बुधवार, 14 जुलाई 2021
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया ...
बादलों के पार तारों में कहीं छुड़वा दिया I
गुरुवार, 1 जुलाई 2021
दिल से अपने पूछ के देखो ज़रा ...
बात उन तक तो ये
पहुँचा दो ज़रा.
शर्ट का टूटा बटन
टांको ज़रा.
छा रही है कुछ
उदासी देर से,
बज उठो मिस कॉल
जैसे तो ज़रा.
बात गर करनी नहीं
तो मत करो,
चूड़ियों को बोल
दो, बोलो ज़रा.
खिल उठेगा यूँ ही
जंगली फूल भी,
पंखुरी पे नाम तो
छापो ज़रा.
तुमको लग जाएगी
अपनी ही नज़र,
आईने में भी कभी
झाँको ज़रा.
तितलियाँ जाती
हुई लौट आई हैं,
तुम भी सीटी पे
ज़रा, पलटो ज़रा.
उफ़, लिपस्टिक का ये कैसा दाग है,
इस मुए कौलर को
तो पौंछो ज़रा.
खेल कर, गुस्सा करो, क्या ठीक है,
हार से पहले कहो,
हारो ज़रा.
बोलती हो,
सच में क्या छोड़ोगी तुम,
दिल से अपने पूछ
के देखो ज़रा.
बुधवार, 23 जून 2021
पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं ...
सर्द हवा में गर्म चाय का थर्मस भर चलते हैं.
पंख लगा कर पंछी जैसे चल अम्बर चलते हैं.
खिड़की खुली देख कर उस दिन शाम लपक कर आई,
हाथ पकड़ कर बोली बेटा चल छत पर चलते हैं.
पर्स हाथ में ले कर जब वो पैदल घर से निकली,
इश्क़ ने फिर चिल्ला के बोला चल दफ्तर चलते हैं.
सब के साथ तेरी आँखों में दिख जाती है हलचल,
जब जब बूट बजाते हम जैसे अफसर चलते हैं.
गश खा कर कुछ लोग गिरे थे, लोगों ने बोला था,
पास मेरे जब आई बोली चल पिक्चर चलते हैं.
जब जब उम्र ठहरने लगती दफ्तर की टेबल पे,
धूल फांकती फ़ाइल बोली चल अब घर चलते हैं.
याद किसी की नींद कहाँ आने देगी आँखों में,
नींद की गोली खा ले चल उठ अब बस कर चलते हैं.
शुक्रवार, 11 जून 2021
कश्तियाँ डूबीं अनेकों फिर भी घबराया नहीं ...
देख
कर तुमको जहाँ में और कुछ भाया नहीं.
कैसे
कह दूँ ज़िन्दगी में हमने कुछ पाया नहीं.
सोच
लो तानोगे छतरी या तुम्हे है भीगना,
आसमाँ
पे प्रेम का बादल अभी छाया नहीं.
प्रेम
की पग-डंडियों पर पाँव रखना सोच कर,
लौट
कर इस राह से वापस कोई आया नहीं.
पत्थरों
से दिल लगाने का हुनर भी सीख लो,
फिर
न कहना वक़्त रहते हमने समझाया नहीं.
प्रेम
हो, शृंगार, मस्ती, या विरह की बात हो,
कौन
सा है रंग जिसको प्रेम ने गाया नहीं.
तुमको
पाया, रब को पाया, और क्या जो चाहिए,
कश्तियाँ
डूबीं अनेकों फिर भी घबराया नहीं.
गुरुवार, 3 जून 2021
तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही ...
इक पुरानी याद
दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
घर, मेरा
आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.
कुछ उजाले शाम
होते ही लिपटने आ गए,
रात भर ये रात
छज्जे पर मेरे अटकी रही.
लौट कर आये नहीं
कुछ पैर आँगन में मेरे,
इक उदासी घर के
पीपल से मेरे लटकी रही.
उनकी आँखों के
इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जीत का सेहरा भी
उनका हार भी उनकी रही.
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.
रौशनी के चोर
चोरी रात में करने चले,
तीरगी की आड़ ले
कर रौशनी छुपती रही.
बुधवार, 26 मई 2021
घुमड़ते बादलों को प्रेम का कातिब बना देना ...
घुमड़ते
बादलों को प्रेम का कातिब बना देना.
सुलगती
शाम के मंज़र को गजलों में बता देना.
बदल
जाएगा मौसम धूप में बरसात आएगी,
मिलन
के चार लम्हे जिंदगी के गुनगुना देना.
बुराई
ही नहीं अच्छाई भी होती है दुनिया में,
बुरा
जो ढूंढते हर वक़्त उनको आईना देना.
तलाशी
दे तो दूं दिल की तुम्हारा नाम आये तो,
तुम्हें
बदनाम करने का मुझे इलज़ाम ना देना.
दिलों
के खेल में जो ज़िन्दगी को हार बैठे हैं,
उन्हें
झूठी मुहब्बत का कभी मत झुनझुना देना.
मंगलवार, 11 मई 2021
आकाश में तारों का आज रात पिघलना ...
जेबों में चराग़ों को अपने ले के निकलना.
मुमकिन है के थम जाए आज रात का ढलना.
है गाँव उदासी का आस-पास संभालना.
हो पास तेरे कह-कहों का शोर तो चलना.
मासूम पतंगों की ज़िन्दगी से न खेलो,
हर बार तो अच्छा नहीं मशाल का जलना.
कश्ती को चलाने में होंसला है ज़रूरी,
मंज़ूर नहीं हम को साहिलों पे फिसलना.
पतझड़ के हैं पत्ते न दर्द रोक सकोगे,
क़दमों को बचा कर ही रास्तों पे टहलना.
हर मोड़ पे आती हैं लौटने की सदाएँ,
रिश्तों को समझ कर ही अपने घर को बदलना.
आहों का असर था के कायनात की साज़िश,
आकाश में तारों का आज रात पिघलना.
मंगलवार, 4 मई 2021
शिव कहाँ जो जीत लूँगा मृत्यु को पी कर ज़हर ...
लुप्त हो जाते हें जब इस रात के बोझिल पहर.
मंदिरों की घंटियों के साथ आती है सहर.
शाम की लाली है या फिर श्याम की लीला कोई,
गेरुए से वस्त्र ओढ़े लग रहा है ये शहर.
पूर्णिमा का चाँद हो के हो अमावस की निशा,
प्रेम के सागर में उठती है निरंतर इक लहर.
एक पल पर्दा उठा, नज़रें मिलीं, उफ़ क्या मिलीं,
हो वही बस एक पल फिर जिंदगी जाए ठहर.
धूप नंगे सर उतर आती है छत पर जब कभी,
तब सुलग उठता है घर आँगन गली, सहरा दहर.
शब्द जैसे बांसुरी की तान मीठी सी कहीं,
तुम कहो सुनता रहूँगा, काफिया हो, क्या बहर.
इस विरह की वेदना तो प्राण हर लेगी मेरे,
शिव कहाँ जो जीत लूँगा मृत्यु को पी कर ज़हर.
मंगलवार, 20 अप्रैल 2021
रेशा-रेशा जो कभी हम उधड़ गए होते ...
पाँव बादल पे उसी रोज़ पड़ गए होते.
पीठ पर हम जो परिन्दों के चढ़ गए होते.
जिस्म पत्थर है निकल जाता आग का दरिया,
एक पत्थर से कभी हम रगड़ गए होते.
ढूँढ़ते लोग किसी फिल्म की कहानी में,
घर से बचपन में कभी हम बिछड़ गए होते.
फिर से उम्मीद नई एक बंध गई होती,
वक़्त पे डाल से पत्ते जो झड़ गए होते.
आँधियाँ तोड़ न पातीं कभी जड़ें अपनी,
घास बन कर जो ज़मीनों में गढ़ गए होते.
ढूँढ ही लेते हमें ज़िन्दगी के किस्सों में,
वक़्त के गाल पे चाँटा जो गढ़ गए होते.
बन के रह जाती किसी रोज़ ज़िन्दगी उलझन,
रेशा-रेशा जो कभी हम उधड़ गए होते.
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
कन्धे पे अपने भार उठाएँ ... मुझे न दें ...
ले कर गुलाब रोज़
ही आएँ …
मुझे न दें.
गैरों का साथ यूँ
ही निभाएँ … मुझे न दें.
गम ज़िन्दगी में
और भी हैं इश्क़ के सिवा,
कह दो की बार बार
सदाएँ …
मुझे न दें.
इसको खता कहें के
कहें इक नई अदा,
हुस्ने-बहार रोज़
लुटाएँ …
मुझे न दें.
सुख चैन से कटें
जो कटें जिंदगी के दिन,
लम्बी हो ज़िन्दगी
ये दुआएँ …
मुझे न दें.
शायद में उनके
इश्क़ के काबिल नहीं रहा,
आखों से वो शराब
पिलाएँ ... मुझे न दें.
खेलें वो खेल
इश्क़ में पर दर्द हो मुझे,
उनका है ये गुनाह
सज़ाएँ ... मुझे न दें.
उम्मीद दोस्तों
से नहीं थी, मगर था सच,
हिस्सा मेरा वो
रोज़ उठाएँ ... मुझे न दें.
खुशबू भरे वो ख़त
जो मेरे नाम थे लिखे,
खिड़की से रोज़ रोज़
उड़ाएँ ... मुझे न दें.
देखा है ज़िंदगी
में पिता जी को उम्र भर,
कन्धे पे अपने
भार उठाएँ ... मुझे न दें.
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