
रात के घने अन्धकार से 
सूरज की पहली किरण का पनपना आसान नही होता
 
ज़मीन कितनी भी अच्छी हो
जंगली गुलाब का खिलना भी कई बार
आसान नहीं होता ...

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

बातें - बातें ...

खुद से बात करना ... करते रहना ...
सोच भी पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है ... पर क्या करूं इंसानी फितरत ही ऐसी है ...
 
तुम न होतीं तो कोई और होता ... होता ज़रूर किसी का नाम जिंदगी की किताब में ... स्याही देता है सबको इश्वर ... खाली पन्ने भी देता है जिंदगी में किसी का नाम लिखने को
 
सोचता हूँ ... तुम न होतीं तो कौन होता ... तुम्हारे जैसा, तुमसे बेहतर, तुमसे अच्छा ... क्या पता न होता ... तुमसे बेहतर, तुमसे अच्छा
 
फिर सोचता हूँ तुम्हारे आगे पीछे ही क्यों सोचता हूँ ... तुमसे आगे क्यों नहीं ...
 
अकसर तेरा अक्स हवा में होता है हर सोच से पहले ... 
 
कितना अच्छा है कभी कभी नशे में डूब जाना, कुछ सोचो और सुबह होते-होते कुछ याद भी न रक्खो ...
उफ़ कितना बे-फजूल सोचता है तू ...

मंगलवार, 29 मार्च 2022

सौदा ...

प्यार सौदा है
जिसके बदले में कुछ नहीं मिलता 
 
मुझे तो कुछ नहीं मिला
पर सच बताना ... क्या तुम्हें भी
 
फिर मेरे दिल का क्या हुआ ... ?
*****
तुम तो नहीं लिख सकते
किसी के प्रेम की शक्ति लिखवा लेती है
 
तो क्या वो मुझसे प्रेम करने लगे है ...

सोमवार, 21 मार्च 2022

लम्हे यादों के ...

 मत तोडना पेड़ की उस टहनी को
जहाँ अब फूल नहीं खिलते
की है कोई ...
जो देता है हिम्मत मेरे होंसले को
की रहा जा सकता है हरा भरा प्रेम के बिना ...
*****
बालकनी के ठीक सामने वाले पेड़ पर
चौंच लड़ाते रहे दो परिंदे बहुत देर तक
फिर उड़ गए अलग-अलग दिशाओं में
हालांकि याद नहीं पिछली बार ऐसा कब हुआ था 
आज तुम बहुत शिद्दत से याद आ रही हो ... 

शनिवार, 12 मार्च 2022

प्रेम ...

प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे
मैंने कहा ... मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है

उसने कहा ... प्रेम की पैमाइश नहीं होती
 
अचानक वो उठी ... 

चली गई, वापस न आने के लिए

और मुझे भी समुन्दर का तल नहीं मिला ...

बुधवार, 2 मार्च 2022

हिसाब कुछ लम्हों का ...

जल्द ही ओढ़ लेगा सन्यासी चुनर
की रात का गहराता साया
मेहमान बन के आता है रौशनी के शहर
 
मत रखना हिसाब मुरझाए लम्हों का
स्याह से होते किस्सों का
 
नहीं सहेजना जख्मी यादें
सांसों की कच्ची-पक्की बुग्नी में
 
काट देना उम्र से वो टुकड़े
जहाँ गढ़ी हो दर्द की नुकीली कीलें
और न निकलने वाले काँटों का गहरा एहसास  
 
की हो जाते हैं कुछ अच्छे दिन भी बरबाद
इन सबका हिसाब रखने में
 
वैसे जंगली गुलाब की यादों के बारे में
क्या ख्याल है ...

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

आदत ...

कितनी अच्छी है
भूल जाने की ये आदत
जब भी देखता हूं तुम्हें  
हर बार
नई सी नज़र आती हो
 
पर सुनो ...
तुम मत डालना ये आदत
 

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

जंगली गुलाब ...

लम्बे समय से गज़ल लिखते लिखते लग रहा है जैसे मेरा जंगली-गुलाब कहीं खो रहा है ... तो आज एक नई रचना के साथ ... अपने जंगली गुलाब के साथ ...
 
प्रेम क्या डाली पे झूलता फूल है ... 
मुरझा जाता है टूट जाने के कुछ लम्हों में
माना रहती हैं यादें, कई कई दिन ताज़ा
 
फिर सोचता हूँ प्रेम नागफनी क्यों नहीं 
रहता है ताज़ा कई कई दिन, तोड़ने के बाद 
दर्द भी देता है हर छुवन पर, हर बार  
 
कभी लगता है प्रेम करने वाले हो जाते हैं सुन्न  
दर्द से परे, हर सीमा से विलग 
बुनते हैं अपन प्रेम-आकाश, हर छुवन से इतर
 
देर तक सोचता हूँ, फिर पूछता हूँ खुद से
क्या मेरा भी प्रेम-आकाश है ... ? 
कब, कहाँ, कैसे, किसने बुना ...
पर उगे तो हैं, फूल भी नागफनी भी
क्यों ...
 
कसम है तुम्हें उसी प्रेम की
अगर हुआ है कभी मुझसे, तो सच-सच बताना  
प्रेम तो शायद नहीं ही कहेंगे उसे ...
 
तुम चाहो तो जंगली-गुलाब का नाम दे देना ... 

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो ...

मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूँ तो.
ये मांग तेरी जाना, तारों से सज़ा दूँ तो.
 
तुम इश्क़ की गलियों से, निकलोगे भला कैसे,
मैं दिल में अगर सोए, अरमान जगा दूँ तो.
 
उलफ़त के परिंदे तो, मर जाएंगे ग़श खा कर,
मैं रात के आँचल से, चंदा को उड़ा दूँ तो.
 
मेरी तो इबादत है, पर तेरी मुहब्बत है,
ये राज भरी महफ़िल, में सब को बता दूँ तो.
 
लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,
ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो.
 
कुछ फूल मुहब्बत के, मुमकिन है के खिल जायें,  
यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो.

(तरही ग़ज़ल)