प्रार्थना के कुछ शब्द जो नहीं पहुँच पाते ईश्वर के पास बिखर जाते हैं आस्था की कच्ची ज़मीन पर धीरे धीरे उगने लगते हैं वहाँ कभी न सूखने वाले पेड़ सुना है प्रेम रहता है वहाँ खुशबू बन कर वक़्त के साथ जब
उतरती हैं कलियाँ तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप ले कर आँखें मुध्ने लगती हैं, हाथ खुद-ब-खुद उठ जाते हैं उसे इबादत ... या जो चाहे नाम दे देना खुशबू में तब्दील हो कर शब्द, उड़ते हैं कायनात में मैं भी कुछ ओर तेरे करीब आने लगता हूँ तू ही तू सर्वत्र ... तुझ में ईश्वर, ईश्वर में तू उसकी माया, तेरा मोह, चेतन, अवचेतन मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का