सात घोड़ों में जुता सूरज सुबह आता रहा.
धूप का भर भर कसोरा सर पे बरसाता रहा.
काग़ज़ी फूलों पे तितली उड़ रही इस दौर में,
और भँवरा भी कमल से दूर मंडराता रहा.
हम सफ़र अपने बदल कर वो तो बस चलते रहे,
और मैं उनकी डगर में फूल बिखराता रहा.
एक दिन काँटा चुभा पगडंडियों में हुस्न की,
ज़िन्दगी भर रहगुज़र में इश्क़ तड़पाता रहा.
ख़ास है कुछ आम सा तेरा तबस्सुम दिलरुबा,
उम्र भर जो ज़िन्दगी में रौशनी लाता रहा.
इश्क़ में मसरूफ़ थे कंकड़ उछाला ही नहीं,
झील के तल में उतर कर चाँद सुस्ताता रहा.
एक दिन यादों की बुग्नी से निकल कर माँ मिली,
और बच्चा बन के मैं बाहों में इतराता रहा.
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शनिवार, 7 अगस्त 2021
और बच्चा बन के मैं बाहों में इतराता रहा ...
सोमवार, 29 जून 2020
चन्द यादों के कुछ करेले हैं ...
गम के किस्से,
ख़ुशी के ठेले हैं
ज़िन्दगी में
बहुत झमेले हैं
वक़्त का भी अजीब आलम है
कल थी तन्हाई आज मेले हैं
बस इसी बात से तसल्ली है
चाँद सूरज सभी अकेले हैं
भूल जाते हैं सब बड़े हो कर
किसके हाथों में रोज़ खेले हैं
चुप से
बैठे हैं आस्तीनों में
नाग हैं
या के उसके चेले हैं
टूट जाते हैं गम की आँधी से
लोग मिट्टी के कच्चे ढेले हैं
कितने मीठे हैं आज ये जाना
चन्द यादों के कुछ करेले हैं
खोल के
ज़ख्म सब दिखा देंगे
मत कहो
तुमने दर्द झेले हैं
सोमवार, 18 जून 2018
बच्चे ज़मीन कैश सभी कुछ निगल गए ...
सूरज खिला तो धूप के साए मचल गए
कुछ बर्फ के पहाड़ भी झट-पट पिघल गए
तहजीब मिट गयी है नया दौर आ गया
इन आँधियों के रुख तो कभी के बदल गए
जोशो जुनून साथ था किस्मत अटक गई
हम साहिलों के पास ही आ कर फिसल गए
झूठे परों के साथ कहाँ तक उड़ोगे तुम
मंज़िल अभी है दूर ये सूरज भी ढल गए
निकले तो कितने लोग थे अपने मुकाम पर
पहुंचे वही जो वक़्त के रहते संभल गए
मजबूरियों की आड़ में सब कुछ लिखा लिया
बच्चे ज़मीन कैश सभी कुछ निगल गए
गुरुवार, 11 अगस्त 2016
मेरी चाहत है बचपन की सभी गलियों से मिलने की ...
कभी गोदी में छुपने की कभी घुटनों पे चलने की
मेरी चाहत है बचपन की सभी गलियों से मिलने की
सजाने को किसी की मांग में बस प्रेम काफी है
जरूरी तो नहीं सूरज के रंगों को पिघलने की
कहाँ कोई किसी का उम्र भर फिर साथ देता है
ज़रुरत है हमें तन्हाइयों से खुद निकलने की
वहां धरती का सीना चीर के सूरज निकलता है
जहां उम्मीद रहती है अँधेरी रात ढलने की
बड़ी मुश्किल से मिलती है किसी को प्रेम की हाला
मिली है गर नसीबों से जरूरत क्या संभलने की
उसे मिलना था खुद से खुद के अन्दर ही नहीं झाँका
खड़ा है मोड़ पे कबसे किसी शीशे से मिलने की
मेरी चाहत है बचपन की सभी गलियों से मिलने की
सजाने को किसी की मांग में बस प्रेम काफी है
जरूरी तो नहीं सूरज के रंगों को पिघलने की
कहाँ कोई किसी का उम्र भर फिर साथ देता है
ज़रुरत है हमें तन्हाइयों से खुद निकलने की
वहां धरती का सीना चीर के सूरज निकलता है
जहां उम्मीद रहती है अँधेरी रात ढलने की
बड़ी मुश्किल से मिलती है किसी को प्रेम की हाला
मिली है गर नसीबों से जरूरत क्या संभलने की
उसे मिलना था खुद से खुद के अन्दर ही नहीं झाँका
खड़ा है मोड़ पे कबसे किसी शीशे से मिलने की
रविवार, 19 जुलाई 2015
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे ...
मुझे ता उम्र काँटों पर सुला दे
मगर बस नींद आने की दुआ दे
थके हारों को पल भर सुख मिलेगा
हवा चल कर पसीना जो सुखा दे
सजा अपनी करूंगा मैं मुक़र्रर
गुनाहों से मेरे पर्दा उठा दे
बराबर से मिलेगी धूप सबको
ये सूरज फैंसला अपना सुना दे
चुनौती दी है जो परवाज़ की तो
मुझे आकाश भी खुल कर खुला दे
कदम दो साथ मिल कर चल न पाया
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे
मगर बस नींद आने की दुआ दे
थके हारों को पल भर सुख मिलेगा
हवा चल कर पसीना जो सुखा दे
सजा अपनी करूंगा मैं मुक़र्रर
गुनाहों से मेरे पर्दा उठा दे
बराबर से मिलेगी धूप सबको
ये सूरज फैंसला अपना सुना दे
चुनौती दी है जो परवाज़ की तो
मुझे आकाश भी खुल कर खुला दे
कदम दो साथ मिल कर चल न पाया
वफ़ा के उस पुजारी को भुला दे
रविवार, 10 अगस्त 2014
बस छोड़ कर बदलाव के सब कुछ बदलता है ...
जम कर पसीना बाजुओं से जब निकलता है
मुश्किल से तब जाकर कहीं ये फूल खिलता है
ये बात सच है तुम इसे मानो के ना मानो
बस छोड़ कर बदलाव के सब कुछ बदलता है
कुछ हौंसला, अरमान कुछ, कुछ ख्वाहिशें दिल की
तूफ़ान में यूँ ही नहीं तो दीप जलता है
ये थी शरारात, दिल्लगी या इश्क़ जो भी हो
बस ख्वाब उनका ही मेरी आँखों में पलता है
दिन भर की अपनी आग, अपनी तिश्नगी लेकर
तपता हुआ सूरज समुंदर में पिघलता है
मुश्किल से तब जाकर कहीं ये फूल खिलता है
ये बात सच है तुम इसे मानो के ना मानो
बस छोड़ कर बदलाव के सब कुछ बदलता है
कुछ हौंसला, अरमान कुछ, कुछ ख्वाहिशें दिल की
तूफ़ान में यूँ ही नहीं तो दीप जलता है
ये थी शरारात, दिल्लगी या इश्क़ जो भी हो
बस ख्वाब उनका ही मेरी आँखों में पलता है
दिन भर की अपनी आग, अपनी तिश्नगी लेकर
तपता हुआ सूरज समुंदर में पिघलता है
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