स्वप्न मेरे: बीसवीं सदी की वसीयत ...

बुधवार, 6 जुलाई 2011

बीसवीं सदी की वसीयत ...

मौत
जी हाँ ... जब बीसवीं सदी की मौत हुई
(हंसने की बात नही सदी को भी मौत आती है)

हाँ तो मैं कह रहा था
जब बीसवीं सदी की मौत हुई
अनगिनत आँखों के सामने
उसकी वसीयत का पंचनामा हुवा

पाँच-सितारा इमारत के ए. सी. कमरों में
बुद्धिजीवियों के प्रगतिशील दृष्टिकोण,
और तथाकथित विद्वता भरे,
ग्रोथ रेट और बढते मध्यम वर्ग के आंकड़ों के बीच ...
संसद के गलियारे में उंघते सांसदों की
डारेक्ट टेलीकास्ट होती बहस ने ...
सरकारी पैसे पर अखबारों में छपे
बड़े बड़े विज्ञापनों की चमक ने
कितना कुछ तलाश लिया उस वसीयत में

पर किसी ने नही देखे
विरासत में मिले
बीसवीं सदी के कुछ प्रश्न
अन-सुलझे सवाल
व्यवस्था के प्रति विद्रोह

पानी की प्यास
दीमक खाए बदन
हड्डियों से चिपके पेट
भविष्य खोदता बचपन
चरमराती जवानी
बढ़ता नक्सल वाद

कुछ ऐसे प्रश्नों को लेकर
इक्कीसवीं सदी में सुगबुगाहट है…
अस्पष्ट आवाजों का शोर उठने लगा है

तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पीठ फेर ली
सांसदों के कान बंद हैं
प्रगतिशील लोगों ने मुखोटा लगा लिया
प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है

धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
मौत की तरफ बढ़ रही है...

68 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार पढ़ा कि सदी की भी मौत होती है.. और जिस तरह मूल्य और संस्कार मरे हैं... सचमुच सदी की मौत हुई है और इक्कीसवी सदी तो अपने शुरुआत में ही मर रहा है.. बढ़िया कविता...

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  2. aapne bade naye tareeke se sadi ke prashno ko ujaagar kiya hai. rachana bahut pasand aayee.

    aabhaar
    Fani Raj

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  3. बिलकुल सही कहा है आपने...
    धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है...

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  4. इस कविता के माध्यम से एक गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया है सर!


    सादर

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  5. हर सदी की मौत कुछ न कुछ छोड़ जाती है वसीयत में पर लोग उसमें से सिर्फ अपने फायदे की चीज़ ही देखते हैं.
    बहुत बढ़िया और अनूठा ख्याल.

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  6. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद ...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! आपने सटीक लिखा है! बड़ा ही गभीर और चिंता का विषय है! नए अंदाज़ में लिखी गयी बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना!

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  7. बेहद गंभीर चिन्तन की उपज है ये कविता जो यथार्थ के दर्द को व्यक्त करती है।

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  8. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    बहुत खूब...बधाई ||

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  9. कविता तो उत्तम बनाई मगर मज़ाक भी अच्छा कर लेते हो कवि महोदय !

    ये कमबख्त सदी जिसने पैदा होते ही ट्विन टावर ध्वस्त कर दुनिया के तथाकथित बाहुबली, अमेरिका को मुफ्त के चने चबा दिए, कई दो कौड़ी के मुल्लों को चने के झाड पर चढ़ा दिया , लाखों निर्दोषों को मौत के घाट उतरवा दिया, भिखमंगों को राजा बना दिया, पिछली कई सदियों से तहखाने में छुपे माल को चोर-लुटेरों के लिए थाली में परोस दिया, वो सदी ऐसे ही मौत को गले लगा लेगी ? नहीं जनाव, निहायत ढीठ, बेशर्म और घाघ किस्म की है, जब तक सबकी नैया न डूबा ले, ये नहीं मरने वाली, बस देखते जाओ !

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  10. सांसदों के कान बंद हैं
    प्रगतिशील लोगों ने मुखोटा लगा लिया
    प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है
    धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है...

    बीसवीं सदी में जो कुछ हुआ इक्कीसवीं सदी में हालत उससे कहीं बदतर होंगे और हर संस्कार और मूल्य की मौत होती जायेगी ..सच को सामने लाती रचना ...आपका आभार

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. बीसवी सदी की मौत बहुत गहरे सोच से उपजी रचना बहुत अच्छी लगी |
    बधाई
    आशा

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  13. पर किसी ने नही देखे
    विरासत में मिले
    बीसवीं सदी के कुछ प्रश्न
    अन-सुलझे सवाल
    व्यवस्था के प्रति विद्रोह
    ... gudh manan kiya hai, bahut hi achhi rachna hai, kalpna me sadi kee maut aur uthe swaal mayne rakhte hain

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  14. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    गहन भावों के साथ सशक्‍त रचना ।

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  15. तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पीठ फेर ली
    सांसदों के कान बंद हैं
    प्रगतिशील लोगों ने मुखोटा लगा लिया
    प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है


    यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक रचना...
    मन को छूने वाली...

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  16. सही कहा नासवा जी । इक्कीसवीं सदी में मानवीय मूल्य तो ख़त्म होने के कगार पर हैं ।
    बेहतरीन ।

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  17. बहुत बहुत बहुत ही सही....

    आपने सबकुछ कह दिया...अब कहने लायक कुछ बचा ही नहीं..

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  18. मृत्यु सत्यता है..इन्सान की या सदी की..

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  19. लाजवाब चिंतन... नए विचार....
    पढ़कर कुछ विचार आये...
    "सदियाँ यूँ ही दम तोड़ा करेंगी
    तेरा मेरा दिल झिंझोड़ा करेंगी"

    सादर....

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  20. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद
    sahi kaha hai aapne .aesa hi hai
    alag hi soch ki sunder kavita
    saader
    rachana

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  21. तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पीठ फेर ली
    सांसदों के कान बंद हैं
    प्रगतिशील लोगों ने मुखोटा लगा लिया
    प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है

    धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है...
    Kya kamaal kee soch hai!

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  22. पर किसी ने नही देखे
    विरासत में मिले
    बीसवीं सदी के कुछ प्रश्न
    अन-सुलझे सवाल
    व्यवस्था के प्रति विद्रोह

    21 वीं सदी में होना ही था इस सबके विरुद्ध विद्रोह ... बहुतसे प्रश्नों को उठाती गहन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  23. कवि की दूर दृष्टि
    काश कि चेतें अहंकारी।

    जवाब देंहटाएं
  24. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सलवाद....


    सच की तस्वीर दिखाती धारदार कविता के लिए
    आपको हार्दिक बधाई।

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  25. bahut ghoodh tatthya ko ujagar karti behtreen post.bahut achcha likha hai aapne.aabhar.

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  26. हाँ...ग्यारह साल निकल भी गये...मूल सवाल वही हैं...समाधान की ओर ध्यान भी नहीं है...कोई भट्टा पारसोल को हवा दे रहा है...तो कोई बुत बनवाने में मस्त है...किसी को पृथक राज्य बनाना है...किसी को जनता की मजबूरियों ने पुनः मुख्यमंत्री बना दिया...चरमराई न्याय और कानून व्यवस्था के साथ ये सदी भी गुज़र ही जाएगी...वर्ना बुद्धिजीवियों के करने को कुछ नहीं बचेगा...

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  27. पर किसी ने नही देखे
    विरासत में मिले
    बीसवीं सदी के कुछ प्रश्न
    अन-सुलझे सवाल
    व्यवस्था के प्रति विद्रोह

    गहरी सोच
    आभार

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  28. कमाल की सोच है एक सदी की मौत पर.. और साथ ही मूल्यों की.. और चेतावनी भी कि कहीं आने वाली सदी भी वैसी ही मौत मरने को मजबूर है!! बेहद सच्चा बयान!!

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत ही गम्भीर प्रश्न सामने रख दिया है इस कविता के माध्यम से,


    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  30. तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पीठ फेर ली
    सांसदों के कान बंद हैं
    प्रगतिशील लोगों ने मुखोटा लगा लिया
    प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है


    मन को उद्वेलित करती सटीक पंक्तियाँ..... सच को खूब रेखांकित किया आपने

    जवाब देंहटाएं
  31. एक सार्थक समसामयिक कविता के लिये नासवा जी को बधाई।

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  32. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  33. प्रजा “तंत्र” की व्यवस्था में मग्न है


    खतरनाक तेवर हैं इस कविता में| उपरोक्त पंक्ति में कवि ने अपनी काव्य क्षमता का विलक्षण दर्शन कराया है और साबित किया है कि आधुनिक कविता भी किस तरह अलंकृत की जा सकती है|

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  34. सटीक , गहन | बहुत सच लिखा है आपने - पर सोचने की बात यह है कि - किया क्या जाए ?

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  35. धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है..

    बात तो सही कही आपने.

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  36. सभ्यता विकास की और बढ़ रही है मगर मानव मूल्य विनाश की ओर जिसके बिना सदी का बढ़ना मौत के समान ही है ...
    मौत की और बढती इक्कीसवीं सदी ...
    उम्मीद करने की बाईसवीं सदी भी होगी मगर इससे अलग , नव निर्माण की !

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  37. आज समय ऐसा आ गया है कि हम आगे बढ़ने के वजाए एक ऐसे दल-दल में धंसते जा रहे हैं कि हमें कहना पड़ रहा है कि यह सदी मर ही तो रही है ... या कि मर ही चुकी है। जब मानवता की गिरी हुई लाश हम रोज़ देखते हों और कोई सुगबुगाहट न हो तो वाजिब है कि
    धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है...

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  38. पर किसी ने नही देखे
    विरासत में मिले
    बीसवीं सदी के कुछ प्रश्न
    अन-सुलझे सवाल
    व्यवस्था के प्रति विद्रोह
    ...bus ab to suryast ke baad gahan raatri ke baad sunhare subah ka intzaar hai..
    bahut badiya saarthak prastuti ke liye aabhar

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  39. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    अद्भुत...क्या कुछ नहीं है इस रचना में...सारी त्रासदियाँ शब्द बन कर सामने आ गयी है आपकी इस कमाल की रचना में...आपके कुशल लेखन को एक बार फिर से प्रमाणित करती इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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  40. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    sach kaha aapne bahut se sawal muh baaye khade hain aaj 21v sadi ke aage jinki raah nazer nahi aa rahi.....aur in raaho me sabse bada patthar jo rukawat ban ke pada hai vo hai bhrashtachaar.

    bahut prabhaavshali post.

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  41. इक्कीसवीं सदी मरने के कगार पर है लेकिन अभी साँस ले रही है..उसे बचाने की कोशिश भी भरपूर होगी...चिंतन को बाध्य करती रचना...

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  42. समसामयिक और अच्छी रचना.विरासत में मिले प्रश्न इस सदी में भी लगता है अनुत्तरित ही रह जायेंगे.

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  43. सदी की मौत विषय ही बहुत हिला देने वाला है ....कई प्रश्न के जवाब नहीं है हमारे पास ...बेहतरीन रचना

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  44. Beeswi sadee ne apne un sulaze sawalon ka boz Ikkiswi sadi par dal jo diya hai, koi aaschary nahee ki ye shuru se hee charmarane lagee hai.

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  45. प्रिय दिगंबर नासवा जी हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात -आप के सुविचार लाजबाब प्रस्तुति -थप्पड़ मारता हुआ व्यंग्य -काश इन की चुन्धियाई आँखें खुलें
    आभार आप का
    शुक्ल भ्रमर ५
    पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    कुछ ऐसे प्रश्नों को लेकर
    इक्कीसवीं सदी में सुगबुगाहट है…
    अस्पष्ट आवाजों का शोर उठने लगा है

    जवाब देंहटाएं
  46. विचारों को झकझोरती रचना ...... सच जब मूल्यों और आदर्शों की मौत हो तो सदी की ही मौत होती है .....

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  47. पानी की प्यास
    दीमक खाए बदन
    हड्डियों से चिपके पेट
    भविष्य खोदता बचपन
    चरमराती जवानी
    बढ़ता नक्सल वाद

    इन परिस्थितियों में रास्ता तो मौत की तरफ ही जाता है।
    अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  48. देश,समाज और साहित्य की विद्रूपताओं का ,गैर जिम्मेदार भूमिकाओं का भावपूर्ण विश्लेषण करती सार्थक रचना...
    सार्थक व्यंग.............

    जवाब देंहटाएं
  49. प्रिय ब्लोग्गर मित्रो
    प्रणाम,
    अब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा!

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    जवाब देंहटाएं
  50. इक्कीसवी सदी यानी दो और एक का चक्कर ! एक नंबर के आगे - आगे दो नंबर ही भारी ! बहुत सठिक प्रश्न

    जवाब देंहटाएं
  51. बहुत ही अच्छा पंचनामा बनाया है आपने मुझे लगता है इक्कीसवी सदी की वसीयत मे भी यही मुछ मिलेगा

    जवाब देंहटाएं
  52. देखें इश्वर क्या देता है इस सदी की मौत के बाद मानवता को....एक अलग लिक से हटकर लिखी गयी रचना बधाइयाँ .

    सुव्यवस्था सूत्रधार मंच-सामाजिक धार्मिक एवं भारतीयता के विचारों का साझा मंच..

    जवाब देंहटाएं
  53. गहन चिंतन को उद्वेलित करती बहुत सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  54. आदरणीय नासवा जी
    नमस्कार !
    बहुत ही सुन्दर जज्बात
    एक सदी की मौत बेहद सच्चा बयान!!
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

    जवाब देंहटाएं
  55. अब तो भाई साहब काला चुगा पहनने वाला भी बन गया है ,मदारी ,दूध की रखवाली करती एक बिल्ली सब को नचाये है एक सदी के मौत पर रहम आये है .बहुत सशक्त रचना आपकी .बधाई .

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  56. वाह इस समय के ऊपर सटीक बैठती बातें.. बहुत खूब!

    परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

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  57. समस्याओं पर ध्यानाकर्षण का तरीका बहौत अच्छा रहा ।

    जवाब देंहटाएं
  58. एकदम सटीक कहा...

    धीरे धीरे इक्कीसवीं सदी
    मौत की तरफ बढ़ रही है..

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  59. आजकल के समयों की बेहद मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति. बेहद खूबसूरत रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं

आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है