स्वप्न मेरे: फ़सादी
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रविवार, 19 फ़रवरी 2023

मैं इस बगल गया ये सनम उस बगल गया.

आसान तो नहीं था मगर वो बदल गया.
इक शख्स था गुनाह में शामिल संभल गया.
 
कुछ ख़्वाब थे जो दिन में हकीक़त न बन सके,   
उस रात उँगलियों से मसल कर निकल गया.
 
पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा,
साबुत सरों को देख के फिर से मचल गया.
 
जिसने हमें उमीद के लश्कर दिखाए थे,
वो ज़िन्दगी के स्वप्न दिखा कर मसल गया.
 
सूरज थका-थका था उसे नींद आ गई,
साग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया.
 
जब इस बगल था इश्क़ तो पैसा था उस बगल,  
मैं इस बगल गया ये सनम उस बगल गया.