तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही ...
इक पुरानी याद
दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
घर, मेरा
आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.
कुछ उजाले शाम
होते ही लिपटने आ गए,
रात भर ये रात
छज्जे पर मेरे अटकी रही.
लौट कर आये नहीं
कुछ पैर आँगन में मेरे,
इक उदासी घर के
पीपल से मेरे लटकी रही.
उनकी आँखों के
इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जीत का सेहरा भी
उनका हार भी उनकी रही.
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.
रौशनी के चोर
चोरी रात में करने चले,
तीरगी की आड़ ले
कर रौशनी छुपती रही.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 04-06-2021) को "मौन प्रभाती" (चर्चा अंक- 4086) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
वाह,बहुत सुंदर♥️🌻
जवाब देंहटाएंग़ज़ल लाजवाब है दिगंबर जी।
जवाब देंहटाएंइक पुरानी याद दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
जवाब देंहटाएंघर, मेरा आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.
सुन्दर रचना
लाजवाब
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलौट कर आये नहीं कुछ पैर आँगन में मेरे,
जवाब देंहटाएंइक उदासी घर के पीपल से मेरे लटकी रही.
..मार्मिक चित्रण, भावों भरा चित्रण ।
उनकी आँखों के इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जवाब देंहटाएंजीत का सेहरा भी उनका हार भी उनकी रही.
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.---सुंदर सृजन...।
क्या खूसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने। दिल बाग़-बाग़ हो गया.
जवाब देंहटाएंरौशनी के चोर चोरी रात में करने चले,
जवाब देंहटाएंतीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही
यही तो हो रहा है, सत्य को असत्य के पीछे छुपना पड़ रहा है, क्योंकि सत्य जब ग़लत हाथों में पड़ जाता है तो उसका दुरुपयोग ही होता है। बेहतरीन ग़ज़ल
उनकी आँखों के इशारे पर सभी मोहरे हिले,
जवाब देंहटाएंजीत का सेहरा भी उनका हार भी उनकी रही
बहुत बढ़िया !!समर्पण का अद्भुत भाव !!
रौशनी के चोर चोरी रात में करने चले,
जवाब देंहटाएंतीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही.
बहुत खूब,दो पंक्तियों में आप दुनिया समेट लेते हैं,लाज़बाब सृजन आदरणीय दिगंबर जी,सादर नमन आपको
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय बढ़िया गजल |
जवाब देंहटाएंएक ही शब्द फिर से कि 'हर बार की तरह लाजवाब'प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल. यह शेर लाजवाब...
जवाब देंहटाएंलौट कर आये नहीं कुछ पैर आँगन में मेरे,
इक उदासी घर के पीपल से मेरे लटकी रही.
रात भर ये रात छज्जे पर मेरे अटकी रही.
जवाब देंहटाएंगजब चित्रण किया है, आभार इतना अच्छा पढ़ाने के लिये।
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
जवाब देंहटाएंरात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.
बहुत उम्दा गजल...
आपका तो अंदाज़े बयां ही अलहदा है सर जी। बेहतरीन , सब एक से बढ़ कर एक। हमेशा की तरह शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंरात भर बैरन निगोड़ी चाँदनी चुभती रही...तीरगी की आड़ ले कर रौशनी छुपती रही...हमेशा की तरह...आपका कायल बनाती एक ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंवा!!! मी महाराष्ट्रातून आहे. आपला मराठी ब्लॉग पहिल्यांदाच पाहिला. कविता खूप आवडली.
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जवाब देंहटाएंचाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
रात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही.
..."
........माननीय वाकई बहुत ही बेहतीरन है। आह! और वाह! दोनो है। अर्थात् पढकर मन को सुकून भी मिला और भावुक भी हुआ। सुन्दर रचना।
इक पुरानी याद दिल से मुद्दतों लिपटी रही.
जवाब देंहटाएंघर, मेरा आँगन, गली, बस्ती मेरी महकी रही.,,,,,,, बहुत शानदार ग़ज़ल,आपकी लेखनी को नमन,
लौट कर आये नहीं कुछ पैर आँगन में मेरे,
जवाब देंहटाएंइक उदासी घर के पीपल से मेरे लटकी रही.
ईश्वर ने आपको बहुत अच्छा उपहार दिया है सर !! एक से एक बेहतरीन ग़ज़ल लिखते हैं आप , जारी रखियेगा
चाँद का ऐसा जुनूं इस रात को ऐसा चढ़ा,
जवाब देंहटाएंरात सोई फिर उठी फिर रात भर उठती रही....वाह नासवा जी क्या खूब ही लिखा
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जवाब देंहटाएंThe ultimate guide to 샌즈카지노 real-money gambling. The minimum gambling game, called baccarat or roulette, consists of bets 메리트 카지노 주소 and two 카지노사이트 bets.
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जवाब देंहटाएंवो है जग से बेमिसाल सखी लिरिक्स
जवाब देंहटाएंमेरी अंखियों के सामने ही रहना लिरिक्स
जवाब देंहटाएंअब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
जवाब देंहटाएंदिल दिया है जान भी देंगे
जवाब देंहटाएंदेश मेरे देशभक्ति गीत
जवाब देंहटाएंऐ मेरे वतन के लोगों
जवाब देंहटाएंजिन्दगी मौत ना बन जाये
जवाब देंहटाएंVande Mataram Lyrics In Hindi
जवाब देंहटाएंअब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
जवाब देंहटाएंमेरे देश की धरती
जवाब देंहटाएं